शिमला/शैल। जयराम सरकार प्रदेश की आर्थिक सेहत को सुधारने तथा बढ़ती बेरोजगारी पर लगाम लगाने के लिये राज्य में नये उद्योग स्थापित करने की योजना पर काम कर रही है। क्योंकि सरकार की नजर में उद्योग ही एक ऐसा अदारा है जिनके माध्यम से निवेश आने पर जीडीपी सुधरेगा और रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे। इस नीति पर काम करते हुए सरकार ने शिमला में आयोजित इन्वैस्टर मीट में उद्योगों के साथ 18 हजार करोड़ से अधिक के निवेश के उद्योपतियों के साथ एमओयू साईन किये हैं इस 18 हजार करोड़ के संभावित निवेश में से कितना सही में जमीनी हकीकत बन पायेगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। क्योंकि पूर्व में धूमल और वीरभद्र शासन में भी ऐसे प्रयास और प्रयोग हो चुके हैं लेकिन उनमें कितनी सफलता हासिल हुई है और कितना निवेश प्रदेश को मिल पाया है इसके सही आंकड़े संवद्ध प्रशासन नही दे पाया है। माना जाता है कि शीर्ष प्रशासन इस तरह की योजनाएं जीडीपी के आंकड़े सुधारने के लिये लाता है ताकि कर्ज लेने की सीमा बनी रही।
इस समय प्रदश में कितने उद्योग कार्यरत है और उनमें कितना निवेश है तथा कितने लोग काम कर रहे है इसको लेकर उद्योग विभाग ने 2017 में एक प्रपत्र तैयार किया था। इसके मुताबिक प्रदेश में 40 हजार उद्योग पंजीकृत हैं जिनमें 17 हजार करोड़ का निवेश है तथा इन उद्योगों में 2,58,000 कर्मचारी कार्यरत हैं। इस बार सदन में आये एक प्रश्न के उत्तर में उद्योगों की संख्या 49 हजार बतायी गयी है लेकिन इनमें कितना निवेश है और कितने कर्मचारी हैं इस पर कुछ नही कहा गया है। इसी बीच आयी एक कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि हिमाचल के 2009 से 2014 के बीच विभिन्न करों में 35 हजार करोड़ की राहत मिल चुकी है। लेकिन इसके बावजूद यह उद्योग प्रदेश के युवाओं को वांच्छित रोजगार नही दे पाये हैं। 35 हजार करोड़ का यह आंकड़ा सरकारी फाईलों में दर्ज रिटर्नज पर आधारित है। यह दावा है केन्द्र के वित्त विभाग का जिसे प्रदेश की अफसरशाही मानने को तैयार नही हैं लेकिन कैग में दर्ज इस रिपोर्ट को प्रदेश के बड़े बाबू खारिज भी नही कर पाये हैं। कैग रिपोर्ट में दर्ज आंकड़ो और प्रदेश के उद्योग विभाग के 2017 के प्रपत्र के अनुसार इन उद्योगों के माध्यम से 52 हजार करोड़ निवेश से केवल तीन लाख लोगों को ही रोजगार मिल पाया है कि क्या प्रदेश की उद्योग नीति सही दिशा में है या नही।
आज उद्योगों को आमन्त्रित करने के लिये उन्हे कई तरह के प्रोत्साहन दिये जाते हैं। सबसे बड़ा तो यह है कि यह उद्योगपत्ति प्रदेश के बैंको से ही कर्ज लेकर निवेश करते हैं। जब यह कर्ज लौटाया नही जाता है तब एनपीए हो जाता है। आज प्रदेश के सारे सहकारी बैंक तक एनपीए में है। प्रदेश की वित्त निगम इन्ही उद्योगों के कारण डूब चुका है लेकिन प्रदेश की शीर्ष अफसरशाही और राजनीतिक नेतृत्व इस गंभीर पक्ष की ओर एकदम आंखे बन्द करके बैठा है। बल्कि कई जगह तो केन्द्र की योजनाओं के नाम पर कुछ शातिर लोग बैंक प्रबन्धन से मिलकर लोगों को लूट रहे हैं और संवद्ध प्रशासन इस बारे में आंख कान बन्द करके बैठा हुआ है। यहां तक की पुलिस भी ऐसी शिकायतों पर इन लोगों के प्रभाव में आकर कोई कारवाई नही कर रही है। इसलिये आज यह बहुत आवश्यक हो जाता है कि उद्योगों को आमन्त्रित करने के साथ ही उनकी लूट पर भी नजर रखनी होगी।
