Friday, 19 September 2025
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प्रदेश का कर्जभार पंहुचा 52000 करोड़

शिमला/शैल। इस बार बजट सत्र में नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री और कांग्रेस के ही विधायक पूर्व मंत्री राम लाल ठाकुर का सवाल था कि 15 जनवरी 2019 तक जयराम सरकार ने कितना कर्ज लिया है। इस सवाल के जवाब में बताया गया कि 3451 करोड़ का कर्ज लिया गया और इसमें 3000 करोड़ खुले बाजार से लेना पड़ा है। इसी के साथ यह भी बताया गया कि इसमें सरकार ने कुछ कर्ज वापिस भी कर दिया है और इस तरह शुद्ध रूप से केवल 1838.75 करोड़ का ही ऋण लिया गया है। मुकश अग्निहोत्री के सवाल के जवाब में बताया गया कि सरकार की कर्ज लेने की सीमा 4524 करोड़ है और सरकार का कुल कर्ज 4975.45 करोड़ है। लेकिन मुख्यमन्त्री ने अपने बजट भाषण में सदन को बताया है कि इस वर्ष 5068 करोड़ का ऋण लेना पडे़गा। मुख्यमन्त्री के बजट भाषण के आंकड़ों को सही मानते हुए कुल कर्ज 52000 करोड़ से ऊपर चला जाता है। कर्ज का दस्तावेज 2003 से 2017-18 तक का शैल के पिछले अंक में पाठकों के सामने रखा जा चुका है।

कर्ज को लेकर सदन में आये राम लाल ठाकुर और मुकेश अग्निहोत्री के प्रश्नों पर चर्चा नही हो पायी है और इस तरह यह सरकार का लिखित जवाब ही रह गया है। लेकिन बजट भाषण पर हुई चर्चा में कर्ज  की स्थिति पर चिन्ता व्यक्त की गयी है। मुख्यमन्त्री ने इस चर्चा का जवाब देते हुए यहां तक कह दिया कि पूर्व में कर्ज लेकर मौज मस्ती होती रही है। मुख्यमन्त्री का यह आरोप कितना सही है इससे ज्यादा महत्वपूर्ण  यह है कि क्या जयराम सरकार इस बढ़ते कर्जभार का रोकने का कोई ठोस उपाय कर रही है? जयराम पहली बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हैं इस नाते उनका दामन कर्ज करने के दाग से साफ था। ऐसे में यदि वह प्रदेश की वित्तिय स्थिति पर कोई श्वेतपत्र ले आते तो प्रदेश की जनता उनके कथन पर आसानी से विश्वास कर लेती। लेकिन वह कर्ज के लिये जिम्मेदार अफरशाही के हाथों में ऐसे खेल गये कि यह श्वेत पत्र नही ला सके। जबकि 1998 में धूमल यह श्वेतपत्र लेकर आये थे और इसी कारण से वह वीरभद्र शासन पर लगातार भारी पड़ते रहे।

अभी जो आंकड़े अफसरशाही ने मुख्यमन्त्री के सामने परोसे हैं उनमें अपने में अन्त विरोध है। सवाल के जवाब में कुछ है और बजट भाषण में कुछ। फिर बजट की विवरणिका में जो पूंजीगत प्राप्तियों का सकल ऋण कहा गया है वह क्या है इस पर कोई स्पष्टीकरण नही आ पाया है। भारत सरकार मार्च 2016 में भी कर्ज को लेकर चेतावनी पत्र भेज चुकी है। लेकिन इस पत्र पर कोई अमल नही हुआ है। क्योंकि एफआरबीएम अधिनियम की धारा दस के तहत अधिकारियों को यह छूट हासिल है कि उनके खिलाफ किसी भी तरह की कोई कानूनी कारवाई नही की जा सकती है।No suit, prosecution or other legal proceedings shall lie against the state government or any of its officers, for anything which is in good faith done or intended to be done under this Act or the rules made there under. लेकिन इसी अधिनियम की धारा 7(2) में सरकार की यह भी जिम्मेदारी है कि वह अपने संसाधन बढ़ाये

Whenever there is a prospect of either shortfall in revenue or excess of expenditure over pre-specified levels for a given year on account of any new policy decision of the state Government that affects either the State Government or its public sector undertakings, the State Government, prior to taking such policy decision, shall take measure to fully offset the fiscal impact for the current and future years by curtailing the sums authorized to be paid and applied from and out of the consolidated Fund of the State under any Act enacted by Legislative Assembly to provide for the appropriation of such sums , or by taking interim measure fro revenue augmentation, or by taking up a combination of both.

लेकिन एफआरवीएम के इन प्रावधानों के तहत क्या संसाधन बढ़ाने की ओर कोई ध्यान दिया जा रहा है शायद नही। केवल हर बार हर मुख्यमन्त्री के नाम से हर बजट में ऐसी घोषणाएं कर दी जाती हैं जिनको पूरा करने के लिये केवल कर्ज लेना ही एकमात्र विकल्प रह जाता है। इसी का परिणाम है कि आज प्रदेश 52000 करोड़ के कर्ज तले डूबा है। इसी कारण से आज हर काम आऊटसोर्से पर किया जा रहा है।

 

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