Friday, 19 September 2025
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क्या मुख्य संसदीय सचिव त्यागपत्र देंगे

  • सन्मन न लेने की रिपोर्ट आने पर उच्च न्यायालय ने कहा सम्मन तामिल समझे जायें
  • उच्च न्यायालय पहले भी रद्द का चुका है ऐसी नियुक्तियां
  • सर्वोच्च न्यायालय जुलाई 2017 में ही कह चुका कि राज्य विधायिका को ऐसा कानून बनाने का अधिकार नहीं है

शिमला/शैल। सुक्खु सरकार द्वारा नियुक्त मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियों को चुनौती देती हुई तीन याचिकाएं प्रदेश उच्च न्यायालय में विचाराधीन चल रही हैं। इस मामले की अगली तारीख 18 सितम्बर को है और उसी दिन से प्रदेश विधानसभा का सत्र भी शुरू हो रहा है। इन याचिकाओं में एक याचिका भाजपा विधायकों सर्व़श्री सतपाल सिंह सती, विपिन सिंह परमार, रणधीर शर्मा, डॉ. हंसराज, बलबीर वर्मा, राकेश जमवाल, इन्द्र सिंह गांधी, सुरेन्द्र शोरी, त्रिलोक जम्वाल, डॉ. जनक राज, लोकेन्द्र कुमार और दीपराज द्वारा दायर की गयी है। स्पष्ट है कि जब भाजपा के एक दर्जन विधायकों द्वारा यह याचिका दायर की गयी है तो यह पार्टी का सुविचारित फैसला रहा होगा। स्मरणीय है कि एक बार स्व. वीरभद्र सिंह के कार्यकाल में भी ऐसी नियुक्तियां की गयी थी और उन्हें एक देशबन्धु सूद ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी कि यह नियुक्तियां संविधान का उल्लंघन करती है। उच्च न्यायालय ने यह नियुक्तियां रद्द कर दी थी और इन लोगों को तत्काल प्रभाव से पद मुक्त कर दिया गया था। उच्च न्यायालय के इस फैसले के खिलाफ सरकार सर्वाेच्च न्यायालय में अपील से चली गयी थी। हिमाचल की यह अपील असम के मामलों के साथ संलग्न कर दी गयी थी क्योंकि असम में भी ऐसी ही नियुक्तियां हुई थी। इस मामले का फैसला जुलाई 2017 में आ गया और सर्वाेच्च न्यायालय ने यह कहा कि राज्य विधानसभा इस तरह का कानून बनाने के लिए सक्ष्म ही नहीं है। इस परिदृश्य में यह माना जा रहा है कि वर्तमान नियुक्तियां भी रद्द होगी ही।
कानून की इस पृष्ठभूमि के बाद भी हिमाचल में ऐसी नियुक्तियां करने की अनिवार्यता क्यों आ पड़ी यह प्रश्न अब तक रहस्य बना हुआ है। क्यास लगाये जा रहे हैं कि कहीं उस समय ऑपरेशन कमल का डर तो नहीं हो गया था। क्योंकि जब इन नियुक्तियों को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी और अदालत की ओर से सम्मन जारी हो गये तब मामले को लम्बाने की नीयत से इस आश्य के सम्मनों की तामिल को चलने के प्रयास किये गये। ऐसे प्रयास जानबूझकर किये जाने का खुलासा पिछली पेशी में अदालत में उस समय सामने आ गया जब अदालत के सामने सम्मन तामील करवाने गये अधिकारी की यह लिखित रिपोर्ट सामने आ गयी की 15-5- 2023 को संजय अवस्थी के कार्यालय जाकर उन्हें सम्मन दिया और उन्होंने पढ़ा तथा लेने से इन्कार कर दिया। सम्मन सरवर की इस रिपोर्ट का संज्ञान लेकर अदालत ने यह सुना दिया कि सम्मन सर्व हुये समझ जायें। क्योंकि अदालत में यह आया की कल्पना देवी की याचिका पर सम्मन तामिल हो चुके हैं। तीनों ही यचिकाओं का मुद्दा एक ही है। इसलिये अदालत ने सब याचिकाओं को एक साथ क्लब कर दिया है। इस वस्तु स्थिति में यह सवाल अहम हो जाता है कि भाजपा विधायकों की याचिका पर जारी हुये सम्मनों की तमिल को ही मुख्य संसदीय सचिव टालने और लम्बाने का प्रयास क्यों कर रहे थे। क्या उन्हें ऐसा करने की कोई कानूनी सलाह दी गयी थी या राजनीतिक स्तर पर ऐसा फैसला लिया गया था। भाजपा के एक दर्जन विधायकों की इस याचिका का अर्थ है कि यह पार्टी का बड़े स्तर पर लिया गया फैसला रहा है। ऐसी नियुक्तियां पहले भी रद्द हुई हैं और सर्वाेच्च न्यायालय का फैसला स्पष्ट है। भाजपा की याचिका में इन नियुक्तियों को रद्द करने के साथ ही इन लोगों को अयोग्य घोषित करने की भी गुहार लगायी गयी है। ऐसा माना जा रहा है कि भाजपा ने कानूनी स्थिति को समझ कर ही ऑपरेशन कमल का प्रयास करने की जगह अदालत में यह याचिका दायर करने का फैसला लिया है। क्योंकि यदि अदालत इन नियुक्तियों को रद्द करने के साथ ही इन लोगों को अयोग्य भी घोषित कर देती है तो राजनीतिक समीकरण एकदम से बदल जायेंगे। इनके स्थान पर नये चुनाव करवाने की बाध्यता आ जायेगी। भाजपा ने उस अधिनियम को भी निरस्त करने का आग्रह किया है जिसके तहत इन्हें लाभ के पद के दायरे से बाहर रखा गया था। जिस तरह एक सम्मनों की तामिल को टाला जा रहा था उससे अदालत की सहानुभूति मिलने पर भी प्रश्न चिन्ह लग जाता है। क्योंकि जब ऐसे पदों पर बैठे हुये लोग भी अदालत के प्रति इस तरह का व्यवहार रखेंगे तो उसका आम आदमी पर क्या प्रभाव पड़ेगा। भाजपा इस याचिका को लोकसभा चुनाव में लाभ लेने का पूरा प्रयास करेगी। अब जब चुनाव तय समय से पहले होने की चर्चाएं चल पड़ी है तब इस मामले को शीघ्र फैसले तक पहुंचाने के प्रयास भी किये ही जाएंगे। ऐसे में भाजपा की गुहार पर भी नजर डालना आवश्यक हो जाता है। कुछ विश्लेषकों का मानना है की अयोग्यता के तमगे से बचने के लिये यह लोग अपने पदों से त्यागपत्र भी दे सकते हैं।

