Friday, 19 September 2025
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क्या अभिव्यक्ति पर प्रतिबन्ध लगना चाहिये?

शिमला/शैल। यह सवाल प्रदेश न्यायालय के एक आदेश के बाद चर्चा में लाया है। आरटीआई एक्टिविस्टर देवाशीश भट्टाचार्य के खिलाफ प्रदेश लोक सेवा आयोग की सदस्य डा. रचना गुप्ता ने उच्च न्यायालय में एक मानाहनि का मामला दायर किया है जो कि अभी तक लंबित चल रहा है। इस मामले की अगली सुनवाई 26 दिसम्बर को होनी है। पिछली सुनवाई 17 दिसम्बर को थी। इस दिन रचना गुप्ता ने अदालत से आग्रह किया कि भट्टाचार्य पर उनके खिलाफ, उनके पति और परिवार के सदस्यों के खिलाफ सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रानिक मीडिया पर किसी भी तरह की कोई पोस्ट न डाले या लिखें/छापे। अदालत ने उनके इस आग्रह को मानते हुए यह आदेश पारित किया है This court , after going through the record and hearing learned counsel for the parties, finds that at this moment if the posts are not put/published, the respondent will not suffer any irreparable loss, but on the other hand if they are put/ posted /published, the applicant will suffer irreparable loss. At this stage, taking into consideration the irreparable loss and balance of convenience and other material which has come on record it is ordered that till the next date of hearing respondent will not publish/post anything with respect to the applicant or her family members.
डा. रचना गुप्ता ने भट्टाचार्य के खिलाफ मानहानि का मामला दायर किया हुआ है और यह उनका अधिकार है। यदि कोई किसी के लिखने /बोलने से आहत होता है तो उसके खिलाफ सिविल /आपराधिक मानहानि का मामला दायर किया जा सकता है। ऐसे मामले का फैसला अदालत को करना है कि संद्धर्भित लेख/वक्तव्य से मानहानि होती है या नहीं। आरटीआई आज एक बड़ा हथियार बनकर सामने आया है। देश के प्रधान न्यायाधीश का  कार्यालय भी अब आरटीआई के दायरे में ला दिया गया है। इसके माध्यम से कोई भी सरकारी दस्तावेज हासिल किया जा सकता है। आरटीआई के माध्यम से प्राप्त सूचना को किसी भी मंच के माध्यम से जन संज्ञान में लाया जा सकता है। क्या ऐसे किसी भी सरकारी दस्तावेज के जन संज्ञान में आने से संबंधित व्यक्ति की मानहानि हो सकती है? यह सवाल कई दिनों से जन चर्चा में चला हुआ है। इसको लेकर यह सवाल उठ रहा है कि ऐसे सरकारी दस्तावेजों को सोशल मीडिया, प्रिन्ट मीडिया या इलैक्ट्रानिक मीडिया के मंचों के माध्यम से जन संज्ञान में लाने के अतिरक्ति आरटीआई कार्यकर्ता के पास और क्या विकल्प रह जाता है? क्योंकि यह स्थिति तो तभी आती है जब प्रशासन तय नियमों  की अवेहलना करता है। ऐसे में यदि किसी एक्टिविस्ट के खिलाफ प्रतिबन्ध लगा दिया जाता है तो क्या अपरोक्ष में यह जनता को सूचना से वंचित रखना नही हो जायेगा।

 अब जब भट्टाचार्य के खिलाफ प्रतिबन्ध लगा दिया गया है तब इसी दौरान उसके पास आरटीआई दस्तावेजों पर आधारित एक सूचना आयी है। इसमें बद्दी के एक उद्योग को नियमों की अनदेखी करके प्रदूषण से संबंधित एनओसी देने का आरोप है। इसको लेकर प्रदूषण बोर्ड के सदस्य सचिव को शिकायत भेजी गयी है। लेकिन संयोगवश बद्दी क्षेत्र में रचना गुप्ता के पति ही एक बड़े अधिकारी के रूप में नियुक्त हैं। यह शिकायत भट्टाचार्य ने ही भेजी है। क्या इस शिकायत को प्रतिबन्ध का उल्लंघन माना जायेगा? यह सारे सवाल उच्च न्यायालय के प्रतिबन्ध के  परिदृश्य में उभरे हैं अब इस पर निगाहें लगी हैं कि उच्च न्यायालय आगे चलकर क्या रूख अपनाता है।





















































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