Friday, 19 September 2025
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उप-मुख्यमंत्री के पदनाम को भी मिली उच्च न्यायालय में चुनौती

  • उप-मुख्यमंत्री और मुख्य संसदीय सचिवों को नोटिस जारी
  • सभी याचिकाओं पर होगी एक साथ सुनवाई
  • उप-मुख्यमंत्री पदनाम को भाजपा विधायक सतपाल सत्ती ने दी चुनौती
  • इन्हीं याचिकाओं के दम पर भाजपा नेता कर रहे सरकार गिरने की भविष्यवाणियां

शिमला/शैल। सुक्खू सरकार के छः मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियों को असंवैधानिक करार देकर उन्हें हटाये जाने की गुहार लगाते हुये तीन याचिकाएं प्रदेश उच्च न्यायालय में विचाराधीन चल रही हैं। अब इन्हीं के साथ एक और याचिका भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और विधायक सतपाल सिंह सत्ती की भी उच्च न्यायालय में दायर हुई है। इस याचिका में मुख्य संसदीय सचिवों के साथ उपमुख्यमत्री मुकेश अग्निहोत्री का मामला भी उठाया गया है याचिका में कहा गया है कि मुकेश अग्निहोत्री की शपथ एक मंत्री के रूप में हुई है। लेकिन बाद में सरकार ने उन्हें उपमुख्यमंत्री घोषित कर दिया जो कि असंवैधानिक है इस याचिका पर मुकेश अग्निहोत्री और सभी मुख्य संसदीय सचिवों को नोटिस जारी कर दिये गये हैं और मामले की अगली सुनवाई 19 मई को रखी गई है। वरिष्ठ अधिवक्ता और भाजपा नेता सतपाल जैन मामले की पैरवी कर रहे हैं। स्मरणीय है कि स्वर्गीय वीरभद्र सिंह के कार्यकाल में भी एक बार मुख्य संसदीय सचिव और सचिव नियुक्त किये गये थे। तब इन नियुक्तियों को सिटीजन फोरम के देशबंधु सूद ने चुनौती दी थी और उच्च न्यायालय ने इन नियुक्तियों को असंवैधानिक करार देकर इन लोगों को तुरंत प्रभाव से हटा दिया था। इस हटाये जाने के खिलाफ तब सरकार सुप्रीम कोर्ट में चली गई थी। उसके बाद राज्य सरकार ने नए सिरे से इस आश्य का एक्ट बना लिया था। लेकिन नये एक्ट के बाद ऐसी नियुक्तियां करने से पहले ही एक्ट को भी प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दे दी गई जो अब तक लंबित है। लेकिन इस चुनौती के बाद आने वाली सरकार ने ऐसी नियुक्तियों ही नहीं की। उधर सर्वोच्च न्यायालय में असम में भी ऐसी ही नियुक्तियां होने का मामला आ गया। असम के मामले के साथ ही हिमाचल की एसएलपी भी टैग हो गई। इस पर जुलाई 2017 में सर्वोच्च न्यायालय में इन नियुक्तियों को असंवैधानिक और गैरकानूनी ठहराते हुए यह कहा है कि राज्य की विधायिका को ऐसा कानून बनाने का अधिकार ही नहीं है। जुलाई 2017 का सुप्रीम कोर्ट का फैसला हम पाठकों के सामने पहले ही रख चुके हैं
जुलाई 2017 के फैसले के बाद दिसम्बर में भाजपा की सरकार बन गई और जयराम सरकार ने यह नियुक्तियां नहीं की। लेकिन अब सुक्खू सरकार में उप-मुख्यमंत्री भी नियुक्त करना पड़ा। यही नहीं मंत्रिमंडल के विस्तार से पहले मुख्य संसदीय सचिव बनाने पड़े। मंत्रिमंडल में मंत्रियों के तीन पद खाली चल रहे हैं। विधानसभा में डिप्टी स्पीकर का पद खाली चल रहा है। संविधान का ज्ञान रखने वाले जानते हैं कि संविधान में उप-मुख्यमंत्री नाम से कोई पद नहीं है। भले ही किसी की शपथ उप-मुख्यमंत्री के तौर पर ही क्यों न हुई हो। जब भी ऐसी नियुक्ति को चुनौती दी जाएगी तो वह कानून मानकों पर ठहर नहीं पाएगी। इस समय हिमाचल के उप-मुख्यमंत्री और मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियों को प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा चुकी है। कानून के जानकारों के मुताबिक इस पर जब भी उच्च न्यायालय का फैसला आयेगा वह इन नियुक्तियों के पक्ष में नहीं होगा। अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले यह फैसला आज ही जायेगा माना जा रहा है। माना जा रहा है कि यह फैसला आने के बाद प्रदेश की राजनीति में बहुत बड़ा फेरबदल देखने को मिलेगा। भाजपा इस मामले में प्रत्यक्ष रूप से पार्टी बन चुकी है यह स्पष्ट हो चुका है। संभवतः इसी आधार पर भाजपा नेता प्रदेश सरकार के गिराने की भविष्यवाणियां कर रहे हैं।

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