शिमला/शैल। एचपीसीए और अनुराग ठाकुर के खिलाफ धर्मशाला राजकीय महाविद्यालय के आवासीय परिसर को गिराने तथा उसकी 720 वर्ग मीटर भूमि पर नाजायज़ कब्जा करने को लेकर दर्ज हुई एफआईआर को भी सर्वोच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया है। यह फैसला 6-12-2018 को आया है। स्मरणीय है कि जब एचपीसीए के खिलाफ दर्ज हुई पहली एफआईआर को सर्वोच्च न्यायालय ने रद्द किया था तब फैसले में इस दूसरी एफआईआर को भी साथ रद्द कर दिये जाने का उल्लेख फैसले में आ गया था और आम आदमी में चला गया था कि दोनों ही एफआईआर एक साथ ही रद्द हो गयी है। इस पर वीरभद्र सिंह के वकील ने एतराज जताया और सर्वोच्च न्यायालय ने इसे अपनी भूल मानते हुए स्पष्ट किया था कि दूसरी एफआईआर रद्द नहीं हुई है। यह दूसरी एफआईआर अब छः दिसम्बर को रद्द हुई है। स्मरणीय है कि वीरभद्र के शासनकाल में विजिलैन्स का सारा समय और ध्यान एचपीसीए और अनुराग ठाकुर तथा प्रेम कुमार धूमल के खिलाफ ही मामले खड़े करने में ही गुजरा है। यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय में भी इन मामलों को जायज ठहराने के लिये वीरभद्र सिंह के वकील ने बहुत प्रयास किया जो कि सफल नही हो सका। इस पृष्ठभूमि में यह मामले और इन पर आया सर्वोच्च न्यायालय का फैसला प्रदेश की राजनीति पर गहरा प्रभाव डालेगा इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती। क्योंकि इन मामलों को वापिस लेने की बात तो जयराम सरकार करती रही है लेकिन व्यवहारिक तौर पर सीआरपीसी की धारा 321 के तहत औपचारिक आवेदन नही कर पायी थी।
विधानसभा चुनावों के दौरान जब भाजपा हाईकमान को यह लगा था कि प्रदेश का नेता घोषित किये बिना चुनावों में जीत की सुनिश्चितता तय नही हो सकती तब प्रेम कुमार धूमल को भावी मुख्यमन्त्री घोषित किया गया था। नेता घोषित होने के बाद धूमल ने किस कदर पूरे प्रदेश में प्रचार अभियान को नया अंजाम दिया और इस घोषणा पर प्रदेश भाजपा के किन नेताओं की प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष क्या प्रतिक्रिया रही है इसे राजनीतिक विश्लेषक अच्छी तरह जानते हैं। कांग्रेस और विशेषकर वीरभद्र सिंह, धूमल को किस तरह देखते हैं इसका अन्दाजा भी इसी से लगाया जा सकता है कि जब दूसरी एफआईआर के रद्द होने के उल्लेख को सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी भूल माना था तब इस पर वीरभद्र सिंह की प्रतिक्रिया कितनी व्यंग्यात्मक आई थी। धूमल और अनुराग के खिलाफ इन एफआईआर को बड़े राजनीतिक हथियार के रूप में देखा जा रहा था। यह चर्चा आम थी कि इस एफआईआर के माध्यम से अनुराग को आगे हमीरपुर से प्रत्याशी बनने से रोका जायेगा और इस तरह से धूमल परिवार को आसानी से प्रदेश की सक्रिय राजनीति से बाहर कर दिया जायेगा। जयराम सरकार बनने के बाद जिस तरह से जंजैहली में एसडीएम कार्यालय को लेकर लोगों में विवाद खड़ा हुआ और धरना प्रदर्शनों से लेकर उच्च न्यायालय तक मामला पहुंच गया था तब कुछ हल्कों में इस प्रकरण में धूमल की अपरोक्ष भूमिका को लेकर कई चर्चाएं उठ खड़ी हुई थी। इन चर्चाओं ने