केन्द्र सरकार की स्माॅल, माईक्रो और मीडियम उद्य़ोगों को प्रोत्साहन एवम् संरक्षण देने की योजना है। यह योजना 2006 में अधिसूचित हुई थी। इसके तहत उद्योग लगाने वाले व्यक्ति को दो करोड़ ऋण लेने के लिये किसी भी तरह की धरोहर/संपत्ति को बैंक में गिरवी रखने की आवश्यकता नही थी क्योंकि इसके लिये सरकार ने एक CGTMSE(Credit Guarntee Fund trust for Micro and small Entetprises) स्थापित कर रखा था। इस योजना के तहत स्थापित यदि कोई इकाई डिफाल्टर हो जाती है तो यह ट्रस्ट ऋण देने वाले बैंक को उसकी 50/75/80/85 प्रतिशत तक भरपाई करता है। इस योजना में 7-1-2009 को संशोधन करके ट्रस्ट की जिम्मेदारी 62.50% से 65% तक कर दी गयी थी। इसके बाद 16-12-2013 को इसमें फिर संशोधन हुआ और ट्रस्ट की जिम्मेदारी 50% तक कर दी गयी। इस योजना के तहत स्थापित हो रही इकाई और उसको स्थापित करने वाले का आकलन करना और उससे पूरी तरह आश्वस्त होना यह जिम्मेदारी ऋण देने वाले बैंक प्रबन्धन की थी। अभी पिछले दिनों मोदी सरकार ने भी इसी योजना के तहत 59 मिनट में एक करोड़ का ऋण देने की घोषणा की है। यह इसी आधार पर संभव है कि ऋण लेने वाले को कुछ भी धरोहर के रूप में बैंक के पास गिरवी नही रखना है केवल बैंक प्रबन्धन को ऋण लेने वाले और उसकी योजना से आश्वस्त होना है। केन्द्र सरकार की यह एक बहुत बड़ी योजना है और इसके लिये एक पूरा मन्त्रालय स्थापित है। वीरभद्र सिंह भी इसके केन्द्र में मन्त्री रह चुके हैं। इस योजना की पूरी जानकारी आम आदमी से ज्यादा बैंको के पास है और एक तरह से उन्हें ही लोगों को इसके लिये प्रोत्साहित करना है।
जब सरकार उद्योग स्थापित करने के लिये इस तरह की सहायता का आश्वासन देगी तो यह स्वभाविक है कि कोई भी आदमी इसका लाभ उठाना चाहेगा। इसी का फायदा उठाकर मोहम्मद शाहिद हुसैन ने पांच अलग नामों से उद्योग इकाईयां स्थापित की। शाहिद हुसैन हिमाचल का निवासी नही था और यहां पर उसके पास कोई संपत्ति नही थी। इसलिये उसे यहां पर उद्योग लगाने के लिये स्थानीय लोगों की हिस्सेदारी चाहिये थी। इस हिस्सेदारी को हासिल करने के लिये उसने स्थानीय लोगों से मित्रता बनानी आरम्भ कर दी और सबको अपना परिचय एक मुस्लिम बुद्धिजीवि शायर के रूप में दिया। उसकी शायरी से प्रभावित होकर कुछ लोग उसके प्रभाव में आ गये। प्रभाव में आने के बाद उसने इन लोगों को केन्द्र की इस उद्योग योजना की जानकारी देना शुरू किया। इसका विश्वास दिलाने के लिये केनरा बैंक के प्रबन्धक एस के भान से मिलाना शुरू किया। बैंक मैनेजर ने भी लोगों को इस योजना की जानकरी दी और बताया कि इसमें उन्हे ऋण लेने के लिये कुछ भी गिरवी रखने की आवश्यकता नही है। स्वभाविक है कि जब ऋण देने वाला बैंक भी ऐसी योजना की पुष्टि करेगा तब आदमी उद्योग लगाने के लिये तैयार हो ही जायेगा। उद्योग इकाईयां स्थापित कर ली यह इकाईयां आर आर वी क्रियेशनज़, रामगढ़िया इन्टरप्राईज़िज, बाला जी इन्टर प्राईज़िज, आर के इन्डस्ट्रीज और पारस होम एप्लांईसेज़ शाहिद के षडयन्त्र का असली चेहरा पासर होम एप्लाॅंईसैज मे सामने आया। यहां पर उसने पीयूष शर्मा को अपना हिस्सेदार बनाया। पीयूष के पिता कुलदीप शर्मा का यहां एक होटल और अपना बड़ा मकान है। शाहिद की नज़र इस संपत्ति पर आ गयी। उसने