Friday, 19 September 2025
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विद्या स्टोक्स के नामांकन के राजनीतिक मायने क्या हैं

शिमला/शैल। वीरभद्र मन्त्रीमण्डल की 90 वर्षीय सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य मन्त्री विद्या स्टोक्स ने नामांकन के अन्तिम दिन ठियोग चुनाव क्षेत्र से पर्चा भरकर प्रदेश के राजनीतिक और प्रशासनिक हल्कों में एक रोचक बहस को जन्म दे दिया है। यह बहस इसलिये उठी है कि विधानसभा पटल पर जिस भी व्यक्ति ने बतौर मन्त्री उनकी परफारमैन्स देखी है वह जानता है कि बढ़ती उम्र का असर उनकी कार्यशैली को प्रभावित कर चुका है। संभवतः वह भी इस असर को मानती है और इसीलिये उन्होंने पहले चुनाव न लड़ने का फैंसला लिया और वीरभद्र सिंह से आग्रह किया कि ठियोग से वह उनके स्थान पर चुनाव लड़े। वीरभद्र ने उनके आग्रह को मानते हुये ठियोग से चुनाव लड़ने का ऐलान भी कर दिया। लेकिन जैसे ही वीरभद्र का फैसला सामने आया तो ठियोग के ही विद्या के विश्वस्तों ने विद्या के फैसले पर रोष व्यक्त करते हुए वीरभद्र के उम्मीदवार बनने पर अपरोक्ष में एतराज जता दिया। इस एतराज पर वीरभद्र ने ठियोग को छोड़कर फिर अर्की का रूख कर लिया।
स्वभाविक था कि जब विद्या अब चुनाव लड़ने से इन्कार कर चुकी थी और वीरभद्र ने अर्की का चयन कर लिया था तो यहां से पार्टी को दूसरे उम्मीदवार की तलाश करनी ही थी। इस तलाश के तहत पहले विजय पाल खाची का नाम सामने आया लेकिन फिर बदल कर अन्तिम रूप से दीपक राठौर का नाम सामने आ गया। दीपक ने नामांकन भी कर दिया। लेकिन उसके बाद विद्या ने भी नामांकन कर दिया। अब दीपक और विद्या में से कौन पीछे हठता है यह तो 26 को ही सामने आयेगा। लेकिन इससे विद्या की राजनीतिक नीयत पर सवाल उठने शुरू हो गये हैं कि जब उसने चुनाव न लड़ने का ऐलान का दिया था तब किन कारणों से वह पुनःचुनाव में आयी। इस पर यह भी सवाल उठ रहा है कि क्या उनका पहले इन्कार करना तथा वीरभद्र को आॅफर देना और फिर अपने ही फैसले पर अपने ही लोगों से एतराज उठवाना क्या यह सब प्रायोजित था या फिर अभी भी राजनीतिक लालसा पूरी नहीं हुई है।
स्टोक्स के इस फैसले से कांग्रेस हाईकमान की कार्यशैली को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। क्योंकि जब पार्टी ने नौ सीटों का फैसला पहली सूची में ही नहीं किया तब यह चर्चा चल पड़ी थी कि शायद हाईकमान अपने एक परिवार एक टिकट के फैसले पर कायम रहेगी और नेता पुत्रों को टिकट नहीं मिलेंगे। लेकिन जब वीरभद्र ने यह दावा किया कि विक्रमादित्य को ही टिकट मिलेगा और विक्रमादित्य को दिल्ली तलब भी कर लिया गया तब वीरभद्र के दावेे पर यकीन हो गया था। इस दावे को और बल तब मिला जब मण्डी में चम्पा ठाकुर ने नामांकन कर दावा किया कि उनका टिकट पक्का है। अन्त में हुआ भी यही। इस पर कई हल्कों में यह दबी चर्चा चल पड़ी है कि क्या हाईकमान ने टिकट के साथ ही विक्रमादित्य के लिये कुछ शर्तें रखी हैं। यदि उच्चस्थ सूत्रों की माने तो चुनावों के बाद युवा कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर कोई बड़ा फैसला सामने आ सकता है। चर्चा यह भी है कि जब सुखराम परिवार कांग्रेस में शामिल हुआ और यह आशंका बन गयी थी कि जी एस बाली तथा कुछ और लोग भी पार्टी छोड़ सकते हैं तब हाईकमान ने पार्टी को टूटने से बचाने के लिये जी एस बाली से भी लंबी बातचीत की है। इस बातचीत का असर भी चुनावों के बाद देखने को मिलेगा सूत्रों के मुताबिक विद्या का नामांकन भी इसी कड़ी का हिस्सा है।

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