Friday, 19 September 2025
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सरकार के जश्न से पूर्व विक्रमादित्य की आक्रामकता से फिर उलझे सियासी समीकरण

संजय कुण्डु और प्रवीण गुप्ता पर बिना नाम लिये हमला
जश्न से पहले उपलब्धियों पर मांगा श्वेत पत्र
भारद्वाज और कपूर में तालमेल न होने से नहीं मिली बर्दियां
महेन्द्र सिंह पर 1134 करोड़ की बागवानी परियोजना तबाह
करने का आरोप
शिमला/शैल। जयराम सरकार का 27 दिसम्बर को सत्ता में एक साल पूरा होने जा रहा है। इस मौके पर सरकारी स्तर पर जश्न मनाया जा रहा है और प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी भी इसमें शिरकत कर रहे हैं। इसी मौके पर कांग्रेस भी सरकार के खिलाफ आरोपपत्र लाने जा रही है। सरकार के एक वर्ष के कार्यकाल पर यदि निष्पक्षता से नजर डाली जाये तो यह सामने आता है कि अब तक सरकार और विपक्ष के बीच संबंध मैत्रीपूर्ण ही चल रहे थे। इसी मैत्री का परिणाम रहा कि सरकार ने कांग्रेस को नेता प्रतिपक्ष का पद दे ही दिया। भाजपा ने बतौर विपक्ष जो आरोपपत्र वीरभद्र सरकार के खिलाफ सौंपे थे उन पर कारवाई भी अब तक शून्य ही रही है। कांग्रेस शासन में भाजपा के जिन नेताओं के खिलाफ मामले बने थे उन्हे अब जयराम सरकार वापिस ले रही है। इस वापसी पर कांग्रेस लगभग खामोश चल रही है। बल्कि भाजपा ने अपने सचेतक और उपसचेतक को मन्त्री का दर्जा तथा उसी के समकक्ष अन्य सुविधायें दे दी हैं। विधानसभा में इस आश्य का विधेयक पारित करवाकर जयराम ने इस पर नियुक्ति भी कर दी है। लेकिन कांग्रेस इसमें ब्यानबाजी की रस्मी खिलाफत से आगे नही बढ़ी है जबकि यह विधयेक और इस पर की गयी नियुक्ति एकदम गलत है। यही नहीं इस विधानसभा सत्र से पूर्व वीरभद्र सिंह ने यह स्पष्ट कर दिया था कि अभी जयराम का विरोध नही किया जाना चाहिये। उन्हे और मौका दिया जाना चाहिये। विधानसभा में उन्हें नही घेरेंगे और कांग्रेस ने सत्र में इस आश्वासन पर अमल भी किया।
लेकिन विधानसभा सत्र के बाद अब जिस तरह से वीरभद्र के बेटे शिमला ग्रामीण से विधायक विक्रमादित्य सिंह ने जयराम और उनकी सरकार पर हमला बोला है उससे यह सोचने पर विवश होना पड़ता है कि अचानक ऐसा क्या घट गया है कि जिसके कारण विक्रमादित्य के तेवर इतने तल्ख हो गये। इसमें सबसे पहले तो यही आता है कि इस दौरान पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के परिणाम सामने आये हैं और इनमें भाजपा के अभेद्द गढ़ रहे मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसढ़ में कांग्रेस ने सत्ता पर कब्जा कर लिया है। इससे पूरे देश में हर कांग्रेसी उत्साहित है लेकिन इस उत्साह में सरकार पर रस्मी आक्रामकता तो समझ आती है लेकिन विक्रमादित्य का हमला तो रस्मअदायगी से कहीं आगे निकल गया है। जब उन्होंने यह कहा कि सरकार का एक प्रधान सचिव विजिलैन्स के कार्यालय में जाकर अधिकारियों पर कानून के दायरे से बाहर जाकर कांग्रेस नेताओं के खिलाफ मामले बनाने का दबाव डाल रहे हैं। विक्रमादित्य ने ऐसे अधिकारियों को सीधे -सीधे चेतावनी दी है कि कांग्रेस के सत्ता में आने पर ऐसे अधिकारियों को ‘‘फटक-फटक’’ कर देख लेंगे। समझा जा रहा है कि विक्रमादित्य का यह इशारा प्रधान सचिव विजिलैन्स संजय कुण्डु की ओर है। क्योंकि उन्हें जयराम दिल्ली से अपने कार्यालय में तैनाती देने के नाम पर लाये हैं और मुख्यमन्त्री के अतिरिक्त प्रधान सचिव के साथ प्रधान सचिव विजिलैन्स तथा मुख्यमन्त्री कार्यालय में गठित गुणवत्ता नियन्त्रण प्रकोष्ठ की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गयी है। वीरभद्र के कार्यकाल में गुणवत्ता का कितना ध्यान रखा गया है इसका प्रमाण टाऊनहॉल के उद्घाटन समारोह में मिल चुका है और शायद इस गुणवत्ता पर संजय कुण्डु ने संवद्ध अधिकारियों से पूछा भी है।
