क्या कांग्रेस लोस की चारों सीटें जीत पायेगी?
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Created on Tuesday, 02 January 2024 12:28
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Written by Shail Samachar
- सरकार के फैसलों और योजनाओं का दम भरने वाला कोई भी मंत्री उम्मीदवार बनने को तैयार होगा
- नये मंत्रियों को अब तक विभागों का आवंटन न हो पाना क्या सरकार के अन्दर का आईना नहीं है।
शिमला/शैल। क्या सुक्खू सरकार और कांग्रेस संगठन प्रदेश की चारों सीटों पर जीत दर्ज कर पायेगी? यह सवाल पिछले दिनों प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं की दिल्ली में हाईकमान द्वारा बलायी गयी बैठक के बाद चर्चा में आया है। क्योंकि हाईकमान ने कांग्रेस की सरकार होने के नाते चारों सीटें जीतने का लक्ष्य सरकार को दिया है। हाईकमान कि यह अपेक्षा अव्यवहारिक भी नहीं है। क्योंकि कांग्रेस ने भाजपा सरकार के समय दो नगर निगमों और फिर मंडी लोकसभा के उपचुनाव में जीत हासिल की है। ऐसे में आज कांग्रेस की सरकार की परीक्षा होगी यह आने वाले लोकसभा चुनाव। विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने एक प्रतिशत से भी कम अंतर से जीते हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि इस एक वर्ष में सरकार ने अपनी वर्किंग से भाजपा को और कितना हशिये पर धकेला है। स्मरणीय है कि जब सुक्खू सरकार ने सत्ता संभाली थी तब जनता के सामने प्रदेश के हालात श्रीलंका जैसे होने की चेतावनी दी थी। इसी चेतावनी के परिदृश्य में पिछली सरकार के अंतिम छः माह में लिये फैसले बदलते हुये छः सौ से अधिक संस्थान बंद कर दिये। चुनाव में दी गारंटियों पर यह कहा कि पांच वर्षों में उन्हें पूरा किया जायेगा। प्रदेश की जनता के सामने श्रीलंका जैसे हालात हो जाने की स्थिति रखी गयी थी। तब यह उम्मीद बंधी थी कि सरकार अपने अनावश्यक खर्चों पर लगाम लगाते हुये एक उदाहरण प्रस्तुत करेगी। लेकिन जब ऐसे वक्तव्य के बाद मंत्रिमंडल के पहले विस्तार से दो घंटे पूर्व छः मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्तियां कर दी तब जनता को पहला झटका लगा। उसके बाद जब एक दर्जन से अधिक गैर विधायकों को कैबिनेट रैंक में सलाहकार प्रधान सलाहकार और ओएसडी बनाकर ताजपोशियां की गयी तब दूसरा झटका लगा। सरकार की कथनी और करनी पर सवाल उठने शुरू हो गये क्योंकि ऐसी नियुक्तियों की न कोई राजनीतिक आवश्यकता थी और न ही प्रशासनिक। इन नियुक्तियों पर अनचाहे ही यह संदेश चला गया है कि मुख्यमंत्री अपने मित्रों के ज्यादा दबाव में आ गये हैं। वितिय मुहाने पर स्थिति संभालने के लिये पेट्रोल-डीजल पर वैट बढ़ाने के साथ ही हर सेवा और वस्तु के दाम बढ़ा दिये गये। जिस महंगाई से लोग निजात पाने की उम्मीद कर रहे थे उसे और बढ़ाने में सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी। यही नहीं प्रदेश को कर्ज के चक्रव्यूह में डालने का जो आरोप पूर्व सरकार को लगाया जा रहा था उसे स्वयं कर्ज लेकर और आगे बढ़ा दिया गया। अब तक के कार्यकाल में ही बारह हजार करोड़ से अधिक का कर्ज ले लिया गया है। इतना कर्ज लेने के बाद भी कर्मचारियों को समय पर वेतन और पैन्शन का भुगतान नहीं हो पा रहा है। कैग ने भी 2022-23 की अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट कर दिया है कि 2022-23 की अंतिम तिमाही में ज्यादा कर्ज लेने से इस वित्तीय वर्ष का कर्ज बड़ा है। जबकि नियमों के अनुसार सरकार अपने राजस्व के लिये कर्ज नहीं ले सकती। ऐसे में यह सवाल आने वाले समय में उठेगा ही की आखिर इतना कर्ज खर्च कहां किया गया। प्रशासनिक स्तर पर सुक्खू सरकार ने उसी शीर्ष प्रशासन को यथास्थान बनाये रखा जो भाजपा का विश्वस्त था। यह सब व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर किया गया। यह प्रशासन जनता के प्रति कितना संवेदनशील और जवाबदेह रहा है उसका एक उदाहरण डीजीपी कुंडू प्रकरण में सामने आ गया है। राजनीतिक मंच पर सरकार और संगठन में किस तरह का तालमेल है यह कांग्रेस अध्यक्षा और पूर्व अध्यक्षों कुलदीप राठौर तथा कॉल सिंह ठाकुर के ब्यानों से सामने आता ही रहा है। इन संबंधों की पुष्टि अब नव नियुक्त मंत्रियों को अब तक विभागों का बंटवारा न हो पाने से हो जाती है। युवाओं को कितना रोजगार यह सरकार अब तक दे पायी है इसका खुलासा विधानसभा में इस आश्य के आये सवाल के उत्तर से हो जाता है। जिसमें कहा गया कि अभी सूचना एकत्रित की जा रही है। इस वस्तुस्थिति में आने वाले लोकसभा चुनाव के लिये कांग्रेस का कौन सा कार्यकर्ता चुनाव में जीत का वायदा करके उम्मीदवार बनने को तैयार हो पायेगा। कार्यकर्ताओं में चल रही चर्चाओं को यदि अधिमान दिया जाये तो संभव है कि उनकी ओर से यह सुझाव आ जाये कि सरकार की जिन योजनाओं और फैसलों को जनता में ले जाने की बात कर रहे हैं उन्हें जनता को अच्छे से समझा पाने में मंत्रियों से ज्यादा उपयुक्त कौन हो सकता है। इसके लिये हर सीट से किसी मंत्री को ही उम्मीदवार बनाया जाये और यह काम शीर्ष से ही शुरू हो। यदि कोई मंत्री उम्मीदवार बनने के लिये अपनी इच्छा से तैयार नहीं होता है तो उसी से सरकार की कथनी और करनी सामने आ जायेगी।
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