यह है प्रार्थना

In view of the above, it is respectfully prayed as follows:
A. A writ of Mandamus or any other appropriate Writ or order or direction may be passed directing Respondent no. 1 and Respondent no. 3 to bring the entire record related to Respondent no. 4 to respondent no. 10; AND;
B. A writ Mandamus or any other appropriate Writ or order or direction may be passed to set-aside the Notification dated 11.01.2023 (Annexure P-4) qua the designation of the Deputy Chief Minister upon the Respondent no. 4 as illegal and unconstitutional; AND
C. A writ Mandamus or any other appropriate Writ or order or direction may be passed to the Respondent No. 1 to recover the money spent toward the consequential benefits including the salary given to the Respondent No. 4 to the extent of benefits given above than the designation to the Minister of State.
D. A writ of Mandamus or any other appropriate Writ or order or direction may be passed to restrain the Respondent no. 4 to participate in any Cabinet Meeting.
E. A writ of Mandamus or any other appropriate Writ or order or direction may be passed to quash the Himachal Pradesh Parliamentary Secretaries (Appointment, Salaries, Allowances, Powers, Privileges & Amenities) Act, 2006 along with all the subsequent actions undertaken including the appointments of Respondent no. 5 to Respondent no. 10, as being illegal, irrational and unconstitutional; AND
F. A writ of Mandamus or any other appropriate Writ or order or direction may be passed to quash Section 3(d) The Himachal Pradesh Legislative Assembly Members (Removal of Disqualifications) Act, 1971 as being illegal, irrational, and unconstitutional; AND
G. Any other appropriate writ, order or direction as may be deemed fit.

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