संजय कुण्डु के बाद विक्रमादित्य ने प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड के अधीक्षण अभियन्ता रहे प्रवीण गुप्ता की नियुक्ति पर भी गंभीर सवाल उठाया है। प्रवीण गुप्ता को जयराम सरकार ने पिछले दिनों पर्यावरण विभाग में अतिरिक्त निदेशक लगाने के साथ ही पर्यटन विभाग में एडीवी पोषित परियोजनाओं का प्रभारी भी बनाया है। विक्रमादित्य ने आरोप लगाया है कि प्रवीण गुप्ता एक कनिष्ठ अधिकारी हैं और ऐसी नियुक्तियों से वरिष्ठ अधिकारियों का मनोबल गिरता है। उन्होंने यह भी कहा कि नियुक्ति मुख्यमन्त्री के साथ उनके घनिष्ठ संबंधों के कारण दी गयी है।
स्मरणीय है कि प्रवीण गुप्ता की पत्नी प्रदेश लोकसेवा आयोग की सदस्य है और जब वह पत्रकारिता में थी तब हॉलीलॉज से भी उनके अच्छे संबंध थे तथा अब इस सरकार से भी उनकी नजदीकीयां हैं। सत्ता से नजदीकीयों का लाभ हर सरकार में उठाया जाता है और इसका सबसे बड़ा उदाहरण वीरभद्र के शासनकाल में उनके प्रधान निजी सचिव सुभाष आहलूवालिया की पत्नी मीरा वालिया की पहले शिक्षा नियामक आयोग और फिर प्रदेश लोक सेवा आयोग में नियुक्ति रही है। बल्कि इस नियुक्ति को प्रदेश उच्च न्यायायल में उसी दौरान चुनौती भी दे दी गयी थी और यह मामला अभी तक उच्च न्यायालय में लंबित चल रहा है।
इसी के साथ विक्रमादित्य ने जयराम सरकार द्वारा बाबा रामदेव को लीज़ पर भूमि देने के मामले में भी सवाल उठाया है। उन्होंने आरोप लगाया कि जिस ज़मीन की लीज़ राशी 28 करोड़ बनती थी उसे महज़ दो करोड़ बीस लाख दे दिया गया जबकि बाबा रामदेव की गिनती आज देश के पहले दस बड़े उद्योगपत्तियों में होती है। इसलिये उन्हें यह रियायत नही दी जानी चाहिये थी लेकिन कांग्रेस शासन में भी यही रियायत रामदेव को दी जा रही थी तब विक्रमादित्य इस पर खामोश थे। विक्रमादित्य ने जयराम सरकार पर एक लाख तबादले करने का आरोप लगाने के साथ ही यह भी कहा कि शिक्षा विभाग और खाद्य आपूर्ति विभाग के अधिकारियों में आपसी तालमेल न होने के कारण अब तक छात्रों को स्कूलों में बर्दी नही दी जा सकी है। दोनो विभागों के मन्त्रीयों में भी कोई तालमेल नही है। शिक्षा विभाग में घटे छात्रवृति घोटाले से लेकर बागवानी विभाग की 1134 करोड़ की परियोजना को भी तबाह कर दिये जाने का आरोप से पहले अपनी उपलब्धियों पर श्वेतपत्र जारी करने की भी मांग की है। कानून और व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए विक्रमादित्य ने कसौली में नगर नियोजन विभाग की अधिकारी शैल बाला और शिलाई में जिन्दान की हत्या के मामले उठाते हुए सरकार द्वारा राजीव बिन्दल और किश्न कपूर के मामले वापिस लिये जाने पर भी एतराज जताया।
विक्रमादित्य के तेवर काफी तल्ख रहे हैं और संजय कुण्डु तथा प्रवीण गुप्ता पर उनका निशाना साधना सीधे मुख्यमन्त्री पर हमला माना जा रहा है। लेकिन इस हमले का जबाव सरकार या भाजपा की ओर से न आना और भी कई सवाल खड़े कर देता है। बल्कि स्वयं मुख्यमन्त्री ने भी जो जबाव दिया है वह भी काफी कमजो़र माना जा रहा है यह कहा जाता रहा है कि इस संद्धर्भ में मुख्यमन्त्री को उनके अधिकारियों द्वारा वांच्छित जानकारियां नही दी जा रही है। विक्रमादित्य की इस प्रैसवार्ता के बाद सियासी हल्कों में यह अटकलें तेज हो गयी हैं कि आने वाले लोकसभा चुनावों में मण्डी से कांग्रेस का उम्मीदवार वीरभद्र परिवार का ही कोई सदस्य होगा और यह सदस्य विक्रमादित्य सिंह भी हो सकते हैं। क्योंकि विक्रमादित्य के बाद वीरभद्र सिंह ने भी ठियोग में जयराम सरकार पर हमला बोला है। मण्डी में जब सत्तपाल सत्ती ने रामस्वरूप शर्मा की पुनः प्रत्याशी बनाये जाने की घोषणा की थी तब उस पर पंडित सुखराम ने जिस तरह से इस घोषणा पर सवाल उठाया था उससे स्पष्ट हो जाता है कि मण्डी भाजपा के लिये कठिन होने जा रही है। इस परिदृश्य में यदि जयराम सरकार समय रहते न संभली तो वीरभद्र परिवार के बदलते तेवर उसके लिये खतरे के संकेत हो सकते हैं।

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