Friday, 19 September 2025
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अवैध कब्जाधारकों की फिर मांगी उच्च न्यायालय ने सूचना

वर्ष 2002 में अवैध कब्जे नियमित करने के लिये आये थे 167339 शपथ पत्र
शिमला/शैल। प्रदेश उच्च न्यायालय ने सौ बीघा से अधिक के अवैध कब्जाधारियों के खिलाफ कारवाई करने के लिये एक एसआईटी का गठन किया था। इस एसआईटी ने अपनी स्टेट्स रिपोर्ट अदालत में सौंपते हुए यह जानकारी दी है कि उसने अब तक 1634 बीघा भूमि से करीब 33 हजार पेड़ काट दिये हंै। इस स्टेट्स रिपोर्ट का संज्ञान लेने के बाद अदालत ने सरकार को अतिरिक्त शपथ पत्र दायर करके और अवैध कब्जाधारियों की सूची अदालत में सौंपने के निर्देश दिये है। इससे पूर्व भी उच्च न्यायालय के अन्य मामले में अवैध कब्जा धारकों के खिलाफ मनीलाॅंड्रिंग के तहत कारवाई करने के आदेश दे चुका है। लेकिन सरकार ने अवैध कब्जों को हटाने के लिये अब तक अपनी ओर से कोई कारवाई नही की है। कारवाई तो प्रदेश उच्च न्यायालय की सख्ती और इस संबंध में एसआईटी बनाये जाने के बाद शुरू हुई है। आज भी कांग्रेस और भाजपा की ओर से संगठन स्तर पर कोई आवाज नही आई है। बल्कि पूर्व मुख्यमन्त्री शान्ता कुमार, वीरभद्र और प्रेम कुमार धूमल आज तक अवैध कब्जांे के प्रकरण पर खामोश बैठे हैं। वीरभद्र के कार्यकाल में तो कांग्रेस विधायकों ने अवैध कब्जों को नियमित करने के लिये वाकायदा पत्र लिखा था। ऐसे पत्र लिखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि ऐसे जनप्रतिनिधि इनअ अवैधताओं के खिलाफ कभी कोई कारवाई नही चाहेंगे।
लेकिन इस प्रकरण में प्रशासन की भूमिका भी सन्देह के घेरे में ही है। क्योंकि उच्च न्यायालय सरकार से अवैध कब्जाधारकों की सूची मांग रहा है जो कि ठीक से नही दी जा रही है। इस संद्धर्भ में यह स्मरणीय है कि प्रदेश सरकार ने वर्ष 2002 में अवैध कब्जों को नियमित करने के लिये विधानसभा से एक नीति पारित करवाई थी। इस नीति के तहत अवैध कब्जाधारकों से सरकार ने वाकायदा शपथ पत्र के साथ अपना अवैध कब्जा घोषित करके उसे नियमित किये जाने का आवेदन मांगा था। उस समय सरकार की इस नीति के तहत 1,67,339 आवदेन सरकार के पास आये थे। इन आवदेनों से यह स्पष्ट हो गया था कि इतने अवैध कब्जाधारक प्रदेश में हैं। यहआवेदन सरकार के पास वाकायदा शपथ पत्रा के साथ आये थे। जब इतनी बड़ी संख्या में अवैध कब्जाधारक सामने आये तब सरकार की इस नीति को ही उच्च न्यायालय में CWP No 1028of 2012 और CWP No 1645 of 2002  के माध्यम से चुनौती दे दी गयी। इस पर अदालत ने नोटिस करते हुए यह कहा कि Reply to the application may be filed with in a period of four weeks.

In the facts and circumstances on record it is ordered that the proceedings for regularization of the encroachments on Government lands may go on, but Patta will not be issued under the impugned rules till further orders. 

इस याचिका पर कोई फैसला नही आया है। लेकिन सरकार की इस नीति पर अदालत ने कभी स्वीकृति की मोहर भी नही लगायी है। जिन लोगों के सरकार के पास आवेदन आ गये थे वह तो आज भी सरकार के संज्ञान में है। इन 1,67,339 आवेदनों की जब पड़ताल हुई थी तब उसमें 80,000 अवैध कब्जे वनभूमि पर चिन्हित हुए थे। यह सारी जानकारी सरकार के रिकार्ड में आज भी उपलब्ध है।
इसके अतिरिक्त 1990 के शासनकाल में शान्ता कुमार एक नीति ‘‘वन लगाओ रोज़ी कमाओ’’ लाये थे। इस नीति के तहत सरकार की वनभूमि पर पेड़ उनकी देखभाल करने वाले को उन पेड़ो के अनुपात में लाभ मिलने का प्रावधान रखा गया था। ताकि लाभ की उम्मीद में पेड़ लगाने वाला उनका उचित रख-रखाव करेगा। इस नीति के तहत भी सैंकड़ों लोगों ने पेड़ लगाये थे और एक प्रकार से उस भूमि के अपने को मालिक ही मानते थे। इस योजना के तहत वन उगाने वालों की जानकारी भी वन विभाग के पास है। इस तरह अवैध कब्जाधारकों की अधिकृत जानकारी सरकारी रिकार्ड में मौजूद है लेकिन इस सबके बावजूद उच्च न्यायालय को अवैध कब्जाधारकों की जानकारी उपलब्ध नही करवाई जा रही है। जिन अधिकारियों की आॅंखों केे सामने यह सब हुआ हैं उसकी जानकारी भी सरकार के रिकार्ड में मौजूद है। कौन कब कहां तैनात रहा है उसकी जानकारी भी रिकार्ड में उपलब्ध रहती है। यह सारी जानकारियां रिकार्ड में उपलब्ध होने के बावजूद अदालत को उपलब्ध नही करवाई जा रही है। इसमें सरकार और प्रषासन की नीयत पर सवाल उठने स्वभाविक है।

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