बीवरेज कारपोरेशन मामला अभी तकनहीं पहुंचा विजिलैन्स में
अंडरग्राऊंड डस्टबिन जांच फाईल भी लटक गयी पीलिया के दोषियों के खिलाफ नहीं मिली मामला चलाने
की अनुमति
अवैध निर्मार्णो के दोषियों को राहत के लिये कानून में ही
बदलाव का फैसला क्यों
शिमला/शैल। जयराम सरकार ने सत्ता संभालने के बाद धर्मशाला में हुई मन्त्रिमण्डल की पहली ही बैठक में बीवरेज कारपोरेशन को पहली अप्रैल से बन्द करने और इसमें हुए घपले की जांच करने का फैसला लिया था। क्योंकि बीवरेज कारपोरेशन में पचास करोड़ का घपला होने का आरोप भाजपा बतौर विपक्ष लगाती आयी है। धर्मशाला में लगे भूमिगत कूड़ादानों के मसले में भी भाजपा अपने आरोप पत्र में करोड़ो का घपला होने का आरोप लगा चुकी है। प्रदेश में हुए अवैध निर्माणों का कड़ा संज्ञान लेकर प्रदेश उच्च न्यायालय इनके खिलाफ कारवाई करने के निर्देश दे चुका है। जिन होटलो में अवैध निर्माण हुए हैं उनके खिलाफ कारवाई के पहले चरण में इनकी बिजली पानी काटने के आदेश हो चुके हैं। एनजीटी ने कसौली के प्रकरण में नियन्त्रण बोर्ड और टीसीपी के कुछ कर्मचारियो को चिन्हित करके उन्हें नामज़द करते हुए उनके खिलाफ कारवाई करने के लिये मुख्य सचिव को आदेश दिये थे। शिमला में जब पीलिया के कारण मौतें होने लगी थी तब उच्च न्यायालय के निर्देश पर इस संद्धर्भ में संवद्ध ठेकेदार और अन्य जिम्मेदार कर्मचारियों/ अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज करके जांच किये जाने के आदेश हुए थे। यह जाचं पूरी होने के बाद कुछ अधिकारियों को इसके लिये जिम्मेदार पाया गया है। इनके खिलाफ मामला अदालत में चलना है। अदालत में चालान दायर करने के लिये संवद्ध कर्मचारियों/अधिकारियों के खिलाफ मामला दायर करने की सरकार से अनुमति चाहिये।
यह सारे मामलें हैं जिन पर बतौर विपक्ष भाजपा बहुत ही आक्रामक रहती थी लेकिन आज सत्ता में आने के बाद इन मामलों पर कोई कारवाई अभी तक आगे नही बढ़ पायी है। जिन अधिकारियों/कर्मचारियों की लापरवाही से प्रदेश में पीलिया फैला और तीस मौतें तक हो गयी थी उन लोगों के खिलाफ सरकार ने अदालत में मामला चलाने की अनुमति तक नही दी है। यह विभाग में किस स्तर पर हुआ है इस पर कोई कुछ कहने को तैयार नही है और प्रदेश के मुख्य सचिव की जानकरी के बिना ही यह अनुमति रोक दी गयी है। वीबरेज कारपोरेशन में यदि भाजपा के अपने आरोप पत्र के मुताबिक घपला हुआ है तो निश्चित रूप से यह घपला कारपोरेशन के एमडी और चेयरमेन की जानकारी के बिना नही हो सकता। यह दोनों ही पद वरिष्ठ अधिकारियों के पास ही रहे हैं। क्योंकि आबकारी और कराधान विभाग का आयुक्त ही इसका निदेशक था और विभाग का सचिव ही इसका अध्यक्षथा। यह दोनों ही वरिष्ठ आईएएस अधिकारी हैं और आज की सरकार में भी इनकी खास जगह है। चर्चा है कि इसलिये यह मामला आज तक विजिलैन्स को नही भेजा गया है। इसमें अब किसी आईएएस अधिकारी से ही जांच करवाने की योजना बनाई जा रही है जबकि मुख्यमन्त्री इस प्रकरण में एफआईआर दर्ज हो जाने का दावा कर चुके हैं। इसी तरह धर्मशाला के भूमिगत कूड़ादान प्रकरण में भी जांच की फाईल तैयार होने के बाद चर्चा है कि यह फाईल कहीं गुम हो गयी है। क्योंकि यह कूड़ादान खरीदनेे के लिये जब पहली कमेटीे की बैठक हुई थी उसमें इस योजना को अस्वीकार कर दिया गया था। एक सदस्य ने इसका कड़ा विरोध किया था और बैठक से उठ कर चले गये थे। लेकिन बाद में उस अधिकारी को हटा दिया गया तथा इस बैठक की कारवाई को रिकार्ड पर ही नही लाया गया। इसके वाबजूद यह पाॅयलट प्रोग्राम कैसे तैयार और कार्यन्वित हो गया यह अपने में एक रहस्य है जो कि जांच से ही सामने आना है लेकिन अब यह फाईल गायब है।
अवैध निर्माणों की जद में आये होटलों को बचाने के लिये सरकार ने एक बार फिर टीसीपी एक्ट में संशोधन करने का फैसला कर लिया है। जबकि प्रदेश उच्च न्यायालय के संज्ञान में प्रदेशभर में 3,5000 अवैध भवन निर्माण आये हैं। उच्च न्यायालय ने इसका कड़ा संज्ञान लेते हुए यह कहा है कि The common man feel cheated when he finds that those making illegal and unauthorized constructions are supported by the people entrusted with the duty of preparing and executing the developmental plans.
लेकिन उच्च न्यायालय के कड़े संज्ञान के बाद सरकार इन अवैधतताओं के संरक्षण देने के लिये एक्ट में ही संशोधन करने पर आ गयी है। एनजीटी के आदेशों पर भी कोई कारवाई नही हो रही है क्योंकि उसमें नामज़द एक अधिकारी की सीधी पहुंच अब मुख्यमन्त्री तक हो गयी है ऐसे में इन आदेशों पर भी कारवाई करने से बचने का रास्ता खोजने का प्रयास हो रहा है। यहां तक कि उच्च न्यायालय ने मुख्य सचिव से संदिग्ध निष्ठा वाले अधिकारियों/कर्मचारियों की सूची तलब की है। लेकिन सत्रों के मुताबिक एनजीटी के आदेश में जामज़द होने के वाबजूद भी इनका नाम उस संभावित सूची में नही है।
अभी इस सरकार को आये केवल तीन माह का ही समय हुआ है लेकिन मन्त्री परिषद की पहली बैठक में किसी मामले पर जांच का फैसला लेने के बाद भी वह प्रकरण विजिलैन्स तक न पहुंचे और आईएएस अधिकारी से जांच करवाये जाने की बात चल पड़े तो इससे अन्दाजा लगाया जा सकता है कि इससे सरकार और मुख्यमन्त्री की अपनी छवि पर क्या प्रभाव पडे़गा।