Friday, 19 September 2025
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शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार का ईनाम पदोन्नति

शिमला/शैल। शिमला के राजकीय महाविद्यालय संजौली में 2016 में यह मामला ध्यान में आया था कि इस काॅलिज में करोड़ों रूपये का गवन हुआ है। यह आरोप लगा था कि इस काॅलिज में छः सात वर्षों से कोई कैश बुक ही नही लिखी गयी है जबकि खर्च नियमित रूप से हो रहा था। जब कोई  कैश बुक ही नही लिखी जा रही थी तब यह कहना कठिन था कि कितना खर्च जायज़ हो रहा है और कितना नाजायज़। किस मद में धन का कितना  प्रावधान है और कितना नही। कुल मिलाकर काॅलिज में पूरी तरह वित्तिय अराजकता वातावरण चल रहा था। जब यह स्थिति  सार्वजनिक रूप से सामने आयी तब काॅलिज के तत्कालीन प्रिंसिपल ने 28.3.2016 को एक पत्र लिखकर शिक्षा निदेशालय को इस वस्तुस्थिति से अवगत करवाया। शिक्षा निदेशालय ने प्रिंसिपल का पत्र मिलने के बाद इस मामले की जांच विभाग में कार्यरत संयुक्त नियन्त्रक वित्त एवम् लेखा को सौंपी। 

 संयुक्त नियन्त्रक ने 6.4.2016 को काॅलिज का दौरा किया और 7.4.2016 को कैशियर को निलम्बित कर दिया। नियन्त्रक की जांच में 1.4.2016 से 31.3.2016 तक 6 वर्षो में 79,06,359 रूपये का गबन पाया गया। 29.6.2016 को इसकी रिपोर्ट सरकार को सौंपी गयी। 3 अगस्त 2016 को विजिलैन्स में इसकी एफआईआर दर्ज करके दोषीयों के खिलाफ कारवाई करने केे निर्देश दिये गये और 20.8.2016 को इसमें आईपीसी  की  धारा 420, 467, 468, 417, 120-B तथा भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा  13 (1) (C)  r/w 13 (2) दर्ज की गयी। कैशियर के खिलाफ 1.9.2016 को चार्जशीट भी सौंप दी गयी। काॅलिज में इस दौरान जो बरसर तैनात थे उनके खिलाफ भी पत्र संख्या EDN.A-Kha(6)-1 /06-Loose -11 दिनांक 15.3.2017 के तहत कारवाई किये जाने के निर्देश दिय गये। 

 जिन वर्षों में काॅलिज में यह 80 लाख रूपये  का गवन सामने आया है उस दौरान तीन प्रिंसिपल यहां तैनात रहे हैं। उनमें से एक के कार्यकाल में 50 लाख दूसरे के 24 लाख और तीसरे के 6 लाख का गवन नियन्त्रक की रिपोर्ट और विजिलैन्स की जांच में सामने आया है। एक प्रिंसिपल के खिलाफ तो चार्जशीट भी जारी की गयी थी जो कि बाद में वापिस ले ली गयी। लेकिन अन्य दो के खिलाफ कोई चार्जशीट तक नही दी गयी। बल्कि जिसके कार्यकाल में 24 लाख का घपला रिकार्ड पर आया है उसे इस सरकार में पदोन्नत करके विभाग का निदेशक बना दिया गया है। 

 इसमें सबसे रोचक तो यह है कि जब मामला उजागर हुआ था तब शिमला के विधायक सुरेश भारद्वाज थे। भारद्वाज ने इस संबंध में 27.3.2017 को विधानसभा में सरकार से प्रश्न पूछा था सरकार को बुरी तरह कठघरे में खड़ा कर दिया था। आज भारद्वाज फिर शिमला के विधायक हैं और साथ ही प्रदेश के शिक्षा मन्त्री भी हैं। उन्ही के विभाग में वह प्रिंसिपल आज निदेशक है जिसके खिलाफ उन्होने ही विधानसभा में यह सवाल उठाया था। काॅलिज की कार्यप्रणाली की जानकारी रखने वाले जानते हैं कि काॅलिज में प्रशासनिक सर्वेसर्वा प्रिंसिपल ही होता है और जो प्रिंसिपल  काॅलिज  में 24 लाख के घपले को न पकड़ पाया हो वह इतने बड़े विभाग को कैसे संभालेगा। फिर इस मामले में विजिलैन्स ने किसी भी प्रिंसिपल को अभी तक कोई क्लीनचिट नही दी है। ऐसे में इस प्रिंसिपल को विभाग का निदेशक लगाने में क्या शिक्षा मन्त्री की भी सुनी गयी है? यह सवाल चर्चा में चल पड़ा है। क्योंकि इससे पहले कांग्रेस शासन में जो स्कूल वर्दी कांड हुआ था उसे उठाने वालों में सुरेश भारद्वाज प्रमुख थे। इस वर्दी खरीद मामले के सदन में उठने के बाद सरकार ने उस सप्लायर की  करीब 16 करोड़ धरोधर राशी जब्त करने के आदेश कर दिये थे। इन आदेशों पर यह सप्लायर आरबिट्रेशन में चला गया था और उसके पक्ष में फैसला हो गया था। उसे 16% ब्याज सहित भुगतान करने के आदेश हो गये थे। लेकिन इस मामलें में नागरिक आपूर्ति निगम की ओर से कोताही हुई थी। सरकार ने इस कोताही की जांच किये जाने के आदेश किये थे। सुरेश भारद्वाज ने भी बतौर शिक्षा मन्त्री इस जांच की फाईल पर अनुशंसा की थी। क्योंकि इसमें किसी की जिम्मेदारी तय किया जाना आवश्यक था। लेकिन शिक्षा मन्त्री के निर्देशों को भी नज़रअन्दाज करके यह जांच नही की गयी और इस सप्लायर को करीब 16 करोड़ की अदायगी कर दी गयी है।

शिक्षा विभाग की इन कारगुजारीयों को देखने के बाद यह सवाल उठ रहा है कि क्या सब कुछ शिक्षा मन्त्री को नज़रअन्दाज करके हो रहा है या वह इन मामलों पर खामोश रहने को विवश हो गये हैं। क्योंकि विभागाध्यक्ष  की नियुक्ति मुख्यमन्त्री की संस्तुति के बिना  नही होती है। 

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