शिमला/शैल। अन्तिम चरण का मतदान छः बजे तक चला और एग्जिट पोल के आंकड़े साढ़े छः आने शुरू हो गये। एक घन्टे से भी कम समय में मतदातओं से संपर्क भी हो गया। उन्होने यह भी बता दिया कि वह किसके पक्ष में वोट डालकर आये हैं। हिमाचल की चारों सीटों पर अन्तिम चरण में मतदान हुआ है लेकिन एग्जिट पोल हिमाचल का भी संभावित परिणाम आ गया। जो लोग हिमाचल की भौगोलिक स्थिति को जानते हैं वह व्यवहारिक रूप में यह मानेगे कि यदि यह सर्वेक्षण प्रदेश के चार शहरों शिमला, हमीरपुर, मण्डी और धर्मशाला में ही किया गया हो और पांच-पांच सौ लोगों से भी जानकारी ली गयी हो तो भी उस जानकारी को कम्पाईल करके और फिर पूरे प्रदेश पर उसका आकलन किसी परिणाम पर पंहुचने के लिये कम से कम एक दिन का समय लगता तथा इस काम के लिये सौ से अधिक लोगों को लगाया जाता और इसकी जानकारी तुरन्त खुफिया तन्त्र तक पंहुच जाती। लेकिन ऐसी कोई जानकारी प्रदेश भर से कहीं से भी नही आयी है। इसलिये यह व्यवहारिक रूप में ही संभव नही है कि मतदान के बाद एक घन्टे के भीतर यह सब कुछ हो पाता। ऐसा तभी संभव हो सकता है कि किसी ने मतदान से बहुत पहले ही यह सब कर रखा हो और इसकी जानकारी एग्जिट पोल ऐजैन्सीयों तक पहुंचा दी हो।
एग्जिट पोल चुनाव आयोग द्वारा 2013-14 से ही प्रतिबन्धित हो चुके हैं क्योंकि इन सर्वेक्षणों से मतदाता की गोपनीयता भंग होती थी। मतदाता ने किसे वोट दिया है इस जानकारी को गोपनीय रखना उसका अधिकार है। जबकि एग्जिट पोल का अर्थ है कि जैसे ही मतदाता वोट डालकर मतदान केन्द्र से बाहर निकला तभी कुछ ही क्षणों में उससे संपर्क करके यह जानकारी हासिल कर ली जाये। लेकिन किसी भी मतदान के आसपास से इस तरह की जानकारी जुटाये जाने की जानकारी नही आयी है। इसलिये किसी भी गणित में ऐसा एग्जिट पोल हो पाना संभव नही है और जब यह संभव ही नही है तो फिर इसकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगना स्वभाविक है।
इन एग्जिटपोल के नतीजे कितने प्रमाणिक हो सकते हैं इस पर इससे भी प्रश्नचिन्ह लग जाता है कि आठ अलग-अलग एग्जिट पोल समाने आये हैं और इनके अपने ही परिणामों में सौ से अधिक सीटों का अन्तराल हैं एक पोल में भाजपा को 365 सीटें दी गयी है और दूसरे में 242 सीटें दी गयी हैं। हर पोल की अधिकतम और कम से कम सीटों में 30 से 50 तक अन्तर है। हिमाचल की जानकारी रखने वाले जानते हैं कि यहां पर कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों के भीतर उच्च स्तर पर भारी भीतरघात हुआ है। इस भीतरघात के कारण यहां के परिणाम एकदम अप्रत्याशित होंगे। यह तय है कि परिणाम आने के बाद दोनों दलों में इस भीतरघात के आरोप शीर्ष नेतृत्व तक खुलकर लगेंगे। प्रदेश की चारों सीटों पर कड़ा मुकाबला हुआ है। यह चनुाव एक तरह से मोदी को लेकर जनमत संग्रह बन गया था। मतदान ने मोदी के पक्ष या उसके विरोध में वोट दिया है भाजपा ने यह धारणा पूरे देश में फैला दी थी। एग्जिट पोल भी उसी धारणा को पुखता कर रहे हैं। लेकिन चुनावी आंकड़े हिमाचल के संद्धर्भ में इस धारणा को पुख्ता नही करते क्योंकि 2014 के मुकाबले 2017 में विधानसभा चुनावों में मत प्रतिशत बढ़ा लेकिन 2019 के चुनावों में 60 विधानसभा हल्कों में यह प्रतिशत घट गया है। जबकि केवल आठ में यह बढ़ा है जबकि कुल मिलाकर मतदान इस बार 7% बढ़ा है यह ठीक है कि यदि विधानसभा और लोकसभा में यह अन्तर रहता ही है। लेकिन जब 7% मतदान का आंकड़ा बढ़ा है तो यह दिखायी भी देना चाहिये था और इस नाते यह आंकड़ा विधानसभा के आसपास रहना चाहिये था। लेकिन अधिकांश क्षेत्रों में यह 2014 की बराबरी पर पंहुच गया है इससे यही लगता है कि मोदी के पक्ष में जिस लहर का दावा किया जा रहा था वह वास्तव में है ही नही और इससे मोदी की सत्ता में वासपी कठिन लगती है।