अफसरशाही ने बिछायी बिसात
शिमला/शैल। जयराम सरकार ने वीरभद्र शासन के दौरान धूमल के खिलाफ आयी आय से अधिक संपति की शिकायत की जांच बन्द करने का फैसला लिया है। ऐसा विजिलैन्स की सिफारिश पर किया गया है। लेकिन धूमल पुत्रों अनुराग और अरूण के खिलाफ यह जांच जारी रहेगी। क्या अनुराग और अरूण के खिलाफ जांच चलाये रखने लायक कोई ठोस तथ्य विजिलैन्स के पास हैं इसका कोई खुलासा सामने नही आया है। जबकि अरूण धूमल तो पब्लिक सर्वैन्ट की परिभाषा में ही नही आते हैं और उन पर पीसी एक्ट लगता ही नही है। प्रशासनिक और राजनीतिक हल्कां में सरकार के इस फैसले के कई अर्थ लगाये जा रहे हैं। अब इसी के साथ सरकार ने वर्ष 2010 में रहे प्रधान सचिव राजस्व पूर्व मुख्य सचिव पी मित्रा के खिलाफ उस मामले में पुनः जांच करने का फैसला लिया है जिसमें विजिलैन्स ने एक समय क्लोजर रिपोर्ट अदालत में डाल दी थी। इस क्लोज़र रिपोर्ट के खिलाफ विजिलैन्स ने इस वर्ष मई में अदालत में आग्रह डाला कि वह इसमें नये सिरे से जांच करना चाहती है। अदालत ने नियमानुसार इस आग्रह को मान लिया और जांच की अनुमति दे दी। अब विजिलैन्स ने इसमें जांच शुरू कर दी है और मित्रा से पूछताछ करने के लिये विजिलैन्स मुख्यालय तलब किया है।
शिकायत है कि भू-सुधार अधिनियम की धारा 118 के तहत ज़मीन खरीदने की अनुमति मांगने के लिये आये एक आग्रह में यह स्वीकृति देने के एवज में घूस के तौर पर पैसे का लेनदेन हुआ है। यह पैसा एक बिचौलिये के माध्यम से हुआ है और इसमें संबधित लोगों के बीच हुई बातचीत की रिकार्डिंग उपलब्ध होने का दावा किया गया है। यदि ऐसी कोई रिकार्डिंग उपलब्ध है तो क्या यह फोन टेपिंग सरकार से अनुमति लेकर की गयी है या यह अवैध रूप से की गई फोन टेपिंग है। यह सवाल भी अपने में अलग से खड़ा है क्योंकि पिछले दिनों पूर्व डीजीपी आईडी भण्डारी ने अवैध फोन टेपिंग के आरोपों का जो मामला अदालत में लड़ा है उसमें शायद ऐसी किसी फोन टेपिंग का कोई जिक्र नहीं आया है। न ही इस टेपिंग के आधार पर कोई कारवाई की गयी है। स्मरणीय है कि 118 के इस मामले की जांच पूर्व में वीरभद्र शासन के दौरान हुई है और तभी विजिलैन्स ने इसमें क्लोजर रिपोर्ट दायर की थी। अब इस जांच के पुनः शूरू होने से वीरभद्र शासन के दौरान रहे विजिलैन्स तन्त्रा पर भी अपरोक्ष में गंभीर आरोप आते हैं। वैसे विजिलैन्स ने अब पुनः जांच शुरू करने पर भी इस मामले में रहे कथित बिचौलियों के खिलाफ कोई कारवाई नही की है। पैसे का लेन देन होने के आरोप का जो दावा किया जा रहा है उसकी भी कोई रिकवरी किसी से अब तक नही हुई है।
