Friday, 19 September 2025
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सचेतक विधेयक को उच्च न्यायालय में दी गयी चुनौती-सरकार और बरागटा को नोटिस जारी

शिमला/शैल। जयराम सरकार के पहले ही बजट के अन्तिम दिन पारित किये गये सचेतक विधेयक को उच्च न्यायालय में चुनौती दे दी गयी है। कार्यकारी मुख्य न्यायधीश धर्मचन्द चौधरी और जस्टिस ज्योत्सना रेवाल की खण्डपीठ ने इसमें सरकार और बरागटा को नोटिस जारी कर दिये हैं। स्मरणीय है कि इस विधेयक के माध्यम से मुख्य सचेतक और उप सचेतक को मन्त्री, व राज्य मंत्री का दर्जा तथा उन्ही के समकक्ष वेतन भत्ते और अन्य सुविधायें देने का प्रावधान किया गया है। यह विधेयक बन जाने के बाद विधायक नरेन्द्र बरागटा को मुख्य सचेतक नियुक्त कर दिया गया था। बल्कि मुख्य सचेतक बन जाने के बाद उन्हें सरकार के कार्यक्रम जन मंच का संयोजक भी बना दिया गया है। बरागटा की इस नियुक्ति को नियमों के विरूद्ध करार देते हुए चुनौती दी गयी है। कांग्रेस और माकपा ने सदन में इस विधयेक का विरोध किया था।

संसद में 1998 में  मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के नेता और उनके द्वारा नियुक्त किये गये सचेतकों को क्या सुविधायें दी जानी चाहिये इस आश्य का बिल आया था। 1999 में यह पारित हुआ और 2000 से लागू हो गया था। लेकिन इस विधेयक में इन्हे मन्त्री का दर्जा नही दिया गया है। भारत में सचेतक की प्रथा ब्रिटिश शासन से ली गयी। इसमें सचेतक को इस तरह परिभाषित किया गया है कि Every major political party appoints a whip who is responsible for the party's discipline  and behaviour on the floor of the house. Usually, he /she directs the party members to stick to the party's stand on certain issues and  directs them to vote as per the directions of the senior party members. इससे स्पष्ट हो जाता है कि सचेतकों का काम अपनी-अपनी पार्टी के विधायक दलों के प्रति ही है। दल बदल निरोधक कानून बन जाने के बाद सचेतक के निर्देर्शों का उल्लंघन करने पर संबधित सदस्य के खिलाफ दल बदल कानून के तहत कारवाई की जा सकती है यदि दल चाहे तो।  दल की ईच्छा के  बिना यह कारवाई नही हो सकती है। इससे और भी स्पष्ट हो जाता है कि सचेतक की सारी भूमिका अपने दल तक ही सीमित हैं इसमें यह भी अनिवार्य नही है कि मान्यता प्राप्त दल को सदन के अन्दर सचेतक नियुक्त करना ही होगा वरना उसके खिलाफ कोई कारवाई हो सकती है। इस तरह सचेतक विधायक दलों का अन्दरूनी मामला है इस परिदृश्य में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि क्या कोई राजनीतिक दल चाहे वह सत्तारूढ़ ही क्यों न हो सरकार के पैसे से अपनी पार्टी का काम करवा सकता हैं।क्योंकि सचेतक विधानसभा या सरकार का अधिकारी नही है। सचेतक  पद का सजृन सरकार या विधासभा नही करती है। क्योंकि किसी पद का सजृन करना और किसी व्यक्ति को कोई मान सम्मान देना दो अलग- अलग स्थितियां है। 

इस परिदृश्य में ही बरागटा की नियुक्ति को चुनौती दी गयी है क्योंकि उन्हें मुख्य सचेतक बनने के बाद ही जन मंच कार्यक्रम का संयोजक बनाया गया और सरकारी कोष से वेतन भत्ते दिये गये हैं। ऐसे में कल को यदि उच्च न्यायालय सचेतक को मन्त्री का दर्जा और वेतन भत्ते देने को निरस्त कर देता है तब बरागटा लाभ के पद के दायरे में भी आ जायेंगें यदि ऐसा होता है तो इसके परिणाम बहुत गंभीर होंगे इससे उनकी सदन की सदस्यता तक पर आंच आ सकती है।

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