शिमला/शैल। प्रदेश पर्यटन निगम के पूर्व कर्मचारी नेता ओम प्रकाश गोयल एक लम्बे अरसे से निगम में करोडों के केन्द्रिय धन के दुरूपयोग और उसमें घपला होने के आरोप लगाते आ रहे हैं। यह आरोप लगाने की उन्होने बड़ी कीमत भी चुकायी है लेकिन निगम में फैले भ्रष्टाचार को बेनकाव करने के मुद्दे से पीछे नही हटे हैं। गोयल ने जो भी आरोप लगाये हैं उनके साथ आरटीआई के माध्यम से जुटाये दस्तवेजी प्रमाण भी साथ लगाये हैं। इन आरोपों को लेकर 2002 में प्रदेश उच्च न्यायालय का दरवाजा भी खटखटा चुके हैं। इस याचिका पर 13.3.2003 को फैसला आया था जिसमें निगम को कुछ निर्देश भी जारी हुए थे। गोयल का आरोप है कि उच्च न्यायालय के निर्देशों की भी अनुपालना नही की गयी है। गोयल के आरोपों पर निगम के निदेशक मण्डल और मुख्यमंत्री द्वारा भी कोई कारवाई न किये जाने के बाद ही उसने 20 मई 2016 को राष्ट्रपति प्रधानमंत्री, राज्यपाल, शांता कुमार, आप के राष्ट्रीय प्रवक्ता संजय सिंह और राजन सुशांत के नाम शिकायत भेजी। इस शिकायत पर क्या कारवाई हुई है इसकी जानकारी भी आरटीआई के माध्यम से मांगी गयी है। 20 मई को भेजी शिकायत के बाद गोयल ने सितम्बर में कुछ और तथ्यों के साथ एक और शिकायत राष्ट्रपति , प्रधानमंत्री, सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायधीश, प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्यन्यायधीश केन्द्रिय वित्त मंत्री, केन्द्र के केबिनेट सैक्रेटरी, सीएजी निदेशक सीबीआई और केन्द्रिय वित्त मंत्री केन्द्रिय पर्यटन सचिव को भेजी है। अब यह शिकायत सीबीआई ने प्रदेश विजिलैन्स को भेज दी है। सूत्रों के मुताबिक केन्द्रिय पर्यटन मन्त्रालय में भी इन आरापों को लेकर एक तीन सदस्यीय जांच कमेटी गठित की गयी है।
गोयल के आरोपों के मुताबिक 2001 से 2002 के बीच प्रबन्धन निदेशक ने होटल पीटरहाॅफ में अपने मेहमानों को ठहराया जिनका खर्च निगम ने उठाया। इसी दौरान पर्यटन निगम ने कर्मचारियों का सी पी एफ जमा नही करवाया और उसके लिये निगम को 72 लाख का जुर्माना भरना पडा है। केन्द्र की सहयता से खड़ा पत्थर के होटल गिरी गंगा प्रौजैक्ट को 31 .12.2001 को 39.30 लाख में पूरा होकर इस्तेमाल में भी आ चुका होना दिखा दिया गया। जबकि जब 24.10.2005 को निगम के निदेशक मण्डल की वीरभद्र सिंह की अध्यक्षता में हुई बैठक में इस प्रौजैक्ट को पूरा करने के निर्देश दिये जाते हैं। अन्त में 25.6.2006 को इसी प्रौजैक्ट को 1,38,84,076 रूपये में पूरा हुआ दिखाया जाता है। इन आंकडों से प्रबन्धन की नीयत और नीति का खुलासा हो जाता है। जो प्रौजैक्ट 31.12.2001 को 39.30 में पूरा हुआ दिखाया जाता है वह 2006 में एक करोड़ से भी अधिक को पहुंच जाता है जिस पर क्यांे और कैसे के सवाल उठना स्वाभाविक है। गोयल ने मार्च 2003 के उच्च न्यायालय के फैसले के निर्देशों पर अमल न होने पर अवमानना याचिका दायर की थी। इस पर तत्कालीन सचिव पर्यटन अशोक ठाकुर ने अदालत में दायर जवाब में छः करोड तय कार्यो से अनयत्र खर्च होना स्वीकार किया है। सुंगरी प्रौजेक्ट को लेकर भी गंभीर आरोप लगाये गये हैं। इस प्रौजैक्ट के लिये 26396 को भारत सरकार से 46,11,600 रूपये स्वीकृति होने हैं तीन लाख प्रदेश सरकार देती है 31.12.2009 को भारत सरकार को भेजे प्रमाण पत्रों में यह प्रौजेक्ट पूरा हो जाता है। लेकिन 2006 में जब मुख्यमंत्री यहां आते हैं तो इसे अधूरा पाते हैं। इसे पूरा करने के लिये इसको लोक निमार्ण को देने की बात करते हैं। इन निेर्देशों पर लोक निमार्ण विभाग पर्यटन से मिल कर इसकी प्रक्रिया पूरी करते हैं और लोक निमार्ण विभाग इसको पूरा करने के लिये 76 लाख का अनुमान देते है।
इस तरह पर्यटन में जितने भी प्रौजेक्टों के लिये केन्द्र से पैसा आता है उसे प्राप्त करने के लिये उपयोगिता प्रमाण पत्र और कमीशनिंग तक के सर्टीफिकेट भेज दिये जाते हैं और इनके आधार पर केन्द्र से सहायता की अन्तिम किश्त भी प्राप्त कर ली जाती है। लेकिन बाद में यह सारे प्रौजेक्ट अधूरे पाये जाते हैं। और इनकी लागत कई गुणा बढ़ जाती है। इससे केन्द्र को भेजे गयेे सारे प्रमाण पत्रों की प्रमाणिकता पर ही प्रश्न चिन्ह लग जाता है। यह प्रश्न चिन्ह लगाना केन्द्र के धन का सीधा दुरूपयोग बन जाता है। गोयल के मुताबिक पर्यटन में केन्द्र के करीब दस करोड़ के दुरूपयोग के दस्तावेजी प्रमाण उन्होने शिकायतों के साथ भेजे हैं। केन्द्र के धन के इस तरह के दुरूपयोग का कड़ा संज्ञान लेते हुए सीबीआई ने इसकी जांच विजिलैन्स को भेजी है। अब वीरभद्र की विजिलैन्स गोयल की इन शिकायतों पर कितनी और क्या कारवाई करती है। इस पर सबकी निगाहें लगी हुई है क्योंकि पर्यटन मन्त्री मुख्यमन्त्री स्वयं है और मुख्यसचिव ही पर्यटन सविच भी हैं। गोयल ने दावा किया है कि इन शिकायतों को ठीक अंजाम तक पहुंचाने के लिये वह हर लड़ाई लड़ने के लिय तैयार हैं। इस संद्धर्भ में उसने सभी संवंद्ध अदारों से आरटीआई के तहत उसकी शिकायतों पर हुई कारवाई की जानकारी भी मांग रखी है। जिन अधिकारियों के खिलाफ गोयल की शिकायतें है वह सब मुख्यमंत्री के अतिविश्वस्तों में गिने जाते हैं। मामला केन्द्र के धन का है। जिसके लिये अधिकारियों पर झूठे उपयोगिता प्रमाण पत्र सौपने का आरोप है।