शिमला/शैल। आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमन्त्री अरविन्द केजरीवाल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नोट बंदी के फैसले को एक बड़ा घोटाला करार दे रहे हैं। उनका आरोप है कि भाजपा में कुछ को इस फैसले की पूर्व जानकारी थी और उन्होने फैसला घोषित होने तक अपने कालेधन को ठिकाने लगा दिया था। इस आरोप के लिये उनका तर्क है कि पूर्व जानकारी होने के कारण ही यह लोग बैंको के आगे लगी लाईनों में खडे होते नजर नही आ रहे हैं। इनका मानना है कि नोटबंदी के फैसले से कालेधन पर कोई फर्क नही पडे़गा क्योंकि कालाधन तो विदेशी बैंको में पडा है और जब तक इसे लाने के लिये कदम नही उठाये जायेंगे तब तक इस प्रयास के परिणाम
लेकिन केजरीवाल का घोटाला करार देना एक गंभीर आरोप है और सरकार की ओर से भी इसमें कोई संतोषजनक उत्तर सामने नही आ पाया है। केजरीवाल के आरोपों में इस कारण से दम नजर आता है कि नोटबंदी के फैसले से पहले और कालेधन तथा बेनामी संपत्ति की घोषणा के लिये रखी गयी अन्तिम समय सीमा 30 सितम्बर के बाद विक्कीलीकस के नाम से सोशल मीडिया में स्विस बैकों में कालाधन रखने वाले भारतीय की दो सूचियां जारी हुई हैं। दोनो सूचियों में 24, 24 लोगों के नाम दर्ज हैं। एक सूची में पहला नाम संघ प्रमुख मोहन भगावत का है। तो दूसरी सूची में पहला नाम कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का है। इन सूचीयों को लेकर न तो केन्द्र सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया आयी है और न ही संघ भाजपा और कांग्रेस की ओर से। जबकि इनमें इन्ही से ताल्लुक रखने वालों के नाम हैं। कालेधन पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों पर एसआईटी गठित है। वित्तमंत्री अरूण जेटली ने रजत शर्मा के आपकी अदालत कार्यक्रम में कालेधन पर पूछे गये सवाल में यह कहा था कि कालाधन रखने वालों के नामों की जानकारी दो -मैं उनके खिलाफ कारवाई करूंगा। इस परिदृश्य में विक्कीलीकस के हवाले से सोशल मीडिया में यह सूची जांच का विषय नही होनी चाहिये थी? विक्कीलीकस के नाम से चल रही इस खबर की प्रामाणिकता पर वायरल, सच की पड़ताल, करने वाले चैनल एबीपी न्यूज ने भी कोई पड़ताल नही की है। जबकि इस चैनल ने 2000 के नोट में प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी के सन्देश को अपनी पड़ताल में सही पाया है। दो हजार के नोट में प्रधान मन्त्री का देश के नाम संदेश क्यों दर्ज है। इसका भी कोई तर्क अभी तक सामने नही आया है।
इसी तरह एक और सवाल सोशल मीडिया में सामने आया है। इससे भी नोट बंदी के फैसले की कुछ लोगों को पूर्व जानकारी होने की ओर इशारा किया गया है। इसमें सवाल उठाया गया है कि नोटबंदी का फैसला आठ नवम्बर की रात को घोषित हुआ। प्रधानमन्त्री ने एक ब्यान में यह दावा किया है कि नये नोटों की छपाई का काम पिछले छः माह से चल रहा है। नोटों पर रिजर्व बैंक के गवर्नर के हस्ताक्षर होते हैं। रिजर्व बैंक के नये गवर्नर पटेल ने तो सितम्बर में कार्यभार संभाला है और नये नोटों पर पटेल के हस्ताक्षर हैं। यदि वास्तव में ही यह नये नोट सितम्बर से पहले ही छपने शुरू हो गये थे तो इन पर नये गवर्नर ऊर्जित पटेल के हस्ताक्षर होने का अर्थ हो जाता है कि उन्हे पूर्व जानकारी थी और उनके हस्ताक्षर पहले ही ले लिये गये थे। उर्जित पटेल अंबानी परिवार के दामाद कहे जा रहे हैं। अंबानी परिवार की प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी से नजदीकीयां 2014 के लोकसभा चुनावों से ही चर्चा में है। बल्कि अंबानी के जीयो सिम लांच को भी नोटबंदी के साथ जोड़ा गया है। नोटबंदी के तहत पुराने नोट बदलने की अन्तिम तारीख 30 दिसम्बर है जबकि जीयो सिम के लांच के तहत मिल रही फ्री इन्टरनैट सुविधा 31 दिसम्बर को खत्म हो रही है। जीयो सिम के लिये करोड़ो आधार कार्ड रिलांयस के पास पहुंचे हुए हैं। इन आधार कार्डो का प्रयोग कालेधन को सफेद करने के लिये होने की आशंका जताई जा रही है।
ऐसे में नोटबंदी के साथ सोशल मीडिया में चर्चित हो रहे इन सवालों पर सरकार की ओर से कोई भी अधिकारिक खण्डन न आने से केजरीवाल के आरोपों को स्वतः ही एक आधार मिल जाता है। यदि यह उठ रही आशंकाएं वास्तव में ही सही हैं तो निश्चित रूप से इस पूरे प्रकरण की जांच होना आवश्यक है। संसद में भी एक संसदीय कमेटी की जांच की मांग सभंवतः इन्ही सवालों के आधार पर आयी है। सरकार का इस संयुक्त जांच के लिये तैयार न होना इन आशंकाओं को और बल देगा। देश का आम आदमी सिद्धान्त रूप में इस फैसले के साथ खड़ा है लेकिन उसे इन आशंकाओं की गहन जानकारी नही है। केजरीवाल ने अपने आरोपों को लेकर जनता में जाने की घोषणा की है। केजरीवाल के सवाल भले ही आज जनधारणा के विपरीत हैं परन्तु इन सवालों को नजर अन्दाज करना भी घातक होगा।