पीयूष को पार्टनर बनाकर जून 2013 में केनरा बैंक से ऋण स्वीकृत करवा लिया। फिर नवम्बर 2013 में पीयूष के पिता कुलदीन शर्मा को यह कहानी गढ़ी कि उसे 1.10 लाख यू एस डॅालर का आर्डर मिला है और इस आर्डर को पूरा करने के लिये उसे एक करोड़ के अतिरिक्त ऋण की आवश्यकता है यदि कुलदीप शर्मा इस ऋण के लिये अपना मकान कुछ समय के लिये बैंक में गिरवी रखने को तैयार हो जायें तो यह आसान हो जायेगा। बेटे के भविष्य को ध्यान में रखते हुए वह इसके लिये तैयार हो गये। शाहिद उन्हें केेनरा बैंक ले गया वहां बैंक प्रबन्धक ने भी इसकी पुष्टि कर दी और कुलदीप को मकान मारटगेज करने के लिये राजी कर लिया। 9.12.2013 को यह मारटगेज डीड साईन हो गयी। यह डीड साईन होने के बाद अन्य इकाईयों की जानकारी सामने आयी और कुलदीप के बेटे ने शाहिद के साथ अपनी पार्टनरशिप भंग कर दी। कुलदीप शर्मा ने बैंक को यह मारटगेज डीड रद्द करने के लिये लिखित में दे दिया क्योंकि इस डीड के एवज में बैंक ने कोई अतिरिक्त ऋण जारी नहीं किया था। बैंक के साथ ही कुलदीप ने संबन्धित तहसीलदार को भी सूचित कर दिया कि यह इस डीड पर अमल न करे। लेकिन तहसीलदार ने कुलदीप के आग्रह को नजरअन्दाज करके मकान बैंक के नाम लगा दिया। इस सारे किस्से की पुलिस को भी लिखित में शिकायत दे दी गयी लेकिन पुलिस ने आज तक शाहिद और बैंक प्रबन्धन के खिलाफ कोई मामला दर्ज नही किया है।
कुलदीप जैसा ही व्यवहार अन्य तीन लोगों के साथ भी हुआ है वह भी पुलिस को शिकायत कर चुके हैं लेकिन कोई कारवाई सामने नही आयी है। अब यह भी सामने आया है कि आर के इन्डस्ट्रीज़ शाहिद की पत्नी के नाम है लेकिन यह इकाई केवल कागजों में ही कही जा रही है और इसी केनरा बैंक प्रबन्धन ने इस ईकाई के नाम पर भी कोई 50 लाख का ऋण दे रखा है। इन सारे उद्योगों को इसी बैंक से करीब दो करोड़ का ऋण दिया जा चुका है और इन उद्योगों में हिस्सेदार बनाये गये सारे स्थानीय लोग इस षडयन्त्र का शिकार हो चुके हैं। यह सारे ऋण एक ही बैंक प्रबन्धक द्वारा दिये जाना यह प्रमाणित करता है कि यह एक सुनियोजित षडयन्त्र है जिसमें बैंक प्रबन्धक की सक्रिय भूमिका रही है। अब जब पुलिस शिकायत मिलने के बाद भी मामला दर्ज नही कर रही है तब पुलिस की भूमिका भी सन्देह के घेरे में आ गयी है। इस षडयन्त्र का शिकार हुए लोगों की हताशा कब क्या गुल खिला दे इसका अनुमान लगाना कठिन है।
CGTMSE -Credit Guarantee Fund trust for Micro and Small Enterprises:A special protection is given to the micro, small and Medium enterprises via the MSME Act, 2006. These are small scale industries which require immunity and special protection to flourish. These industries from the very backbone of our Indian Economy.One of the government- sponsored schemes for MSMEs is the CGTMSE (Credit Guarantee Fund Trust for Micro and small Enterprises).
What is the CGTMSE?
The whole idea behind this trust is to provide financial assistance to these industries without any third party guarantee/ or collateral. These schemes provide the assurance to the lenders that in case of default by them a guarantee cover will be provided by trust in the ration of 50/75/80/85 percent of the amount so given.