शिमला/शैल। कांग्रेस हाईकमान ने अन्ततः शिमला ग्रामीण से वीरभद्र सिंह के बेटे युवा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष विक्रमादित्य सिंह को और मण्डी से स्वास्थ्य मंत्री कौल सिंह की बेटी चम्पा ठाकुर को उम्मीदवार बना दिया है। इन दोनों सीटों का फैसला सबसे अन्त में आया है जबकि वीरभद्र सिंह ने शिमला ग्रामीण से विक्रमादित्य सिंह कोे उम्मीदवार बनानेे का ऐलान बहुत पहले ही कर दिया था। मण्डी से चम्पा ठाकुर की उम्मीदवारी तब सामने आयी जब वहां से वर्तमान में मन्त्री रहे अनिल शर्मा ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने की घोषणा कर दी। यही नही अनिल के साथ उनके पिता पूर्व संचार मंत्री पंडित सुखराम भी भाजपा में शामिल हो गये। सुखराम को भाजपा में शामिल करना राजनीतिक दृष्टि से भाजपा का एक मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। क्योंकि अभी प्रदेश में सुखराम को प्रदेश के लियेे संचार क्रान्ति का मसीहा माना जाता है। इसलिये भाजपा ने सुखराम के सारे भ्रष्टचार को भुलाकर पार्टी का मसीहा बना लिया क्योंकि मण्डी में
भाजपा की यह रणनीति कितनी कारगर सिद्ध होगी इसका पता तोे आने वाले समय में हीे लगेगा। क्योंकि अनिल शर्मा के भाजपा में जाने की अटकलें तो काफी अरसे से चल रही थी। लेकिन प्रमोद शर्मा का भाजपा में शामिल होना कई सवाल खडेे़ कर देता है क्योंकि प्रमोद शर्मा वीरभद्र के विश्वस्तों में गिने जाते रहे हंै। प्रमोद ने 2003 में जब एचएएस छोड़कर चुनाव लड़ा था और उन्हें सफलता नही मिली थी तब उसके बाद वह वीरभद्र के सहयोग से ही विश्वविद्यालय में पहुंचे हैं। प्रमोद शर्मा 2007 और 2012 के चुनाव भी यहां से लड़ चुके है। लेकिन इस बार उनके चुनाव लड़ने की संभावना नही मानी जा रही थी। क्योंकि विश्वविद्यालय के अध्यापकों को अपना पद त्यागने के बिना ही चुनाव लड़ने की जो सुविधा पहले उपलब्ध थी उसे 2014 में विश्वविद्यालय ने वापिस ले लिया है। इससे अब चुनाव लड़नेे के लिये अपने पद से त्यागपत्र देना होगा। फिर कुछ समय पूर्व तक प्रमोद शर्मा को विश्वविद्यालय का वाईसचान्सलर बनाये जाने की भी चर्चा चलती रही है। सूत्रों के मुताबिक राजभवन को भी ऐसी जानकारी रही है। इस परिदृश्य में यह माना जा रहा था कि अब प्रमोद शर्मा पद से त्यागपत्र देकर चुनाव लड़ने का जोखिम नही उठायेंगे। क्योंकि यदि इस बार भी सफलता न मिली तो वह पुनः विश्वविद्यालय की नौकरी नही पा सकेंगे। लेकिन इस बार पहले ही विश्वविद्यालय के चुनाव लड़ने की सुविधा वापिस लेने के निर्णय को प्रदेश के प्रशासनिक ट्रिब्यनल में चुनौती देकर इस फैसलें के खिलाफ स्टे हासिल कर लिया। इस स्टेे के कारण अब फिर चुनाव लड़ने की सूरत में नौकरी जाने का जोखिम नही रहेगा।
स्मरणीय है कि यह सुविधा वापिस लेने का फैसला 2014 का है। लेकिन इसे अभी तीन वर्ष बाद कुछ समय पहले ही प्रशासनिक प्राधिकरण में चुनौती दी गयी थी। इस आग्रह को अदालत ने स्वीकार कर लिया और इस आदेश पर स्टे भी लगा दिया। इस स्टेे को अब प्रदेश उच्च न्यायालय में विश्वविद्यालय ने चुनौती दे दी है। विश्वविद्यालय ट्रिब्यूनल के इस फैसले को इस आधार पर चुनौती दे रहा है कि यह मामला सर्विस मैटरे न होकर विश्वविद्यालय का एक नीति संबधी फैसला है और इसे ट्रिब्यूनल की बजाये उच्च न्यायालय में चुनौती दी जानी चाहिये थी । फिर यह फैसला 2014 में लिया गया था और उसे अब तीन वर्ष बाद चुनौती देना तथा विश्वविद्यालय का पूरा पक्ष सुने बिना ही स्टे नही दिया जाना चाहिये था। प्रदेश उच्च न्यायालय विश्वविद्यालय के तर्क को कितना अधिमान देता है इसका पता तो आने वाले समय में ही चलेगा। लेकिन यदि उच्च न्यायालय इस स्टे को खारिज कर देता है तो उस स्थिति में क्या प्रमोद शर्मा का नामांकन दाखिल करना स्वीकार रहता है या उसे रद्द कर दिया जाता है इस पर सबकी निगाहें लगी हैं। क्योंकि किसी भी कर्मचारी का विधानसभा आदि का चुनाव लड़ने से पहलेे अपने पद से त्यागपत्र देना अनिवार्य है। ऐमे में यदि प्रमोद के नामांकन पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है तोे भाजपा की एक बड़ी रणनीतिक हार होगी।