विजिलैन्स द्वारा की जा रही इस जांच के कई गंभीर परिणाम होंगे। इसलिये धारा 118 के तहत ज़मीन खरीद की अनुमति मांगने की प्रक्रिया को भी समझना आवश्यक है। धारा 118 के तहत अनुमति की प्रार्थना व्यक्ति जिलाधीश, सचिव या संबंधित विभागाध्यक्ष किसी के पास भी दायर कर सकता है। ऐसी प्रार्थना कहीं भी डाली जाये उस पर संबंधित जिलाधीश की रिपोर्ट लगती है। इस रिपोर्ट में बहुत सारे बिन्दुओं पर सूचना दी जाती है। जिसमें यह शामिल रहता है कि ज़मीन बेचने वाला ज़मीन बेचने के बाद भूमिहीन तो नही हो जायेगा। जम़ीन पर कोई पेड तो नही है यदि है तो उनकी किस्म क्या है। फिर जिस उद्देश्य के लिये ज़मीन ली जा रही है उससे जुड़े विभाग से एनओसी इसी के साथ बिजली, पानी, सड़क सभी विभागों से भी एनओसी चाहिये। यह एनओसी मिलने के साथ जिलाधीश रिपोर्ट लगाकर फिर सचिव को भेजगा। सचिव से फिर मुख्यमन्त्रा तक फाईल जायेगी। इसके लिये वाकायदा स्टैण्डिंग आर्डर जारी है कि धारा 118 के तहत अनुमति की कोई भी स्वीकृति सचिव या मन्त्री के स्तर पर नही होगी। यह अनुमति केवल मुख्यमन्त्री के स्तर पर ही मिलेगी। यह पूरी प्रक्रिया परिभाषित है। इसमें फील्ड के एनओसी फिर जिलाधीश सबकी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। सचिव के स्तर पर तो यह देखा जाता है कि वांच्छित अनुमतियां और रिपोर्ट है या नही। इसे स्वीकारने या नकारने का अन्तिम फैसला तो मुख्यमन्त्री का रहता है।
अब जब 118 के मामले में प्रधान सचिव राजस्व से पूछताछ की जायेगी तो निश्चित रूप से उसके बाद मुख्यमन्त्री से भी पूछताछ करनी पड़ेगी। 2007 के दिसम्बर में भाजपा की धूमल के नेतृत्व में सरकार बन गयी थी। उस दौरान धूमल सरकार पर हिमाचल ऑनसेल का आरोप लगा था। विधानसभा में 25.8.2011 को कुलदीप सिंह पठानिया, कौल सिंह और जी एस बाली का प्रश्न लगा था इसमें पूछा गया था कि जनवरी 2008 से अब तक कितने गैर हिमाचलीयों और गैर कृषको को धारा 118 के तहत अनुमतियां दी गयी हैं। कितनों को अनुमति के बाद भू उपयोग बदलने की भी अनुमति दी गयी है। इस प्रश्न के उत्तर में 1004 गैर हिमाचलीयों और 370 गैर कृषकां को अनुमति दी गयी है। इसमें कुछ आईएएस भी अनुमति पाने वालों में शामिल हैं। इसके बाद राजन सुशान्त ने भी किसी के नाम पर आरटीआई डालकर इन अनुमतियां की जानकारी ली है। जिसमें कई पत्रकार और अखबार घराने तक शामिल हैं। आरटीआई में हजा़रो की सूची सामने आयी है। अब जब जयराम सरकार ने यह जांच शुरू करवा दी है तो निश्चित रूप से इन सारे मामलों की जांच करवानी ही पड़ेगी। यदि सरकार जांच को सीमित रखने का प्रयास करेगी तो उसे कोई भी न्यायालय में चुनौती दे देगा। जिस अफसरशाही ने इस जांच की विसात बिछाई है वह इस प्रक्रिया से पूरी तरह परिचित है। इससे स्वतः ही सि़द्ध हो जाता है कि हिमाचल ऑन सेल के जिस आरोप की जांच वीरभद्र सरकार ने नही करवाई वह जांच अब जयराम सरकार करवाने जा रही है।