शिमला/शैल। जयराम सरकार ने उद्योग लगाने या दुकान चलाने के लिये अब तक 140 लोगों को सरकारी भूमि लीज पर दी है। इसमें बिलासपुर-15, चम्बा-8, हमीरपुर-5, कांगड़ा- 27, मण्डी-1, शिमला-7, सिरमौर-2, सोलन-21 और ऊना में 61 लोगों को यह लीज मिली है। इन 140 लोगों में से 54 लोग हिमाचल से बाहर के हैं। हिमाचल से बाहर के लोगों को यह लीज 95 वर्ष के लिये दी गयी है। जबकि हिमाचल से ताल्लुक रखने वाले नौ लोगों को यह लीज 45 वर्ष के लिये है। शिमला में दो लोगों ने जूट बैग बनाने के लिये जमीन ली है इन्हे 80 वर्ष 11 महीने की लीज है। हमीरपुर में पांच लोगों को जमीन दी गयी है और यह सभी लोग हमीरपुर से ताल्लुक रखते हैं लेकिन इनकी लीज अवधि 45 वर्ष है जबकि मण्डी में केवल एक आदमी को जमीन दी गयी है परन्तु उसकी लीज अवधि 95 वर्ष है। प्राईवेट सैक्टर में लगने वाली हाईड्रो परियोजनाओं को 40 वर्ष के पट्टे पर जमीने दी गयी है।
जिन 140 लोगों को सरकारी भूमि दी गयी है उन सभी ने या तो छोटा बड़ा उ़द्योग लगाने के लिये जमीन ली है या फिर दुकान चलाने के लिये, लेकिन कुछ को 45 वर्ष तो कुछ को 80 वर्ष 11 महीने और 95 वर्ष के लिये लीज़ दी गयी हैं इस तरह से लीज़ अवधि अलग- अलग होने से यह सवाल उठना स्वभाविक है कि क्या सरकार ने अगल-अलग स्थानों के लिये लीज़ नियम अलग- अलग बना रखे हैं? स्वभाविक है कि जिस व्यक्ति को 95 वर्ष की लीज़ दी गयी है यह उसके अपने लाईफ टाईम से तो अधिक का ही समय है। जिसका उपयोग उसके वंशज भी करेंगे। लेकिन जिन लोगों को उद्योग के नाम पर ही 45 वर्ष के लिये ज़मीन दी गयी है क्या उनके वारिसों से 45 वर्ष बाद यह जमीन छीन ली जायेगी? यह सवाल इसलिये उठ रहे हैं क्योंकि लीज़ मनी सबसे एकमुश्त इकट्ठी ले ली गयी है। केवल सिरमौर के पांवटा में एनवायरमैंट लि. द्वारा स्थापित किये जा रहे सीईटीपी से एक रूपया प्रतिमाह टोकन लीज़ फीस ली जा रही है। शेष सभी से चाहे उद्योग या दुकान के लिये सरकारी भूमि ली गयी है सबसे इकट्ठी ही लीज़ मनी वसूल कर ली है।
ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि जब लीज़ मनी एकमुश्त ले ली गयी है तो फिर लीज़ अवधि अलग-अलग क्यों? क्या इससे निवेशकों पर असर नही पड़ेगा? क्या सब सरकार की किसी नीति के तहत किया गया है या संबंधित अधिकारियों ने अपने स्तर पर ही ऐसा कर दिया है क्योंकि सरकारी भूमि पर इस तरह से अलग -अलग नियम होना सामान्य समझ से परे है।