शिमला/शैल। कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने प्रदेश के मुख्य सचिव विनित चौधरी के माध्यम से जयराम सरकार पर हमला बोला है। स्मरणीय है कि विनित चौधरी के खिलाफ संजीव चतुर्वेदी ने एक मामला उछाल रखा है और यह मामला पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील प्रशान्त भूषण के एनजीओ के माध्यम से दिल्ली उच्च न्यायालय में भी पहुंच चुका है और जुलाई में ही सुनवाई के लिये लगा है। इस मामले में चौधरी के साथ केन्द्रिय स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा भी सहअभियुक्त बने हुए हैं। इसी सबके चलते चौधरी केन्द्र सरकार में सचिव के पैनल में नही आ पाये हैं। इसी प्रकरण में चौधरी ने शिमला की ए सी जे एम की अदालत में संजीव चतुर्वेदी के खिलाफ मानहानि का मामला भी दायर कर रखा है। मानहानि के इस मामले में अदालत ने एक बार संजीव चतुर्वेदी के वांरट भी जारी कर दिये थे। वारंट और मानहानि के मामले को रद्द करवाने के लिये चतुर्वेदी ने प्रदेश उच्च न्यायालय में गुहार लगायी थी जिस पर उच्च न्यायालय ने वांरट तो रद्द कर दिया लेकिन शेष मामले पर कोई कारवाई किये बिना ही मामला अदालत को वापिस भेज दिया। उच्च न्यायालय की इस कारवाई को चतुर्वेदी ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दे दी। सर्वोच्च न्यायालय ने यह मामला उच्च न्यायालय को लौटाते हुए यह निर्देश दिये हैं कि उच्च न्यायालय को वह कारण स्पष्ट करने होंगे जिनके आधार पर उसने मामला अधिनस्थ अदालत को लौटा दिया। उधर ए सी जे एम ने किन्ही कारणों से अपने को इस मामले से अलग कर लिया है। संजीव चतुर्वेदी के मुताबिक जिस दस्तावेज के आधार पर मानहानि का मामला बनाया गया है उस पर यह बनता ही नही है। यह मामला अभी अदालतों में इसी मोड़ पर लंबित है और सबकी नज़रें इस पर लगी हुई हैं।
जयराम सरकार ने वरियता और वरिष्ठता के तर्क पर चौधरी को मुख्य सचिव बनाया है जबकि पूर्व की वीरभद्र सरकार ने उनके जूनियर फारखा को मुख्य सचिव बना दिया था। चौधरी इस पर कैट में चले गये थे और कैट ने उन्हे फारखा के समक्ष ही सारे सेवा लाभ देने के निर्देश दिये थे जो उन्हे दे दिये गये थे। लेकिन कैट ने उन्हे मुख्य सचिव बनाने की संस्तुति नही की थी। फारखा समकक्ष ही सारे लाभ देने के निर्देशों के साथ ही कैट ने चौधरी को अन्य मामलों के लिये केन्द्र को प्रतिवेदन भेजने के भी निर्देश दिये थे। लेकिन चौधरी ने कोई प्रतिवेदन केन्द्र को भेजा नही है। यह प्रतिवेदन भेजने के कारण चौधरी ने अपनी वरिष्ठता को नज़रअदांज किये जाने के साथ ही जो अन्य मुद्दे उठाये थे वह वैसे के वैसे ही खड़े रहे हैं। लेकिन उन्हीं मुद्दों का अपरोक्ष तर्क लेकर और लोगों को उनका अधिकार नही दिया जा रहा है जबकि बाकि प्रदेशों में दिया जा रहा है। इसी के साथ एक महत्वपूर्ण मुद्दा यह खड़ा हो गया है कि जब चौधरी कैट में गये थे तब दीपक सानन भी उनके साथ सह याचिकाकर्ता बने थे। उस समय चौधरी और दीपक सानन छुट्टी पर चले गये थे। लेकिन जब कैट ने चौधरी को फारखा के समकक्ष लाने के निर्देश दिये तब उन्होने अपनी छुट्टी रद्द करके डयूटी ज्वाईन कर ली। परन्तु सानन छुट्टी पर चलते रहे। सानन की सेवानिवृति 31 जनवरी 2017 को थी इसलिये उन्होने 24 जनवरी को डयूटी ज्वाईन कर ली। सानन 24 अक्तूबर 2016 से 24 जनवरी 2017 तक छुट्टी पर थे। अब जयराम सरकार ने सानन की 24 अक्तूबर 2016 से 24 जनवरी 2017 की छुट्टी को स्टडीलीव मानकर उन्हे सारे वित्तिय लाभ दे दिये हैं। जोकि नही दिये जा सकते थे क्योंकि जब सेवानिवृति के दो वर्ष रह जायें तो स्टडी लीव दिये जाने का कोई प्रावधान नही है। परन्तु प्रदेश सरकार ने आईएएस स्टडी लीव नियमों में ढील देकर लाभ दिया है। आईएएस एक अखिल भारतीय सेवा है और इसके सेवा नियमों में कोई भी ढील देने का अधिकार केवल केन्द्र सरकार को है राज्य सरकार को नही। मुख्य सचिव और मुख्यमन्त्री ने अपने ही स्तर पर यह लाभ दे दिया है। कानून की नज़र में यह आपराधिक षडयंत्र का मामला बनता है।
अब जब कांग्रेस राष्ट्रीय प्रवक्ता सुरजेवाला ने इस पर मुद्दा बना लिया है तो यह माना जाने लगा है कि दीपक सानन को नियमों के विरूद्ध यह लाभ दिये जाने का मामला आगे बढ़ेगा ही। क्योंकि यह एक प्रमाणिक और पुख्ता मामला है। इसके माध्यम से जयराम और भाजपा को घेरने का एक गंभीर मामला कांग्रेस के हाथ लग गया है। जो मामले उच्च न्यायालय में लंबित हैं उनका फैसला चौधरी की सेवानिवृति के बाद ही आयेगा। उससे चौधरी को कोई ज्यादा फर्क नही पड़ेगा। लेकिन इसी मामले में नड्डा पर चौधरी को नियमों के विरूद्ध जाकर बचाने का आरोप है और इसमें नड्डा के लिये कठनाई पैदा हो सकती है। उधर कांग्रेस इस मुद्दे पर जयराम और नड्डा पर भ्रष्टाचारियों को बचाने का आरोप लगायेगी क्योंकि सानन एचपीसीए में अभियुक्त हैं और इसमें राज्य सरकार का अधिकार बहुत सीमित है सब कुछ अदालत के पाले में है।