शिमला/शैल। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह के गिर्द सीबीआई और ईडी जांच का घेरा जैसे - जैसे बढ़ता जा रहा है उसी अनुपात में कांग्रेस संगठन के अन्दर भी एक तरह की अराजकता का वातावरण पनपता जा रहा है। इस दौरान न तो मन्त्रीमण्डल की ओर से और न ही संगठन की ओर से वीरभद्र केे साथ खड़े रहने का कोई सामूहिक ब्यान या दावा सामने आया है। जबकि इस दौरान कांग्रेस के कई मन्त्रियों और विधायकों के पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल होने की चर्चाओं का बाजार
ऐसे में यदि प्रदेश की राजनीतिक स्थिति का आकलन किया जाये तो यह सामने है कि वीरभद्र सिंह के खिलाफ आये से अधिक संपति मामले में सीबीआई ट्रायल कोर्ट में चालान दायर कर चुकी है। इस मामले में दर्ज एफआईआर को रद्द करने की वीरभद्र की गुहार को दिल्ली उच्च न्यायालय अस्वीकार कर चुका है। अब इसमें देर-सवेर आरोप तय होने की नौबत आ गयी है। इसी तरह ईडी मनीलाॅड्रिंग में दूसरी अटैचमैन्ट जारी करने के बाद वीरभद्र सिंह से लम्बी पूछ-ताछ कर चुका है। इस मामले में दोबारा कभी भी बुलाये जाने की तलवार लटकी ही हुई है। जबसे ईडी की यह कारवाई शुरू हुई है उसके बाद से प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सुक्खु विधानसभा स्पीकर बुटेल स्वयं मुख्य मन्त्री वीरभद्र सिंह, स्वास्थ्य मंत्री कौल सिंह, परिवहन मन्त्री जी एस बाली और राज्य सभा सांसद विपल्व ठाकुर, सोनिया गांधी से भेंट कर चुके हैं। भले ही इन नेताओं ने अपने मिलने को शिष्टाचार भेंट कहा है लेकिन राजनीतिक विश्लेषक जानते हैं कि इन मुलाकातों में प्रदेश के राजनीतिक हालात पर चर्चा हुई है। मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह तो राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से भी मुलाकात कर आये हैं।
इस समय यदि कांग्रेस के पांच छः विधायक/ मंत्री पार्टी छोड़ देते है तो सरकार तुरन्त प्रभाव से अल्पमत में आ जायेगी । उस स्थिति में मुख्यमन्त्री के पास सदन में अपना बहुमत सिद्ध करने या फिर विधान सभा भंग करने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नही रह जाता है क्योंकि सरकार के अप्लमत में आते ही भाजपा सरकार बर्खास्तगी की मांग करेगी। उस परिदृश्य में राज्यपाल की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। सरकार को बहुमत सिद्ध करने का समय देने या सीधे केन्द्र और राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेजने की स्थिति आ जाती है। विश्लेषकों का यह स्पष्ट मानना है कि प्रदेश में यह स्थिति कभी भी आ सकती है। मुख्यमन्त्री की राष्ट्रपति से मुलाकात के बाद संभावना ज्यादा चर्चा में है। अभी नगर निगम शिमला के चुनाव होने जा रहे है। यह चुनाव पार्टी के चिन्ह पर लडे़ जायें या नही, इसको लेकर मुख्यमन्त्री वीरभद्र सिंह और पार्टी अध्यक्ष सुक्खु में मतभेद चल रहा है। सूत्रों के मुताबिक मुख्यमन्त्री यह चुनाव पार्टी चिन्ह पर लड़ना चाहते हैं लेकिन सुक्खु इसके पक्ष में नही है। संगठन के कई मुद्दों पर वीरभद्र और सुक्खु में मतभेद खुलकर सामने आ चुके हैं। हमीरपुर जिले में सुक्खु की अध्यक्षता में पार्टी दो उपचुनाव हार चुकी है। इसे सुक्खु की व्यक्तिगत हार माना जा रहा है क्योंकि हमीरपुर सुक्खु का गृह जिला है।
दूसरी ओर भाजपा की अभी राष्ट्रीय परिषद् की बैठक के बाद यह चर्चाएं लगातर सामने आ रही हैं कि भाजपा ने प्रदेश विधानसभा के चुनावों के लिये अभी से रणनीति बना ली है। अभी प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी शिमला आ रहें है। मोदी के बाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमितशाह मई में प्रदेश दौरे पर आ रहे है। मोदी और शाह की इन प्रदेश यात्राओं को विधानसभा चुनावों की पृष्ठभूमि में ही देखा जा रहा है लेकिन भाजपा की इन चुनावी तैयारीयों के मुकाबले में कांग्रेस की ओर से सरकार और संगठन के स्तर पर कुछ भी नजर नही आ रहा है। कांग्रेस के मन्त्रीयों ने भी अपने को अपने चुनाव क्षेत्रों तक ही सीमित करके रख लिया है। इस समय वीरभद्र के बाद पार्टी के अन्दर दूसरी पंक्ति का नेतृत्व नही के बराबर है। वीरभद्र के बाद पार्टी का दूसरा बड़ा नेता कौन है? पार्टी को कौन आगे संभाल सकता है? इसको लेकर जनता तो दूर स्वयं पार्टी के विधायकों तक को यह स्थिति स्पष्ट नहीं है। अधिकांश विधायक नेतृत्व के प्रश्न पर कुछ भी कहने की स्थिति में नही है क्योंकि अब तक जिस भी नेता ने इस मुद्दे पर स्वर उभारने का प्रयास किया ओर दो चार विधायकों को साथ जोड़ा उसी ने वीरभद्र से अपने दो चार व्यक्तिगत काम निकलवाकर अपने को शंात कर लिया। फिर इस समय भाजपा देश को कांग्रेस मुक्त करने के अभियान पर है और इसके लिये कांग्रेस नेताओं का अपने में शामिल करने की येाजना पर काम कर रही है। इस समय प्रदेश में भाजपा के पास भी लगभग एक दर्जन सीटों पर कांग्रेस के मुकाबले के लिये कोई बड़े सशक्त चेहरे नही है। ऐसे में इस समय भाजपा के पक्ष में राष्ट्रीय स्तर पर जो हवा बनी हुई है उसके सहारे हिमाचल में कांग्रेस के अन्दर तोड़-फोड़ कोई ज्यादा कठिन नहीं होगा। इसके लिये चुनावों में टिकट के ठोस आश्वासन से अधिक कांग्रेसीयों को कुछ नही चाहिए। टिकट का आश्वासन पाकर वह अगले पांच साल अपने लिये सुरक्षित कर लेते हैं।
माना जा रहा है कि वीरभद्र भी इन राजनीतिक संभावनाओं पर बराबर नजर बनाये हुए है। जैसे ही सीबीआई की चार्जशीट और ईडी की कारवाई आगे बढ़ेगी उसी के साथ वीरभद्र विधानसभा भंग करने का ऐलान कर सकते हैं क्योंकि ऐसी कारवाई के बढ़ने के साथ ही सरकार का गिरना निश्चित हो जायेगा। ईडी कभी भी दोबारा बुला सकती है। सूत्रों के मुताबिक 21 को मेडिकल कारणों से ईडी में नही जा सके थे क्योंकि रात को ही मैडिकल सहायता की आश्वयकता आ पड़ी थी