Friday, 19 September 2025
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पहली ही बर्फबारी में चरमरायी सारी व्यवस्थाएं सरकार और प्रशासन की संवेदनशीलता पर उठे सवाल

शिमला/बलदेव शर्मा
वीरभद्र सिंह और उनके आश्रितों टीम लगातार दावे करती आ रही है कि कांग्रेस पुनः सत्तासीन होगी और वीरभद्र सिंह सातवीं बार प्रदेश के मुख्यमन्त्री बनेगे। राजनीति में ऐसे दावे किये जाना कोई नयी बात नही है। हर सत्तासीन पार्टी और उसका शीर्ष नेतृत्व ऐसे दावे करता ही है। जो दल और उसका नेतृत्व सही मायनों में जनता के लिये काम करता है उस पर जनता भरोसा भी करती है। उसकी सत्ता में वापसी भी सुनिश्चित करती है। देश के कई राज्य इसके गवाह पहली ही बर्फबारी में चरमरायी सारी व्यवस्थाएं सरकार और प्रशासन की संवेदनशीलता पर उठे सवाल पहली ही बर्फबारी में चरमरायी सारी व्यवस्थाएं सरकार और प्रशासन की संवेदनशीलता पर उठे सवाल है । लेकिन हिमाचल में डा. परमार के बाद कोई भी मुख्यमन्त्री लगातार दो बार सत्ता में नही रह पाया है जबकि हर बार दावे सत्ता में वापसी के किये जाते रहे हंै। सत्ता में वापसी सरकार का काम और उसके नेतृत्व की छवि सुनिश्चित करती है। उसका प्रशासन जन समस्याओं के प्रति कितना संवेदनशील और जवाबदेह होकर काम करता है सत्ता की वापसी का सबसे बड़ा मानक प्रमाणित होता है। लेकिन इस बार राजधानी शिमला में ही जिस तरह से पहली ही बर्फबारी में सारी आवश्यक सेवाएं और व्यवस्थाएं चरमरा गयी उससे न केवल कांग्रेस पार्टी और स्वंय वीरभद्र सिंह के दावों का खोखलापन सामने आया है बल्कि सरकार और नेतृत्व की नीयत तक पर सवाल उठ खडे़ हुए है।
शिमला प्रदेश की राजधानी है और बर्फबारी का जाना माना क्षेत्र है। यहां की बर्फबारी पर्यटकों के आकर्षण का बड़ा केन्द्र रहती है। शिमला सौंदर्यकरण पर एशियन विकास बैंक से 259 करोड़ का कर्ज लेकर खर्च किया जा रहा है। सौंदर्यकरण के नाम पर किये जा रहे विभिन्न कार्यो के लिये नियुक्त कन्सलटैन्टस पर ही 31.3.15 तक करीब 21 करोड़ खर्च किया जा चुका है। शहर को स्मार्टे सिटी बनाने के लिये पूरा अभियान चलाया जा रहा है। लेकिन आज तक हमारे यह विशेषज्ञ सलाहकार और सरकार का पूरा तन्त्र यह नही सोच पाया है कि शहर में बिजली, पानी और टेलीफोन जैसी आवश्यक सेवाओं की लाईनों को अन्डर ग्राऊंड किया जाना चाहिये। हर बरसात और बर्फबारी में पेड़ टुटते और गिरते हंै तथा इन लाईनों पर गिरते है। लेकिन आज तक इसके स्थायी समाधान का रास्ता नही निकाला गया है।
इस बार की बर्फवारी में राजधानी समेत पूरे प्रदेश में हाहाकार मच गया। राजधानी के अस्पतालों तक में बिजली गुल रही। बिजली न होने से पानी की सप्लाई बाधित रही। पहली बार है कि शहर में बर्फवारी के कारण करीब एक दर्जन मौतें हो गयी। नगर निगम प्रशासन ने कुछ आवश्यक रास्ते तो साफ कर दिये लेकिन उसके पास नियमित लेवर कम होने से सभी जगह के रास्ते तो साफ नही हो पाये। यदि एसपी शिमला ने शहर में आने वाले पर्यटकों की गाड़ियांें को बैरियर पर ही रैगुलेट न किया होता तो भारी जानमाल का नुकसान हो सकता था। बिजली और पानी न होने से मालरोड़ तक के रेस्तरां बन्द रहे। बिजली ने होने से बैंको में ट्रांजैक्शन तक नही हो पाये। ग्राहकों को न तो बैंको से और न ही एटीएम से पैसा मिल पाया। पूरा शहर भयानक अव्यवस्था का शिकार हो गया था। भराड़ी क्षेत्र में बिजली की मेन लाईन गिरने से आस-पास आग लगने तक का खतरा हो गया था। इतनी जोर की स्पार्किंग हुई की लोग घरों से बाहर निकल आये। लोगों के जानमाल को खतरा हो गया था। जब बिजली बोर्ड के जूनियर इंजिनियर को इसकी सूचना देकर मेन लाईन आॅफ करने को कहा गया तो उसका जवाब था कि ऐसा करने के उसको आदेश नही है। जेई के जवाब से स्थिति तनावपूर्ण हो गयी थी। लेकिन बोर्ड प्रशासन उस वक्त पूरी तरह हरकत में आया जब इसकी शिकायत विश्वविद्यालय के एक सेवानिवृत अधिकारी ठाकुर ने हाॅलीलाज तक पहुंचा दी। इस शिकायत के बाद नालागढ़ से रातों रात लेवर मंगवाकर तीसरे दिन लाईन को सुचारू किया जा सका है। शहर में सड़को पर गिरे पेडो को काटने और उठाने के लिये भी पर्याप्त नियमित लेवर नही थी। सारी आवश्यक सेवाओं को नियमित करने के लिये ठेकेदारों के माध्यम से लेवर का प्रबन्ध संबधित विभागों को करना पडा है।
इस बर्फबारी से शीर्ष प्रशासन की असफलता ख्ुालकर सामने आयी है क्योंकि किसी भी संबधित विभाग के पास नियमित रूप से वांच्छित लेवर है ही नही। संबधित विभागों की भूमिका सिर्फ ठेकेदारों का प्रबन्ध करने या सारी सेवाओं को आऊट सोर्स करने तक की रह गयी है इस बर्फबारी से यह झलका है कि शायद सारी सरकार ही आऊट सोर्स और ठेकेदारी के माध्यम से चल रही है क्योंकि जब प्रदेश की राजधानी में ही सामान्य जीवन ठप्प हो गया था उस समय राज्य के सचिवालय से अतिरिक्त मुख्य सचिव स्तर तक के लगभग सारे अधिकारी नदारद थे और प्रशासन को पूछने के लिये कोई मन्त्री तक अपने कार्यालयों में मौजूद नहीं था। बिजली मन्त्री इस पूरी त्रासदी में कहीं नजर नही आये। बल्कि मुख्यमन्त्री ने भीे एक ही दिन अपनी चिन्ता जताई और उसके बाद वह भी सचिवालय से बाहर ही रहे। इस बर्फबारी में जो कुछ अनुभव यहां रहने वालों का रहा है उसका परिणाम सरकार को नगर निगम चुनावों से लेकर विधानसभा चुनावों तक में भुगतना पड़ सकता है।

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