Friday, 19 September 2025
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क्या कांग्रेस 2014 की हार का बदला ले पायेगी वीरभद्र की सक्रियता के बाद उठी चर्चा

शिमला/शैल। जैसे-जैसे चुनाव प्रचार अपने अन्तिम पड़ाव तक पंहुचता जा रहा है उसी अुनपात में कांग्रेस और विशेषकर वीरभद्र सिंह की प्रचार में सक्रियता बढ़ती जा रही है। जबकि एक समय तक भाजपा और वीरभद्र के अन्य विरोधी उनकी कांग्रेस उम्मीदवारों को लेकर की जा रही टिप्पणीयों से यह प्रचार करते जा रहे थे कि वीरभद्र स्वयं कांग्रेस को हराने का खेल रच रहे हैं। इसके लिये तर्क दिया जा रहा था कि प्रदेश के चारां कांग्रेसी उम्मीदवार वीरभद्र की पंसद के नही हैं। कहा जा रहा था कि वीरभद्र कांगड़ा में सुधीर शर्मा, हमीरपुर में राजेन्द्र राणा के बेटे की वकालत कर रहे थे और मण्डी में तो सुखराम उनके धुर विरोधी रहे हैं इसलिये वह उनके पौत्र को आर्शीवाद नही देंगे। शिमला क्षेत्र में तो उनके अपने विधानसभा हल्के अर्की और विक्रमादित्य के शिमला ग्रामीण तक में कांग्रेस के हारने के कयास लगाये जा रहे थे।
लेकिन प्रदेश की राजनीति को समझने वाले विश्लेषक जानते हैं कि प्रदेश के चार बड़े नेता वीरभद्र, सुखराम, शान्ता कुमार और प्रेम कुमार धूमल राजनीति के जिस मुकाम तक पंहुच चुके हैं वह स्थान उन्होने अपनी मेहनत से हासिल किया है और उसे वह अन्तिम पड़ाव पर आकर खोना नही चाहेंगे। इसलिये सुखराम ने वीरभद्र से सार्वजनिक रूप से क्षमा याचना कर ली। इस क्षमा याचना के बाद वीरभद्र का सम्मान और बढ़ा है। इस सम्मान को बनाये रखने के लिये वह आश्रय को अपना पूरा आर्शीवाद देने में कोई कसर नही छोडेंगे यह स्वभाविक है। क्योंकि जिस ऐज-स्टेज पर वीरभद्र पंहुच चुके हैं उससे यह लगता है कि वह 2022 का चुनाव नही लड़ना चाहेंगे क्योंकि सहेत का तकाजा रहेगा। ऐसे में जब आज वह कांग्रेस के मसीहा होने के मुकाम पर हैं तो इसे वह खोना नही चाहेंगे। फिर ऊना की रैली में जिस तरह से राहुल गांधी ने उन्हे सम्मान दिया है उससे भी यही स्पष्ट होता है। फिर जब 2014 में भाजपा ने चारां सीटां पर मोदी लहर के चलते कब्जा कर लिया था तब वीरभद्र ही प्रदेश के मुख्यमन्त्री थे। मण्डी से उनकी पत्नी पूर्व सांसद प्रतिभा सिंह उम्मीदवार थी और मण्डी शुरू से ही उनका चुनाव क्षेत्र रहा है। वीरभद्र 2014 के बाद 2017 तक मुख्यमन्त्री रहे हैं। आज जयराम को तो अभी एक वर्ष ही हुआ है मुख्यमन्त्री बने और फिर इस बार मोदी के नाम की लहर वैसी ही है जैसी 2004 में शाईनिंग इण्डिया की थी। इस परिदृश्य में सुखराम और वीरभद्र के इकक्ठा होने से न केवल मण्डी ही बल्कि पूरे प्रदेश का परिदृश्य बदल जाता है। इस परिदृश्य में सुरेश चन्देल का कांग्रेस में शमिल होना पार्टी की स्थिति को और मजबूत कर देता है।
