शिमला/बलदेव शर्मा
धर्मशाला प्रदेश की दूसरी राजधानी होगी मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के इस ऐलान से ही प्रदेश भर में इस पर एक बहस चालू हो गयी है। क्योंकि वीरभद्र के ऐलान के बाद यह मुद्दा विधानसभा पटल तक जा पहुंचा है। सरकार को इस आश्य की अधिसूचना तक जारी करनी पड़ गयी है। शिमला और मण्डी संसदीय क्षेत्रों के कई हिस्सों में वीरभद्र के इस फैसले का कड़ा विरोध भी सामने आने लग पड़ा है। संगठित तरीके से इसके विरोध की रूपरेखा तैयार की जा रही है। हमीरपुर और कांगड़ा के संसदीय क्षेत्रों में भी विधायक संजय रत्न और मन्त्री सुधीर शर्मा ही इस फैसले के मुखर पक्षधर होकर सामने आये हैं। जिन लोगों को प्रदेश की आर्थिक स्थिति का ज्ञान है वह इस फैसले पर वीरभद्र की राजनीतिक सूझबूझ पर ही प्रश्न उठाते नजर आ रहे हैं।
इस फैलसे के राजनीतिक आकलन के लिये इसमें जारी हुई अधिसूचना को ध्यान से पढ़ना आवश्यक है। अधिसूचना राज्यपाल को संविधान में धारा 154(1) प्रदत कार्यकारी शक्तियों के तहत मुख्यसचिव वीसी फारखा के आदेश से जारी हुई हैं। सरकार की सारी अधिसूचनांए राज्यपाल की इन शक्तियों के तहत ही जारी होती हैं। धर्मशाला को राजधानी बनाना एक ऐसा फैसला है जिसके वित्तिय और प्रशासनिक पक्ष भी हैं बल्कि सरकार के हर फैसले के यह पक्ष रहते ही हैं। इसलिये किसी भी फैसले का मसौदा मन्त्रीमण्डल की स्वीकृत के लिये ले जाने से पहले उस पर वित और विधि विभाग की भी राय ली जाती है। यह राय मन्त्रीमण्डल के समक्ष रखी जाती है। मन्त्रीमण्डल के पास लाये गये प्रारूप में इसका उल्लेख रहता है। लेकिन धर्मशाला को दूसरी राजधानी बनाने की घोषणा के बाद जब वीरभद्र पर इसकी विधिवत अधिसूचना जारी करने का दबाव आया तो जो प्रारूप मन्त्रीमण्डल के लिये तैयार किया गया उस पर वित्त और विधि विभाग की राय का कोई उल्लेख ही नहीं है। उच्चस्थ सूत्रों के मुताबिक विधि और वित विभाग के पास यह प्रारूप भेजा ही नहीं गया है। मन्त्रीमण्डल के समक्ष रखे गये प्रारूप में केवल यही कहा गया है कि धर्मशाला में 2005 से विधानसभा का शीतकालीन सत्र आयोजित किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त यहां पर गद्दी, गुज्जर, राजपूत, ब्रहामण आदि कल्याण बोर्डों की बैठकें भी आयोजित हो रही हैं। इसलिये धर्मशाला को दूसरी राजधानी अधिसूचित किया जाना अपेक्षित है। मन्त्रीमण्डल ने भी इसी प्रारूप को अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी है।
धर्मशाला को दूसरी राजधानी बनाने से प्रदेश के खजाने पर कितना अतिरिक्त बोझ पडे़गा? यहां पूरा सचिवालय कब स्थानान्तरित होगा? सचिवालय के साथ संवद्ध निदेशालय कब स्थानान्तरित होंगे? क्या इसके लिये धर्मशाला में अतिरिक्त भवन निर्माण की आवश्वकता होगी? ऐसे निर्माण के लिये कितनी भूमि अधिग्रहण करने की आवश्यकता होगी और यह अधिग्रहण प्रक्रिया कब से शुरू होगी? यहां पर राजधानी कितना समय कब से लेकर कब तक कार्यशील रहेगी। ऐसा कोई उल्लेख इस प्रारूप में नही है। सूत्रों के मुताबिक अभी तक इन पक्षों पर कोई विचार भी शुरू नही हुआ है। इसीलिये जारी हुई अधिसूचना में यह तक नही कहा गया है कि यह अधिसूचना कब से लागू होगी। जो अधिसूचनाएं जारी होने के साथ ही लागू हो जाती है। उनमें ऐसा लिखा जाता है लेकिन इसमें ऐसा कुछ भी नही है।
जारी हुई अधिसूचना की अस्पष्टता से यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या सरकार इस फैलसे को लेकर ईमानदारी से गंभीर है या नहीं ? क्योंकि इस अधिसूचना और इस आश्य के मन्त्रीमण्डल के पास लाये गये प्रारूप से यही इंगित होता है कि महज मुख्यमन्त्री की घोषणा का मान रखने और लोगों को भ्रम की स्थिति में रखने के लिये ही ऐसी अस्पष्ट अधिसूचना जारी की गयी है। क्योंकि इस अधिसूचना का यह भी अर्थ निकलता है कि धर्मशाला इसी समय से शिमला के बराबर राजधानी बन गयी है और सरकार का सारा प्रशासनिक ढांचा समानान्तर रूप से धर्मशाला में भी कार्यरत है। जबकि व्यवहार में ऐसा नही है। यदि आज धर्मशाला में कार्यरत कर्मचारी सरकार से शिमला की तर्ज पर राजधानी भत्ता और अन्य सुविधाओं की मांग करे तो क्या उनको यह दी जायेंगी ? स्वाभाविक है कि अधिसूचना में इसके प्रभावी होने के समय का कोई उल्लेख न रहने से कर्मचारियों को ऐसे लाभ से इन्कार किया जा सकता है। कार्यकारी शक्तियों के तहत जारी यह अधिसूचना कभी भी वापिस ली जा सकती है। क्योंकि यदि इस अस्पष्ट अधिसूचना को उच्च न्यायालय में चुनौती दी जाती है तो राजधानी के साथ जुड़े वित्तिय और प्रशासनिक प्रावधानों का प्रारूप में कोई स्पष्ट उल्लेख न रहने से इसका कानून की राय में टिका रहना कठिन हो जायेगा।