Friday, 19 September 2025
Blue Red Green
Home देश कांग्रेस की गारंटियों पर भाजपा हुई आक्रामक

ShareThis for Joomla!

कांग्रेस की गारंटियों पर भाजपा हुई आक्रामक

  • सुक्खू का व्यवस्था परिवर्तन हाईकमान के गले की फांस बना
  • डॉ. संबित पात्रा की वार्ता के बाद गारंटीयां बनी मूद्दा
  • जय राम, बिन्दल और अनुराग सभी हुए हमलावर

शिमला/शैल। क्या सुक्खू सरकार का व्यवस्था परिवर्तन और विधानसभा चुनाव में जारी की गयी गारंटीयों पर अब तक अमल न हो पाना अब हाईकमान के लिए भी राष्ट्रीय स्तर पर गले की फांस बनता जा रहा है। यह सवाल इसलिये प्रासंगिक हो गया है कि जिन पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं उन राज्यों में भी कांग्रेस मतदाताओं से इसी तर्ज पर कुछ वायदे करने जा रही है। भाजपा कांग्रेस के वादों पर हिमाचल का उदाहरण देते हुए यह सवाल कर रही है कि जब हिमाचल में ही किये हुये वायदों पर अमल करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया जा सका है तो ऐसे में इन राज्यों में किये जा रहे वायदों पर कैसे विश्वास किया जा सकता है। हिमाचल से ही ताल्लुक रखने वाले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और सूचना एवं प्रसारण तथा युवा सेवाएं और खेल मंत्री अनुराग ठाकुर इन गारंटीयों के नाम पर काफी आक्रामक हुये पड़े हैं। गौरतलब है कि प्रदेश में गारंटीयों को लेकर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. राजीव बिन्दल और नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने जब प्रदेश में इन गारंटीयों को लेकर सुक्खू सरकार को घेरना शुरू किया तो इसका संज्ञान लेते हुये भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉक्टर संबित पात्रा ने भी प्रदेश का रुख कर लिया। डॉ. पात्रा ने सारी स्थिति का अध्ययन करके शिमला में एक पत्रकारवार्ता करके प्रदेश सरकार से गारंटीयों पर कड़े सवाल पूछ लिये। डॉ. पात्रा ने इन गारंटीयों को लेकर कांग्रेस की राष्ट्रीय महामंत्री प्रियंका गांधी को भी घेर दिया। क्योंकि कुछ गारंटीयों के वायदे उनसे भी करवा दिये गये थे। लेकिन डॉ. पात्रा के सवालों का जवाब प्रदेश सरकार और संगठन की ओर से कोई नहीं दे पाया। क्योंकि जमीनी सच्चाई यही है की गारंटीयों पर अमल की दृष्टि से कोई काम हुआ ही नहीं है।
बल्कि जिस व्यवस्था परिवर्तन को एक बड़े नारे के रूप में उछाला गया था आज कांग्रेस के मंत्री और दूसरे नेता इस व्यवस्था परिवर्तन को परिभाषित करने से भी डर रहे हैं। क्योंकि व्यवहारिक तौर पर यह व्यवस्था परिवर्तन पिछली भाजपा सरकार द्वारा चलाई गई व्यवस्था को ही ढोये रखने का पर्याय बन कर रह गया है। आज आम सवाल पूछा जा रहा है कि जिन अधिकारियों को लेकर कांग्रेस बतौर विपक्ष कड़े सवाल सदन में उठा चुकी है वही अधिकारी इस सरकार के भी अति विश्वस्तों की सूची में पहले स्थान पर हैं। सत्ता परिवर्तन होते ही बड़े स्तर पर पहले दस दिन में ही प्रशासनिक फेरबदल हो जाता था और जनता में भी सत्ता परिवर्तन का सन्देश चला जाता था। लेकिन व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर इस सरकार ने शिमला के जिलाधीश तक को नहीं बदला। इसी व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर यह सरकार कांग्रेस द्वारा विधानसभा चुनावों के दौरान जारी किये गये आरोप पत्र को आज तक विजिलैन्स को जांच के लिये नहीं भेज पायी है। भ्रष्टाचार को संरक्षण देना शायद इस सरकार की नीयत और नीति दोनों बन गयी है। जिस पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष राजेंद्र राणा को विधानसभा में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के भ्रष्टाचार को लेकर पूछे गये अपने ही सवाल को अन्तिम क्षणों में वापस लेना पड़ा हो वहां भ्रष्टाचार की क्या स्थिति होगी और भ्रष्टाचारी कितने पावरफुल होंगे इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
आज हिमाचल सरकार कांग्रेस की कार्यपद्धति और उसके चुनावी वायदों की व्यवहारिकता का ऐसा प्रमाण पत्र राष्ट्रीय स्तर पर अपने आप ही खड़ा हो गया जिसका कोई जवाब किसी नेता के पास नहीं रह गया है। इस समय कांग्रेस का कोई भी छोटा बड़ा नेता भाजपा के खिलाफ एक शब्द भी बोल पाने की स्थिति में नहीं रहा गया है। जिन सवालों पर यही कांग्रेस भाजपा को सदन में घेरती थी आज एक भी सवाल पूछने का सहास नही कर पा रही है। आज राष्ट्रीय स्तर पर मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका सुप्रीम कोर्ट में खारिज होने से विपक्षी राजनीति के समीकरणों में जो बदलाव आया उसके परिदृश्य में कांग्रेस को अपनी राज्य सरकारों पर कड़ी नजर रखने की आवश्यकता है क्योंकि इन्हीं सरकारों की कारगुजारी राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के लिए गुण दोष सिद्ध होंगी। क्योंकि भाजपा ने सुक्खू सरकार की कथनी और करनी को ऐसे समय राष्ट्रीय प्रश्न बना दिया है जब मुख्यमंत्री स्वस्थ्य कारणों से एम्स में दाखिल है और भाजपा के किसी भी सवाल का सीधे जवाब देने की स्थिति में नहीं है। पांच राज्यों का चुनाव जीतने के लिये भाजपा जिस तरह की गेम प्ले करने पर आ गयी है उसके परिदृश्य में हिमाचल में भी भाजपा द्वारा ऑपरेशन कमल की विसात बिछाने को नजरअन्दाज करना आसान नहीं होगा। क्योंकि मुख्य संसदीय सचिवों का मामला प्रदेश उच्च न्यायालय में चल ही रहा है।


Add comment


Security code
Refresh

Facebook



  Search