Friday, 19 September 2025
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क्या सानन की शिकायत के राजनीतिक अर्थ भी हैं उठने लगी है यह चर्चा

धूमल-वीरभद्र दोनों की ही सरकारें आयेंगी जांच के दायरे में

शिमला/शैल। सेवानिवृत अतिरिक्त मुख्य सचिव दीपक सानन ने वीरभद्र सरकार के कार्यकाल मे हुई कुछ धांधलियों को उजागर करते हुए जयराम ठाकुर की सरकार से इस संबंध में एफआईआर दर्ज करके जांच किये जाने की मांग की है। स्मरणीय है कि इस बारे में सानन ने जून माह में भी मुख्य सचिव को एक पत्र लिखकर यह मांग की थी। लेकिन तीन माह में इस पत्र पर कोई कारवाई न होने के कारण सानन ने अब एक पत्रकार वार्ता करके इसे सार्वजनिक संज्ञान में ला दिया है। यहां यह विचारणीय है कि सानन और मुख्य सचिव विनित चौधरी एक ही बैच के अधिकारी हैं और जब वीरभद्र शासनकाल मे इनको नज़रअन्दाज करके वीसी फारखा को मुख्य सचिव बना दिया गया था तब इन दोनों ने ही संयुक्त रूप से एक याचिका डालकर फारखा की नियुक्ति को कैट में चुनौती दी थी। इस चुनौती के परिणामस्वरूप जब कैट ने चौधरी को फारखा के समकक्ष सिवधाएं प्रदान करवा दी थी और चौधरी ने छुट्टी कैन्सिल करके पुनः पदभार संभाल लिया था तब भी सानन को अपनी सेवानिवृति से एक सप्ताह पहले तक छुट्टी पर रहना पड़ा था। उस समय ली गयी तीन माह की छुट्टी का लाभ चौधरी ने मुख्य सचिव बनने के बाद 2018 में सानन को स्टडी लीव के रूप में मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर से दिलवाया। इस खुलासे से यह स्पष्ट हो जाता है कि चौधरी और सानन में कितने घनिष्ठ रिश्ते है।

लेकिन जब इतने घनिष्ठ रिश्ते होने के बावजूद चौधरी ने सानन के पत्र पर कोई कारवाई नही की और सानन को आर.एस. गुप्ता को साथ लेकर पत्रकार वार्ता करनी पड़ी तो निश्चितरूप से इस मामले के उस पक्ष को देखना आवश्यक हो जाता है जो अबतक सामने नही आया है। गौरतलब है कि जो पत्रा जून में सानन ने मुख्य सचिव को भेजा था उसमें होटल वाईल्ड फ्रलावर छराबड़ा और रामपुर के मन्दिर को ग्रांट देने के मामले शामिल नही थे। छराबड़ा के होटल का मामला निश्चित रूप से अन्य मामलों से ज्यादा गंभीर हैं क्योंकि इसमें प्रदेश सरकार को जो प्रतिवर्ष करोड़ों की आमदनी होनी थी वह नही हो रही हैं। इस होटल प्रकरण में दो-दो बार एमओयू हस्ताक्षरित हुए हैं। इस होटल प्रकरण का तो विशेष ऑडिट करवाये जाने की सिफारिश ए.जी. तक ने की हुई हैं। लेकिन आज तक यह ऑडिट नही हो पाया है क्योंकि किसी भी सरकार ने इस आश्य का पत्र कैग को लिखने की हिम्मत नही की है। यह होटल प्रकरण 1993 से 1995के बीच घटा है और इसके बाद दो बार भाजपा तथा दो बार कांग्रेस की सरकारें रह चुकी हैं। ऐसे में जब आज इस मामले में वाकायदा एफआईआर दर्ज करके जांच करवायी जाने की मांग की जा रही है तो निश्चित रूप से इस जांच के दायरे में वीरभद्र के साथ ही धूमल का भी दोनो बार का कार्यकाल रहेगा ही।
इसमें यह भी सवाल खड़ा होता है कि क्या इस होटल का मामला किसी विशेष राजनीतिक मकसद से उठाया गया है। क्योंकि इस प्रकरण में कैग से विशेष ऑडिट करने के लिये तो जयराम सरकार की ओर से भी कोई कदम नही उठाया गया हैं । वैसे तो सानन स्वयं भी एक समय वित्त विभाग की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं और ऐसे मामलों में जब भी कोई एमओयू हस्ताक्षरित होने की कारवाई होती है तब ऐसे बड़े फैसलों में वित्त सचिव या उसका कोई प्रतिनिधि शामिल रहता है ताकि वह यह सुनिश्चित कर सके की इसमें राज्य के हित सुरक्षित रह रहे है या नही। ऐसे मे यह होटल प्रकरण एक ऐसा मुद्दा खड़ा हो गया है कि यदि इसमें सरकार कोई कारवाई नही करती है तो कोई भी इसे जनहित याचिका के माध्यम से न्यायालय तक ले जा सकता हैं।
सानन के पत्रा और अब पत्रकार वार्ता के बाद यह संभावना भी प्रबल हो गयी है सानन के स्टडीलीव और टीडी लेने के मामलों को भी कोई विजिलैन्स और फिर अदालत में ले जा सकता है। क्योंकि स्टडीलीव मामले में जो जवाब विधानसभा में आये एक प्रश्न के उत्तर में दिया गया है उससे स्थिति और गंभीर हो गयी हैं इस जवाब में स्टडी लीव के जो नियम पटल पर रखे गये हैं उनके अनुसार इस स्टडीलीव के लिये पहले भारत सरकार से अनुमति लेना आवश्यक था जो नही ली गयी है। फिर स्टडी पर जाने से पहले एक बॉंड भरना पड़ता है जो कि नही भरा गया। जबकि मुख्य सचिव विनित चौधरी ने उस समय ऐसी ही छुट्टी जाने पर बॉंड  भरा था। जिसको लेकर अब एक विवाद भी चल रहा है फिर सानन ने इस स्टडी लीव के बाद जो करीब तीस पन्नों का अपना अध्ययन ''Property Titling in India''  जो सरकार को सौंपा है उससे सरकार को कितना लाभ हुआ है और इस अध्ययन के आधार पर आगे क्या कदम उठाये गये है। इस बारे में प्रश्न के जवाब में कुछ नही कहा गया है जानकारों के मुताबिक मुख्यमन्त्री को इसका जवाब देना कठिन हो जायेगा क्योंकि सानन को सेवानिवृति के बाद यह स्टडीलीव लाभ उनके अनुमोदन से ही मिला है। नियमों के मुताबिक सानन इस लाभ के पात्र नही थे।

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