Friday, 19 September 2025
Blue Red Green

ShareThis for Joomla!

इस जीत के साथ ही बढ़ी जयराम की चुनौतियां भी

शिमला/शैल। प्रदेश की चारों लोकसभा सीटों पर भाजपा का फिर से कब्जा हो गया है। 2014 में भी चारों सीटें भाजपा के पास ही थी लेकिन इस बार जिस प्रतिशत के साथ यह जीत मिली है उससे देशभर में हिमाचल पहले स्थान पर आ गया है। इस जीत का श्रेय मुख्यमन्त्री ने प्रधानमन्त्री को दिया है। क्योंकि लोगां ने वोट चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों के नाम या भाजपा के नाम पर नही बल्कि मोदी के नाम पर दिया है। यह हकीकत है लेकिन इस जीत में मुख्यमन्त्री का अपना भी एक बड़ा योगदान है क्योंकि पूरे चुनाव की कमान प्रदेश में इन्ही के कन्धों पर थी। उन्होने ही प्रदेशभर मे प्रचार की कमान संभाल रखी थी। जो मत प्रतिशत सभी चारों प्रत्याशीयों को मिला है शायद उतने की उम्मीद किसी ने भी नही की थी। इसलिये जीत जितनी बड़ी हो गयी है मुख्यमन्त्री की चुनौतीयां भी उतनी ही बड़ी हो गयी है।
इस चुनाव के बाद अब छः माह के अन्दर प्रदेश को धर्मशाला और पच्छाद में उपचुनाव का सामना करना पड़ेगा। इन उपचुनावों में भी इसी तर्ज पर जीत दर्ज करना मुख्यमन्त्री के लिये व्यक्तिगत चुनौती होगा। अभी इस वित्तीय वर्ष के पहले ही महीने में सरकार को कर्ज लेने की बाध्यता हो गयी थी और सरकार ने कर्ज लिया भी। लेकिन इन चुनावों के दौरान भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमितशाह ने अपनी चुनावी रैलीयां के संबोधन में विस्तृत आंकड़े रखते हुए यह खुलासा किया है कि मोदी सरकार ने प्रदेश को करीब दो लाख तीस हजार करोड़ दिया है। यह एक बहुत बड़ी रकम है और जब अमितशाह ने यह आंकड़ा दिया है तब इस पर सन्देह करने की कोई गुंजाईश ही नही है। इसलिये प्रदेश की जनता इस पर जवाब चाहेगी कि जयराम के प्रशासन ने इसे कहां खर्च कर दिया जिसके कारण कर्ज लेने की नौबत आ गयी। बल्कि बजट के बाद प्रदेश में सीमेन्ट के दाम बढ़ गये। अब बिजली के रेट दूसरी बार बड़ने की संभावना हो गयी है। प्रदेश के उद्योगां में निवेश बढ़ाने और नया निवेश आमन्त्रित करने के लिये एक निवेशक मीट आयोजित हो चुकी है। इस मीट के बाद कितना निवेश प्रदेश में आ चुका है इसकी कोई जानकरी प्रशासन की ओर से अभी तक सामने नही आयी है जबकि दूसरी मीट के लिये विदेश जाने तक की बात हो रही है। वीरभद्र शासन के दौरान भी इसी प्रशासन ने तीन बार ऐसी निवेश मीट आयोजित की थी करोड़ो रूपया इन पर खर्च किया गया था लेकिन धरातल पर कोई निवेश प्रदेश को मिला नही है। बल्कि प्रदेश द्वारा अपने दम पर चिन्हित की जलविद्युत परियोजनाओं तक में निवेश के लिये कोई आगे नही आया है। जबकि निवेश के रास्ते में आने वाले हर तरह के नियमों का सरलीकरण किया गया है। इस पृष्ठभूमि को सामने रखते हुए प्रशासन की हर योजना को मुख्यमन्त्री को अपने स्तर पर जांचने की आवश्यकता एक और चुनौती बन जायेगी।
इसी के साथ मन्त्रीमण्डल का विस्तार भी एक और राजनीतिक चुनौती होगा? अनिल शर्मा के त्यागपत्र और किश्न कपूर के सांसद बन जाने के बाद मन्त्रीमण्डल में दो स्थान खाली हो गये इन स्थानों पर कौन दो विधायक आयेंगे यह भी एक बड़ा फैसला होगा। हालांकि मुख्यमन्त्री ने यह कह रखा है कि लोस चुनावों में जो ज्यादा बढ़त देगा उसे मन्त्रीमण्डल में स्थान मिलेगा। इस समय हमीरपुर को कोई स्थान मन्त्रीमण्डल में नही मिला है लेकिन स्थान कांगड़ा और मण्डी के खाली हुए हैं। संख्याबल के लिहाज से यह प्रदेश के सबसे बड़े जिले हैं और उस अनुपात से इन्ही जिलों से यह स्थान भरने की मांग आना अनुचित भी नही होगा। इस परिदृश्य में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह खाली स्थान उपचुनावों के बाद भरे जाते हैं या पहले। बल्कि विभिन्न निगमो/बोर्डां मे ताजपोशीयों के लिये भी कार्यकर्ताओं की ओर से मांग आयेगी और अब इस जीत के बाद यह मांग गलत भी नही होगी। इस तरह इस जीत ने जहां जयराम के नाम एक इतिहास बना दिया है वहीं पर उनकी चुनौतियां भी बढ़ गयी हैं।

Add comment


Security code
Refresh

Facebook



  Search