शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश में सहकारी क्षेत्र में दस बैंक कार्यरत हैं यह बैंक हैं हि.प्र. राज्य सहकारी बैंक, कांगड़ा केन्द्रिय सहकारी बैंक, जोगिन्द्रा सहकारी बैंक, हि. प्र. राज्य सहकारी एवम् ग्रामीण विकास बैंक, कांगड़ा कृषि एवम् सहकारी बैंक, विकास बैंक, शिमला अर्बन सहकारी बैंक, परवाणु अर्बन सहकारी बैंक, मण्डी अर्बन सहकारी बैंक, बघाट अर्बन सहकारी बैंक और चम्बा अर्बन सहकारी बैंक। यह बैंक प्रदेश में सहकारिता अधिनियम के तहत पंजीकृत हैं। इनमें अर्बन सहकारी बैंको को छोड़कर सबमें एमडी/प्रशासक की नियुक्ति प्रदेश सरकार करती है और इस तरह इनके प्रबन्धन में सरकार का सीधा दखल भी रहता है। इस दखल के अतिरिक्त प्रदेश का रजिस्ट्रार सहकारिता तो इन सब बैंकों का एक तरह से नियन्ता ही होता है। इनका पूरा बोर्ड एक तरह से पंजीयक को जवाब देह होता है। ऐसे में इनमें हो रहे हर कार्य के लिये इनके निदेशक मण्डल के साथ ही सरकार भी बराबर की जिम्मेदार रहती है। प्रदेश के यह सहकारी बैंक वाणिज्यक बैंकों की श्रेणी में नहीं आते हैं। इनमें केवल राज्य सहकारी बैंक को ही वाणिज्य बैंक का स्तर मिला हुआ है। यह अधिकांश में लोगों की जमा पूंजी के ही सहारे अपना कारोबार करते हैं। कुछ को नाबार्ड से भी निवेश सहायता मिलती है। यह बैंक आरटीआई के दायरे से भी बाहर हैं इसलिये इनकी पूरी जिम्मेदारी सरकार और रजिस्ट्रार सहकारिता पर ही आती है और इसके तहत पंजीकृत हर संस्था को हर वर्ष अपनी आडिट रिपोर्ट रजिस्ट्रार को देनी होती है।
प्रदेश सरकार की आर्थिक स्थिति कितनी गंभीर है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता हैं कि सरकार को वित्तिय वर्ष के आरम्भ में ही 700 करोड़ ऋण लेना पड़ गया है। इस बजट में की गयी घोषणाओ को पूरा करने के लिये सरकार को ग्याहर हजार करोड़ का ऋण लेना पड़ेगा इसका खुलासा बजट दस्तावेजों से हो जाता है यह स्थिति एक गंभीर चिन्ता का विषय बन चुकी है। लेकिन इसी के साथ एक बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है कि सरकार इस बारे में गंभीर नही दिख रही है क्योंकि प्रदेश के सहकारी बैकों का एनपीए 938.27 करोड़ हो गया है। स्वभाविक है कि इन बैंकों से यह ऋण प्रदेश के ही लोगो ने लिया है और उसे वापिस नही किया गया। बैंको ने इस ऋण को बसूलने के लिये कोई कड़े कदम उठाने की बजाये इसे एनपीए में डालकर अपनी सीधी जिम्मेदारी से बचने का रास्ता ढूंढ लिया है।
इस पर यह सवाल उठता है कि जब यह ऋण वापिस नही आ रहा था तब बैंक प्रबन्धन से लेकर आरसीएस तक ने क्यों कोई कड़े कदम इसे वसूलने के लिये नही उठाये। क्या ऐसा न करने के लिये कोई राजनीतिक दबाव था या स्वयं बैंको का शीर्ष प्रबन्धन भी इसमें भागीदार था। क्योंकि इतनी बडी रकम को एनपीए की जगह सीधा घपला मानकर इसकी जांच की जानी चाहिये। इसकी जांच जयराम सरकार के लिये एक बड़ी चुनौती होगी क्योंकि सूत्रों की माने तो बहुत ऋण बिना पात्रता के दिये गये हैं जिनमें कुछ विद्युत परियोजाओं और बड़े हाटलों को फाईनैस किया गया है जो कि वापिस नही आया है।
इस समय प्रदेश के इन दस बैंको में 938.23 करोड़ का एनपीए चल रहा है जिसमें कांगड़ा केन्द्रिय सहकारी बैंक 560.60 करोड़ के साथ पहले स्थान पर स्टेट को-आॅपरेटिव बैंक 250.48 करोड़ के एनपीए के साथ दूसरे नंबर पर है। बैंकिग नियमों के मुताबिक यदि किसी बैंक का एनपीए 15% तक पंहुच जाये तो बैंक को बन्द कर देने तक की चर्चा चल पड़ती है। कांगड़ा केन्द्रिय सहकारी बैंक का एनपीए 14.87% है। इसमें यदि इसके रिस्क फंडज़ को डाला जाये तो यह निश्चित रूप से बन्द कर दिये जाने के दायरे में आता है। उसी तरह राज्य सहकारी बैंक का एनपीए 4.91% है लेकिन इसके रिस्क फंडज़ 16.92% है। जिसका सीधा अर्थ है कि यह कभी भी एनपीए हो सकते हैं। इस तरह राज्य सहकारी बैंक भी खतरे के उस कगार तक पंहुच चुका है।
यह हैं एनपीए का विवरण
1. राज्य सहकारी बैंक - 250.48 करोड़ 4.91%
2. कांगड़ा केन्द्रिय सहकारी बैंक - 560.60 करोड़ 14.87%
3. जोगिन्द्रा सहकारी बैंक 52.66 करोड़ 15.86%
4. हि. प्र. राज्य सहकारी कृषि एवम्
ग्रामीण विकास बैंक 84.45 करोड़ 20.80%
5. कांगड़ा कृषि एवम् ग्रामीण विकास बैंक- 29.50 करोड़ 24.60%
6. शिमला अर्बन सहकारी बैंक - 2.04 करोड़ 6.60%
7. परवाणु अर्बन सहकारी बैंक 6.06 करोड़ 3.3%
8. मण्डी अर्बन सहकारी बैंक - 1.32 करोड़ 27.98%
9. बघाट अर्बन सहकारी बैक 20.99 करोड़ 4.5%
10. चम्बा अर्बन सहकारी बैंक - 0.23 करोड़ 2.55%