Friday, 19 September 2025
Blue Red Green

ShareThis for Joomla!

क्या बिन्दल नयी रिवायत डालने जा रहे है

शिमला/शैल। क्या विधानसभा अध्यक्ष राजनीतिक दल की बैठक में भाग ले सकता है यह सवाल प्रदेश के राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। क्योंकि पिछले दिनों मण्डी में हुई भाजपा की बैठक में विधानसभा अध्यक्ष राजीव बिन्दल शामिल हुए थे। भाजपा की यह बैठक अगामी लोकसभा चुनावों को लेकर रणनीति तय करने को लेकर हुई थी। इस बैठक में भाग लेने वालों को बैठक में अपने मोबाईल फोन तक नही ले जाने दिये गये थे और इसी से इसकी अहमियत का पता चल जाता है। ऐसे में इस बैठक में भाग लेने वाला व्यक्ति कैसे और कितना निष्पक्ष हो सकता है यह सवाल उठना स्वभाविक है। डा. राजीव बिन्दल इस प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष हैं। यह ठीक है कि विधानसभा में भाजपा का बहुमत है और इसीलिये उसकी सरकार है। इसी बहुमत के आधार पर विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनो पदों पर भाजपा का कब्जा है। लेकिन जब कोई विधायक अध्यक्ष चुन लिया जाता है तब उसे दलीय स्थिति से ऊपर का व्यक्ति माना जाता है। सदन में वह सभी दलों का एक बराबर संरक्षक माना जाता है।
संसदीय लोकतन्त्र में प्रथा है कि जब कोई सदन का अध्यक्ष बन जाता है तब वह उस पार्टी में जिसका वह सदस्य होता है उसके विधायक दल की बैठक में भाग नहीं लेता है। यह रिवायत है कि सदन का अध्यक्ष अपने दल की राजनीतिक बैठकों में भी भाग नहीं लेता है। केन्द्र से लेकर राज्यों तक सभी इस प्रथा की अनुपालना करते आये हैं। हिमाचल में भी आज से पहले किसी भी विधानसभा अध्यक्ष ने इस तरह से अपने दल की बैठकों में भाग नही लिया है। जिस तरह से राजीव बिन्दल कर रहे हैं। चर्चा है कि अभी सात अप्रैल को सोलन अदालत में उनके केस की पेशी थी। इस पेशी में वह अदालत में हाजिर रहे क्योंकि पिछली पेशी में वह नही आये थे। तब उनके वकील ने उन्हे पेशी से छूट दिये जाने कीे अदालत से गुहार लगायी थी क्योंकि वह अब विधानसभा अध्यक्ष बन गये हैं। लेकिन अदालत ने वकील के आग्रह को यह कहकर ठुकरा दिया कि वह तो इस मामले में मुख्य आरोपी हैं उन्हे पेशी से छूट नही दी जा सकती है। इसलियेे वह पेशी पर अदालत में हाजिर रहे।
लेकिन जब पेशी खत्म हुई उसके बाद पार्टी के एक कार्यक्रम में शामिल हो गये। उस समय भी उनके शामिल होने पर पार्टी के ही कुछ लोगों ने सवाल खड़ा किया था। अब भाजपा की मण्डी में हुई बैठक में शामिल होने को लेकर तो कई राजनीतिक लोगों ने सवाल उठाये हैं। विधानसभा में भी विपक्ष को उनसेे यह शिकायत रही है कि भाजपा के बदले कांग्रेस को कम समय दे रहे हैं। अब पार्टीे की कोर बैठक में शामिल होना सार्वजनिक रूप से बाहर आ चुका है और इससे उनकी अध्यक्षीय निष्पक्षता पर स्वभाविक रूप से ही सवाल उठेंगे। इस पर अभी तक भाजपा की ओर सेे कोई प्रतिक्रिया नही आयी है और न ही स्वयं बिन्दल की ओर से कोई ब्यान आया है। जबकि इस आचरण के सार्वजनिक रूप से बाहर आ जाने के बाद अगले सदन में इसे चर्चा का विषय बन जाने की संभावना से भी इन्कार नही किया जा सकता है।  क्योंकि बजट सत्र के दौरान विपक्ष की ओर से अध्यक्ष पर यदा-कदा पक्षपात का आरोप लगता रहा है। भले ही उस समय इस आरोप को राजनीतिक मानते हुए अधिमान न दिया गया हो लेकिन अब बिन्दल के पार्टी की इन बैठकों में भाग लेने से स्थिति बदल गयी है और उनकी निष्पक्षता पूरी तरह सवालों के घेरे में आ खड़ी हुई है।

इस समय भाजपा के अन्दर जिस तरह से सचेतकों को मन्त्री का दर्जा दिये जाने की कवायद से विधायकों के सम्भावित राजनीतिक रोष साधने का प्रयास किया जा रहा है उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि पार्टी के अन्दर ‘‘सबकुछ ठीक ही है’’ की स्थिति नहीं है। यह भी सब जानते है कि बिन्दल विधानसभा अध्यक्ष बनने के लिये ज्यादा उत्साहित नहीं थे क्योंकि उनकी पहली प्राथमिकता मन्त्री बनना थी। मन्त्री न बन पाने की टीस विधानसभा में भी कई बार अपरोक्षतः मुखरित होकर सामने आती रही है। उपर से पुराना केस अभी तक लम्बित चल रहा है इसमें माना जा रहा है कि वर्ष के अन्त तक फैसले की घडी आ जायेगी। बहुत लोगों को यह आशंका है कि कहीं इसमें भी कांग्रेस की आशा कुमारी जैसी ही स्थिति न खड़ी हो जाये क्योंकि धूमल शासन में इस मामले को चलाने की अनुमति नहीं दी गयी थी लेकिन बाद में अदालत में यह अनुमति न दिया जाना किसी काम नहीं आ सका था। इसी कारण से यह मामला अब तक चलता आ रहा है और फैसले के कगार पर पहुंचने वाला है।

 

Add comment


Security code
Refresh

Facebook



  Search