Friday, 19 September 2025
Blue Red Green

ShareThis for Joomla!

बिन्दल को हुए नोटिस से जयराम सरकार आयी सवालों में

शिमला/शैल। जयराम सरकार ने विधानसभा अध्यक्ष डा. राजीव बिन्दल के खिलाफ डेढ़ दशक से चल रहे आपराधिक एवम् भ्रष्टाचार मामले को पिछले वर्ष उस समय वापिस ले लिया था जब यह मामला एक तरह से फैसले के कगार पर पंहुच चुका था। क्योंकि इसमें अभियोजन पक्ष की ओर से सारी गवाहीयां हो चुकी थी। केवल इसमें नामज़द अभियुक्तों के ही धारा 313 के तहत ब्यान होने बाकी थे। इन ब्यानों के बाद बहस और फिर फैसले की स्टेज ही शेष बची थी। ऐसे में इस स्टेज पर आकर विजिलैन्स द्वारा सीआरपीसी की धारा 321 में आवेदन दायर करके मामलों को वापिस लेना सरकार और जांच ऐजैन्सी की नीयत तथा नीति पर गंभीर सवाल उठाता है। फिर जब आपराधिक मामलों पर सर्वोच्च न्यायालय यह व्यवस्था दे चुका हो कि Every acquittal has to be viewed seriously शीर्ष अदालत की इस व्यवस्था के बाद हिमाचल उच्च न्यायालय भी जुलाई 2016 में कैप्टन राम सिंह के मामले में निचली अदालत द्वारा वहां आये धारा 321 के आवदेन को स्वीकार करने के फैसले को पलट चुका है।
यही नहीं 13 सितम्बर 2018 को सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालीन प्रधान न्यायधीश दीपक मिश्रा और जस्टिस चन्द्र चूढ़ पर आधारित पीठ का एक फैसला आ गया था। इसमें धारा 321 पर विस्तार से चर्चा करने के बाद अदालत ने यह कहा कि We are compelled to recapitulate that there are frivolous litigations but that does not mean that there are no innocent sufferers who eagerly wait for justice to be done. That apart, certain criminal offences destroy the social fabric. Every citizen gets involved in a way to respond to it; and that is why the power is conferred on the Public Prosecutor and the real duty is cast on him/her. He/ she has to act with responsibility. He/she is not to be totally guided by the instructions of the Government but is required to assist the Court; and the Court is duty bound to see the precedents and pass appropriate orders.
In the case at hand, as the aforestated exercise has not been done, we are compelled to set aside the order passed by the High Court and that of the learned Chief Judicial Magistrate and remit the matter to the file of the Chief Judicial Magistrate to reconsider the application in accordance with law and we so direct.
The appeal is, accordingly, allowed. 
सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के परिदृश्य में यह और फिर भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि जयराम सरकार ने इस मामले को वापिस क्यों लिया। गृह और विजिलैन्स विभाग मुख्यमन्त्री जयराम के अपने पास हैं। फिर जयराम से लेकर मोदी तक भाजपा का सारा शीर्ष नेतृत्व भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी प्रतिबद्धता के दावे करता है।
अब इस मामले को पवन ठाकुर ने प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी है। उच्च न्यायालय ने इस याचिका पर बिन्दल समेत सभी अभियुक्तों और सरकार को नोटिस जारी कर दिये हैं वैसे तो आपराधिक मामलों में इस तरह की याचिका डालना केवल पीड़ित पक्ष का ही अधिकार होता है। इस मामले में प्रत्यक्षतः पीड़ित पक्ष सरकार ही है और उसकी ओर से कोई अपील दायर नही हुई है। ऐसे में तीसरे व्यक्ति की याचिका पर उच्च न्यायालय द्वारा नोटिस जारी करना सर्वोच्च न्यायालय की समय समय पर आयी व्यवस्थाओं का ही परिणाम माना जा रहा है। प्रदेश उच्च न्यायालय में इस मामले में अन्तिम फैसला क्या आता है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन इस मामले से जयराम सरकार की विश्वसनीयता के साथ ही विपक्ष की भूमिका भी सवालों में आ जाती है क्योंकि चुनावों के बीच आये उच्च न्यायालय के नोटिस पर विपक्ष की ओर से कोई प्रतिक्रिया नही आयी है। याद रहे कि 1999 में राजीव बिंदल सोलन नगर समिति के अध्यक्ष थे तो उस समय परिषद में हुई नियुक्तियों में उन्होंने कानूनों का उल्लंघन कर डेढ़ दर्जन से ज्यादा लोगों को भर्ती कर दिया था।
1999 में प्रदेश में भाजपा-हिविंका गठबंधन की सरकार थी। बाद में 2000 में बिंदल सोलन हलके के हुए उप चुनाव में विधयक बन गए थे। इसके बाद 2003 में सता में आई वीरभद्र सिंह सरकार ने इन नियुक्तियों की जांच कराई व विजीलैंस ने 2006 में बिंदल व बाकियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 468, 471 और 120 बी के अलावा भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 13(2)के तहत मामला दर्ज किया था। लेकिन तब अदालत में चालान पेश नहीं हो पाया। दिसंबर 2007 में प्रदेश में दोबारा से धूमल सरकार सत्ता में आ गई और यह मामला लटक गया। बाद में दिसंबर 2012 में सत्ता में आई वीरभद्र सिंह सरकार में जुलाई 2013 में बिदंल व बाकियों के खिलाफ मुकदमा चलाने को लेकर सरकार ने अभियोजन को मंजूरी दे दी। बिंदल के अलावा इस मामले में नगर समिति सोलन के तत्कालीन पार्षद हेमराज गोयल, डीके ठाकुर और समिति के कार्यकारी अधिकारी एससी कलसोत्रा मुख्य रूप से आरोपी बनाए गए थे। बाकी आरोपी जिन्हें नियुक्त किया गया था, वह थे। 
वीरभद्र सिंह सरकार में ट्रायल शुरू हुआ। प्रदेश में जब जयराम सरकार सत्ता में आई तो इस मामले की पैरवी कर रहे वीरभद्र सिंह के बेहद करीबी व पूर्व निदेशक अभियोजन सतीश ठाकुर को जयराम सरकार ने नहीं हटाया। सतीश ठाकुर ने ही जांच अधिकारी समेत मुख्य गवाहों की गवाहियां जयराम सरकार में ही करवाई। सरकार के एक साल सत्ता में आ जाने के बाद सतीश ठाकुर को हटाया गया।
लेकिन तब केवल सीआरपीसी की धारा 313 के तहत ब्यान होने ही बाकी बचे थे। इस बीच जयराम सरकार की ओर से अदालत में बिंदल के खिलाफ मामले को वापस लेने के लिए अर्जी दायर की गई लेकिन अदालत ने कहा कि केवल एक आरोपी के खिलाफ मामला वापस नहीं हो सकता।
ऐसे में सरकार ने सभी आरोपियों के खिलाफ मामले वापिस लेने की अर्जी दायर की व सेशन जज सोलन ने भूपेश शर्मा ने अभियोजन की अर्जी मंजूर कर ली। पवन ठाकुर की ओर से पैरवी कर रही वकील सुनीता शर्मा ने कहा कि चार सप्ताह के भीतर जवाब दायर करने के आदेश दिए गए हैं।
इस मामले के दोबारा उठने से बिंदल का मंत्री बनना मुश्किल में आ सकता है। बिंदल एक अरसे से जयराम सरकार में मंत्री पद हासिल करने की जुगत में है लेकिन वह अभी तक कामयाब नहीं हुए हैं।

Add comment


Security code
Refresh

Facebook



  Search