Friday, 19 September 2025
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वित्त वर्ष के दो माह में ही खजाना खाली क्यों हो गया?

  • मार्च 2021 में वित्त विभाग ने जो आकलन विधानसभा में रखे थे वह सही क्यों नहीं उतरे
  • 13000 करोड़ की अनुपूरक मांगे आने से बजट की विश्वसनीयता कहां बची?
  • यह 13000 करोड़ का खर्च कहां से पूरा किया गया क्या कर्ज लिया गया या टैक्स लगाया गया

शिमला/शैल। वित्तीय वर्ष के तीसरे माह ही सुक्खू सरकार का खजाना खाली हो गया है। आधा दर्जन निगमों बोर्डों और कुछ विभागों के आउटसोर्स कर्मचारियों को वेतन तक नहीं मिल पाया है। हजारों करोड़ का ठेकेदारों का भुगतान रुक गया है। मुख्य सचिव के मुताबिक एक हजार करोड़ का घाटा चल रहा है। इस घाटे को पाटने के लिए 800 करोड का कर्ज लिया गया है। जिसके बावजूद दो सौ करोड़ का घाटा चलता रहेगा और परिणामतः इतने भुगतान रुकते रहेंगे। सरकार का आरोप है कि केन्द्र ने प्रदेश की कर्ज लेने की सीमा में 5500 करोड़ की कटौती करके राज्य सरकार के हाथ बांध दिये हैं। इसलिये यह संकट खड़ा हुआ है। केन्द्र सरकार ने कुछ राज्यों की कर्ज लेने की सीमा में कटौती की है। हिमाचल पहले 14500 करोड का कर्ज ले पाता था जो अब केवल नौ हजार करोड ही ले पायेगा। स्मरणीय है कि केन्द्र ने कोविड के लॉकडाउन काल में राज्यों के कर्ज लेने की सीमा में बढ़ौतरी की थी जिसे अब वापस लिया गया है। सुक्खू सरकार ने सत्ता संभालते ही प्रदेश में श्रीलंका जैसे हालत होने की चेतावनी जनता को दी थी। स्वभाविक है कि यह चेतावनी प्रशासन से वित्तीय फीडबैक मिलने के आधार पर ही दी गयी होगी। यह चेतावनी अपने में ही एक असाधारण स्थिति का संकेत थी।
लेकिन क्या सरकार का अपना आचरण इस चेतावनी के मुताबिक रहा है? क्या सरकार ने अनावश्यक खर्चों पर कोई लगाम लगायी? क्या सरकार बनने पर नयी और महंगी गाड़ियां नहीं खरीदी गयी? कितने समय तक तो रिपेयर के काम ही चलते रहे बल्कि इस आशय के बजट सत्र में विधायक रणधीर शर्मा के प्रश्न के जवाब में यह कहा गया कि अभी सूचना एकत्रित की जा रही है। जब प्रदेश की वित्तीय स्थिति श्रीलंका जैसी होने की आशंका उभर आयी थी तो फिर मुख्य संसदीय सचिवों और करीब आधा दर्जन कैबिनेट रैंक नियुक्तियों का बोझ प्रदेश पर क्यों डाला गया? यह सारे सवाल अब खजाना खाली होने का समाचार बाहर आने के बाद जवाब के लिये खड़े हो गये हैं। क्योंकि खजाना खाली होने का असर किसी मन्त्री या बड़े अधिकारी पर नहीं पड़ेगा। इससे किसी छोटे कर्मचारी/आउटसोर्स कर्मचारी या किसी छोटे अखबार पर व्यावहारिक रूप से पड़ेगा। सरकार पर तो वोट के समय असर पड़ेगा।
