शिमला/शैल। नगर निगम चुनावों में भाजपा को नौ सीटों पर जीत हासिल हुई है। विधानसभा चुनाव हारने के बाद यह निगम चुनाव भाजपा के लिये पहला चुनावी अवसर था जहां वह अपनी हार को जीत में बदलकर अपनी गुटबाजी पर उठते सवालों को विराम दे सकती थी। लेकिन ऐसा हो नहीं सका और इस हार ने भाजपा नेतृत्व पर कुछ नये सवाल अवश्य उठा उछाल दिये है। यह सवाल मुख्यमंत्री की भाजपा के साथ दोस्ती की टिप्पणी के बाद और भी गंभीर हो जाते हैं। वैसे तो किसी भी विपक्ष के लिये पांच माह पहले बनी सरकार के खिलाफ मुद्दे तलाशना और उस पर जनता को आकर्षित कर पाना कठिन होता है। लेकिन संयोगवश सुक्खू सरकार के गठन के दूसरे दिन बाद ही जयराम सरकार के अंतिम छः माह के फैसले बदलने से विपक्ष को एक ऐसा मुद्दा मिल गया जिसे भाजपा ने मंत्रिमंडल विस्तार तक न केवल हर चुनाव क्षेत्र तक पहुंचा दिया बल्कि उच्च न्यायालय में भी पहुंचा दिया। पूरे बजट सत्र में इस मुद्दे पर सरकार को घेर रखा। सदन में जब तक सरकार ने यह नहीं कह दिया कि जहां आवश्यक होगा वहां संस्थान खोल दिये जायेंगे तब तक मुद्दे को नहीं छोड़ा।
बजट सत्र तक जो आक्रामकता भाजपा ने सुक्खू सरकार के खिलाफ अपना रखी थी वह निगम चुनाव में उस अनुपात में गायब थी। सरकार पर चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के आरोपों को भी चुनाव आयोग तक पूरी गंभीरता से नहीं पहुंचा पायी। भाजपा हाईकमान ने इन चुनावों के लिये प्रभारी भी उत्तर प्रदेश से लगाया। चुनाव के दौरान ही प्रदेश अध्यक्ष और संगठन महामंत्री को बदला। लेकिन इसी बीच जब पहले पूर्व विधानसभा अध्यक्ष विपिन परमार और फिर नेता प्रतिपक्ष पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने सरकार गिरने की भविष्यवाणियां कर डाली तो एकदम स्थितियां बदल गयी। क्योंकि निगम चुनावों के बाद ऐसा क्या घटेगा जिसके परिणाम स्वरूप सरकार गिर जायेगी इसका कोई खुलासा नहीं किया गया। इससे अनचाहे ही यह आशंका उभर गयी की भाजपा प्रदेश में ऑपरेशन लोटस की तैयारी कर रही है। ऐसे में पांच माह पहले बनी सरकार को गिराने का ताना-बाना बुनने वाले किसी भी विपक्ष को जनता अपना समर्थन क्यों देगी।
सरकार के जिन फैसलों पर बजट सत्र और उससे पहले भाजपा आक्रामक थी उन मुद्दों पर निगम चुनाव में एकदम चुप्पी साधना कहीं न कहीं भाजपा के रणनीतिकारों की मंशा पर सवाल खड़े करता है। जबकि संस्थान बन्द करने की चपेट में तो नगर निगम में पडने वाले तीनों विधानसभा क्षेत्र भी आते हैं। यही नहीं निगम में हुई वार्ड बन्दी के खिलाफ मामला उच्च न्यायालय में जा पहुंचा था। वरिष्ठ अधिवक्ता और भाजपा नेता सतपाल जैन ने इस मामले की पैरवी की थी। इसमें फैसला भी रिजर्व हो गया था। लेकिन जिस कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश की पीठ में या मामला था और रिजर्व कर दिया गया था उसे उनकी सेवानिवृत्ति तक ओपन करवाने का प्रयास तक नहीं किया गया। अब इस मामले की कोई प्रसंगिकता ही नहीं रह गयी है। क्योंकि चुनाव होकर उसके परिणाम भी सामने आ चुके हैं ऐसे में और भी कई प्रकरण हैं जो भाजपा नेतृत्व की मंशा पर ही सवाल खड़े करते हैं।