वाटर सैस लगाकर संसाधन जुटाने पर लगा प्रश्नचिन्ह
- Details
-
Created on Sunday, 30 April 2023 12:55
-
Written by Shail Samachar
- केन्द्र ने उपकर को असंवैधानिक करार दिया
- गारंटीयां पूरी करने के लिये कर्ज और कर एकमात्र सहारा
शिमला/शैल। कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में प्रदेश की जनता को दस गारंटीयां दी हैं। इन गारंटीयों को पूरा करने के लिये आर्थिक संसाधन चाहिये। यह संसाधन जुटाने की दिशा में सुक्खू सरकार ने जल विद्युत परियोजनाओं पर वाटर सैस लगाने का फैसला लिया। सरकार को अफसरशाही से यह फीडबैक मिला की जल उपकर लगाकर चार हजार करोड़ सरकार को प्रतिवर्ष मिल सकते हैं। यह राय मिलते ही सरकार ने बजट सत्र से पहले ही एक अध्यादेश के माध्यम से यह फैसला लागू कर दिया। बजट सत्र में इस आश्य का विधेयक पारित करके पुख्ता काम कर दिया। बजट सत्र में चर्चा के दौरान विपक्ष की ओर से इस पर कई गंभीर सुझाव भी आए थे और उनमें कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु और आशंकायें भी उठाई गयी थी। इस उपकर को एक जल विद्युत परियोजना नन्ती जल विद्युत परियोजना प्रा.लि. ने प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दे रखी है और उस पर संबद्ध पक्षों को नोटिस भी जारी हो गये हैं।
लेकिन इसी बीच भारत सरकार के ऊर्जा मंत्रालय से सभी प्रदेशों और केन्द्र शासित राज्यों के मुख्य सचिवों के नाम 25 अप्रैल को एक पत्र जारी करके कहा गया है कि ऐसा उपकर लगाना एकदम असंवैधानिक है। पत्र में इस विषय के कानूनी और संवैधानिक पक्षों पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। इस पत्र से स्पष्ट हो जाता है कि राज्य सरकार का यह फैसला असंवैधानिक और गैरकानूनी है तथा उच्च न्यायालय में टिक नहीं पायेगा। इससे जहां सरकार के संसाधन जुटाने के प्रयासों पर गंभीर प्रश्न चिन्ह लग गया है वहीं पर अफसरशाही की गंभीरता पर भी प्रश्न चिन्ह लग गया है क्योंकि इस फैसले से जल विद्युत उत्पादन प्रभावित होते हैं और वह इसे अदालत में चुनौती देंगे ही। यहां प्रश्न यह उठ रहा है कि जिन संवैधानिक पक्षों को केन्द्र की अफसरशाही ने उठाया है उन्हें प्रदेश की अफसरशाही नजरअन्दाज कैसे कर गयी। अब केन्द्र के पत्र से इस उपकर पर आपत्ति उठाने वाले उत्पादकों का पक्ष पुख्ता हो जाता है।
इस परिदृश्य में यह स्वभाविक सवाल भी उठेगा कि जब सरकार संसाधन ही नहीं जुटा पायेगी तो फिर यह गारंटियां कैसे पूरी हो पायेंगी। निश्चित है की गारंटिया पूरी करने के लिए सरकार के पास कर्ज लेने और कर लगाने के अतिरिक्त और कोई विकल्प शेष नहीं रह जाता है। ऐसे में कर्ज का जो आरोप कल तक पूर्व की जयराम सरकार पर लगता था अब वही आरोप इस सरकार को भी सहना पड़ेगा। क्योंकि केन्द्र के इस पत्र पर राज्य सरकार की कोई प्रतिक्रिया अभी तक नहीं आयी है। यह पत्र नगर निगम शिमला के चुनावों के मध्य आया है और इसका प्रभाव चुनाव में भी पड़ जाये तो कोई हैरानी नहीं होगी।
यह है पत्र
Add comment