अब शिमला जिला में जिस तरह से वीरभद्र कुलदीप राठौर और विक्रमादित्य ने मिलकर दौरा किया है उससे स्थिति पूरी तरह बदल गयी है। बल्कि अब जिस तरह से सुरक्षा कारणों का हवाला देकर प्रियंका गांधी की शिमला जिला की रैली और रोड़ शो की सरकार ने अनुमति नही दी है उससे भाजपा की घबराहट ही सामने आती है। इस रैली और रोड़ शो को स्थगित करवाने से सरकार की छवि को ही नुकसान पहुंचा है। इसी के साथ सुरेश चन्देल और सुखराम के कांग्रेस में शामिल होने का बदला लेने के लिये भाजपा ने सिंघी राम को तोड़कर भाजपा में शामिल करवाया है इससे कांग्रेस को कोई ज्यादा नुकसान नही पंहुच पाया है बल्कि इससे यही संदेश गया है कि भाजपा यह बदला तो लेना चाहती है लेकिन इसमें सफल नही हो पायी है।
आज कांग्रेस को सबसे बड़ा लाभ उसके चुनाव घोषणा पत्र में घोषित योजनाओं से मिल रहा है। कांग्रेस ने न्याय योजना के तहत जो गरीब परिवारों को प्रतिवर्ष 72000 की आय सुनिश्चित करने का वायदा किया है वह सन्देश आम तक पंहुच चुका है। इस योजना पर कांग्रेस काफी समय से काम कर रही थी। इसके लिये हर प्रदेश से आंकड़े लिये गये थे। हिमाचल से भी ऐसे 1.50 लाख परिवारों को चिन्हित करके उनके वाकायदा फार्म भरकर कांग्रेस के केन्द्रिय कार्यालय को बहुत अरसा पहले से भेजे जा चुके हैं। इस न्यूनतम आय गारंटी योजना के साथ युवाओं को रोज़गार और किसानों के लिये अलग बजट कुछ ऐसे वायदे हैं जिनकी कोई काट भाजपा के पास नही है। फिर किसान ऋण माफ करने का वायदा जिस तरह से मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सरकारें बनने के बाद सभी कांग्रेस शासित राज्यों में पूरा किया गया है उससे कांग्रेस के घोषणा पत्र की विश्वसनीयता और बढ़ी है। क्योंकि कांग्रेस के इन वायदों की तुलना भाजपा द्वारा 2014 में किये वायदों से की जा रही है। भाजपा इन वायदों की चुनाव प्रचार में चर्चा तक नही छेड़ पायी है और यहीं पर कांग्रेस भाजपा पर भारी पड़ रही है।
इस बार इन चुनावों में वाम दलों का मण्डी के अतिरिक्त और कहीं कोई उम्मीदवार नही है। ऐसे में वाम दलों के समर्थकों का भी कांग्रेस को लाभ मिलना स्वभाविक है क्योंकि सीपीएम नेता सीता राम येचुरी की रामायण को लेकर की गयी टिप्पणी के बाद भाजपा और वाम दलों का वैचारिक मतभेद और तेज हुआ है। फिर कांग्रेस ने अपना पूरा चुनाव आम आदमी के मुद्दों और बडे़ उद्योगपतियों के बढ़ते भ्रष्टाचार बैंकों के इस कारण से बढ़ते एनपीए पर केन्द्रित कर रखा है। जबकि भाजपा पूरी तरह मुस्लिम और पाकिस्तान के डर पर अपने को केन्द्रित किये हुए है। जबकि यह केवल सत्ता के मुद्दे हैं आम आदमी के नही। इस तरह जब पूरे परिदृश्य पर नजर डाली जाये तो आम आदमी के संद्धर्भ में कांग्रेस का पलड़ा भारी पड़ता नजर आता है माना जा रहा है कि कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व को राष्ट्रीय स्तर से मिले फीडबैक ने उन्हे यहां एक जुट होने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।

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