सुक्खू सरकार ने जब सत्ता संभाली थी तब प्रदेश के कर्ज और देनदारियों के आंकड़े जारी करते हुए प्रदेश की वित्तीय स्थिति पर श्वेत पत्र जारी करने की बात की थी जो बजट सत्र में नहीं आया। अब जब खजाना खाली होने के समाचार सामने आ गये हैं तब एक बार फिर श्वेत पत्र लाने की चर्चा चल पड़ी है। इसलिये कुछ वित्तीय प्रश्न उठाने आवश्यक हो जाते हैं। नयी सरकार का शपथ ग्रहण 11 दिसम्बर को हुआ 12 दिसम्बर को पिछले छः माह के फैसले बदले गये। तभी डीजल पर 3 रूपये वैट बढ़ाने का फैसला लिया गया। दिसम्बर से फरवरी तक कई सेवाओं और वस्तुओं के दाम बढ़ाये गये। कर्ज तक लिया गया। जब बजट सत्र शुरू हुआ तो तेरह हजार करोड़ की अनुपूरक मांगे लाकर वर्ष 2022ं-23 के खर्चे पूरे किये गये। उसके बाद वर्ष 2023-24 का बजट पारित हुआ। क्या वर्ष 2022-23 की अनुपूरक मांगे या वर्ष 2023-24 का बजट पारित करते हुये ऐसा कोई संकेत दिया गया था कि दो माह बाद ही खजाना खाली हो जायेगा। क्योंकि जब इतनी बड़ी अनुपूरक मांगे पारित की गयी थी तब यह नहीं माना गया था कि इससे वर्ष 2022-23 के बजट का आकार बढ़ गया है।
स्मरणीय है कि 6 मार्च 2021 को विधानसभा में एफ.आर.बी.एम. प्रावधानों के तहत वर्ष 2024-25 तक जो लक्ष्य वित्त विभाग द्वारा प्रस्तुत किये गये थे वह कितने सही निकले हैं इस पर अब कोई सवाल क्यों नहीं उठाया गया है। इन लक्ष्यों के मुताबिक वर्ष 2023-24 के लिये राजस्व प्राप्तियां 41438.73 करोड आंकी गयी थी। लेकिन बजट में यह प्राप्तियां 37999.87 करोड़ रखी गयी है यह अन्तर क्यों आया? इसी तरह राजस्व व्यय 43984.32 करोड़ दिखाया गया था जो बजट दस्तावेजों 42704.00 करोड दिखाया गया है जो लक्ष्य से करीब एक हजार करोड़ कम है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि मार्च 2021 में राजस्व आय और व्यय के जो लक्ष्य सदन में रखे गये थे वह मार्च 2023 में बदल कैसे गये। यही स्थिति वर्ष 2022-23 में रही है। वित्त विभाग के आकलनों में इतना अन्तर क्यों आया? क्या इसके लिये कोई जिम्मेदारी तय की गयी? किन विभागों की परफॉरमैन्स लक्ष्यों के अनुरूप नहीं रही है। इसी परिपेक्ष में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि वित्त विभाग के वर्तमान आकलनों पर भी कैसे निर्भरता बनाई जा सकती है।
क्योंकि केन्द्र सरकार सितम्बर 2020 से राज्य सरकार को अपने खर्चों में कटौती करने की चेतावनी देती रही है। लेकिन इस चेतावनी को नजरअन्दाज किया जाता रहा। कर्ज लेकर घी पीने को चरितार्थ किया जाता रहा। इस समय सरकार का आउटस्टैंडिंग क़र्ज़ ही जी.डी.पी. का करीब 40ः हो चुका है। ऐसे में अब जब कर्ज की सीमा में कटौती कर दी गयी है और सरकार का खजाना खाली चल रहा है तो गारंटीयां पूरी कर पाना बहुत कठिन हो जायेगा। सरकार जिन संसाधनों से संसाधन बढ़ाने के प्रयास कर रही है उनके व्यवहारिक परिणाम इसी कार्यकाल में आ पायेंगे इसको लेकर संदेह व्यक्त किया जा रहा है। माना जा रहा है कि अधिकारियों की ओर से सरकार को सही राय नहीं मिल रही है।

 

 

यह है मार्च 2021 के आकलन

 

 

 

 

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