किस तरह का राजनीतिक आकार ले लिया था इसका खुलासा इसी से हो जाता है कि धूमल को उस समय यहां तक कहना पड़ गया था कि सरकार चाहे तो उनकी भूमिका की सीआईडी से जांच करवा ली जाये। जयराम और धूमल के राजनीतिक रिश्तों का इससे पूरा खुलासा हो जाता है। यह सही है कि अगर धूमल जीत गये होते तो वही मुख्यमन्त्री होते। इसी के साथ यह भी उतना ही सच है कि आज जयराम मुख्यमन्त्री हैं और वह भी अब आसानी से इस पद को छोड़ना नही चाहेंगे। लेकिन इस सबके साथ यह भी उतना ही बड़ा सच है कि पार्टी में जो लोग इस समय जयराम के ही केन्द्र या राज्य विधानसभा में पहुंचे हुए हैं। वह भी स्वभाविक रूप से यह पद पाने की ईच्छा पाले हुए हैं ऐसे में जयराम कुर्सी को कांग्रेस की बजाये भाजपा के अपनों से ही सबसे पहले खतरा है। अब लोकसभा चुनाव होने हैं और यह चुनाव जयराम सरकार की पहली राजनीतिक परीक्षा सिद्ध होंगे। एफआईआर रद्द होने के बाद अब अनुराग के पुनः उम्मीदवार होने को लेकर कोई संशय नहीं रह गया है बल्कि इस एफआईआर का सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रद्द किया जाना धूमल, अनुराग और भाजपा के हाथ कांग्रेस विशेषकर वीरभद्र के खिलाफ एक बहुत बड़ा हथियार लग जाता है। इससे कांग्रेस के खिलाफ शीर्ष अदालत का फतवा बन जाता है कि किस तरह राजनीतिक विरोधीयों के खिलाफ आपराधिक मामले बनाये जा रहे थे। इस मामले को जयराम और भाजपा कितनी राजनीतिक हवा दे पाते हैं इसका पता आने वाले दिनों मे लग जायेगा। वैसे इस पर अभी तक भाजपा की चुप्पी रहस्य बनी हुई है।
यही नहीं पिछले दिनों राज कुमार राजेन्द्र सिंह को लेकर जो सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आया है वह वीरभद्र की पूरी राजनीतिक कार्यशैली पर एक बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा कर जाता है क्योंकि राजेन्द्र सिंह के पूरे अदालती आचरण को शीर्ष अदालत ने फाड़ की संज्ञा दी है लेकिन इस अहम मुद्दे पर भी जयराम और उनकी भाजपा अभी तक चुप है। इस चुप्पी को लेकर जयराम और वीरभद्र के राजनीतिक रिश्तों को विश्लेषक अलग ही अर्थ दे रहे हैं। इस परिदृश्य में जयराम सरकार लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को कैसे और किन मुद्दों पर घेरेगी यह एक बड़ा सवाल बना हुआ है। क्योंकि अभी तक भाजपा अपने ही आरोप पत्र पर कोई परिणाम सामने नहीं ला पायी है बल्कि कई मुद्दों पर तो बड़े बाबूओं ने जयराम से ऐसे भी फैसले करवा दिये हैं जो उनकी पूरी चार्जशीट की ही हवा निकाल देते हैं। भाजपा का यह आरोप पत्र उसके अपने ही गले की फांस सिद्ध हो सकता है। उपर से वीरभद्र की ‘‘ना’’ के बावजूद कांग्रेस जयराम सरकार के खिलाफ एक सशक्त आरोपपत्र ला रही है। ऐसे में जयराम या उनकी टीम का कोई भी सदस्य ऐसा नही लग रहा है कि जो वीरभद्र को पूरी ताकत से घेर सकेगा। हिमाचल के वर्तमान परिदृश्य में कांग्रेस एक बार फिर वीरभद्र के आगे बौनी पड़ गयी है। ऐसे में भाजपा में एक बार फिर यह हालात पैदा हो गये हैं कि यदि लोस चुनावों की बागडोर धूमल नही संभालते हैं तो भाजपा की स्थिति बहुत नाजुक हो जायेगी।