Friday, 19 September 2025
Blue Red Green

ShareThis for Joomla!

आसान नही होगा भाजपा के लिये नये अध्यक्ष का चयन

 

शिमला/शैल। प्रदेश भाजपा के नये अध्यक्ष का चुनाव 18 जनवरी को हो जायेगा यह संकेत  मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर ने दिया है। इसके मुताबिक 17 को नांमाकन भरा जायेगा और 18 को चुनाव हो जायेगा। अध्यक्ष के लिये कितने लोग नांमाकन करते है या फिर चयन के स्थान पर मनोनयन को ही चुनाव मान लिया जाता है यह तो 18 जनवरी को ही पता चलेगा। वैसे अब तक प्रथा रही है उसमें मनोनयन को ही चयन की संज्ञा दी जाती रही है। इसलिये यही माना जा रहा है कि इस बार भी इसी प्रथा का निर्वहन होगा यह तय है। ऐसे में राजनीतिक विश्लेषको के लिये यह एक महत्वपूर्ण सवाल बन गया है कि इस मनोनयन का आधार क्या रहता है।

सामान्तय किसी भी राजनीतिक संगठन में अध्यक्ष एक बहुत बड़ा पद होता है। यह उसी पर निर्भर करता है कि यदि उसी की पार्टी सत्ता में है तो वह किस तरह सरकार और संगठन में तालमेल बनाये रखता है। यह भाजपा और वामदलों की ही संस्कृति है कि इनमें संगठन का सरकार पर पूरा नियन्त्रण रहता है। यह शायद कांग्रेस में ही है कि संगठन सरकार के हाथों की कठपुतली होकर ही रह जाता है क्योंकि उसमें भाजपा और वामदलांे जैसा काडर आज तक नही बन पाया है। भाजपा इस गणित में वामदलों से भी आगे है क्योंकि उसके सारे काडर का संचालन संघ के पास रहता है। इसीलिये संघ को एक परिवार कहा जाता है जिसकी एक दर्जन से अधिक ईकाईयां है और भाजपा संघ परिवार की राजनीतिक ईकाई है। भाजपा की इस संगठनात्मक संरचना के जानकार जानते है कि भाजपा के हर बड़े फैसले के पीछे संघ की स्वीकृति रहती है। इसलिये आज प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव में भी यह तय है कि इसमें संघ की स्वीकृति के बिना कुछ नही होगा। भाजपा सरकारों के महत्वपूर्ण ऐजैण्डे संघ परिवार ही तय करता है यह अब एक सार्वजनिक सत्य है। आज केन्द्र की मोदी सरकार पर जो देश को हिन्दु राष्ट्र बनाने के प्रयास करने के आरोप लग रहे हैं वह सब संघ ऐजैण्डे के ही परिणाम स्वरूप है।
इस परिदृश्य में आज केन्द्र से लेकर राज्यों तक के संगठनात्मक चुनावों में संघ के ही निर्देश सर्वोपरि रहेंगे यह तय है। इस समय पूरा देश नागरिकता संशोधन अधिनियम पर उभरे विरोध की चपेट में आ चुका है। इसी विरोध का परिणाम है कि सरकार को अपना पक्ष रखने के लिये 3.5 करोड़ लोगों के पास पहुंचना पड़ रहा है। पोलिंग बूथों पर जाकर कार्यकर्ताओं और जनता के सामने स्पष्टीकरण देना पड़ रहा है हर मुख्यमन्त्री की जिम्मेदारी लगाया गयी है कि पत्रकारवार्ताओं के माध्यम से इस विषय पर जनता से संपर्क बनाये। नागरिकता संशोधन अधिनियम पर उभरे विरोध के आगे जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाना और तीन तलाक समाप्त करना सब कुछ गौण हो गया है। सरकार को 2024 में सत्ता में वापसी कर पाना अभी से कठिन लगने लग पड़ा है। क्योंकि लोकसभा चुनावों के बाद हुए सारे विधानसभा चुनावों और उपचुनावों में पार्टी को जन समर्थन में भारी कमी आयी है। हिमाचल में भी हुए दोनांे उपचुनावों में लोकसभा के मुकाबले समर्थन में भारी कमी आयी है।
इसलिये आज जब प्रदेश अध्यक्ष का चयन किया जायेगा तो यह तय है कि उसमें इन सारे बिन्दुओं को ध्यान में रखा जायेगा। यह देखा जायेगा कि कौन सा नेता यह क्षमता रखता है कि वह सरकार का उचित मार्ग दर्शन कर पायेगा। संगठनात्मक चुनावों के पूराने शैडूयल के मुताबिक 15 दिसम्बर तक अध्यक्ष बन जाना था। लेकिन तब तक जिलों के चुनाव ही पूरे नही हो पाये इसलिये यह तारीख 31 दिसम्बर तक बढ़ाई गयी। लेकिन फिर यह संभव नही हो पाया और पांच जनवरी तक टाल दिया गया और अब 18 जनवरी को यह चुनाव होना तय हुआ है। यह स्पष्ट है कि अध्यक्ष का चुनाव तीन बार आगे बढ़ाना पड़ा जिसका सीधा अर्थ है कि इस चयन के लिये राष्ट्रीय स्तर पर उभरा रणनीतिक परिदृश्य लगातार प्रभावी होता जा रहा है। जब प्रदेश के उपचुनावों में लोकसभा के अनुपात में अन्तराल को बनाये नही रखा जा सका तो इस नेतृत्व के सहारे अगले चुनावों में सत्ता में वापसी की उम्मीद रख पाना कितना सही होगा इसका अन्दाजा लगाया जा सकता है। इस गणित में संगठन के लिये यह विचार करना आवश्यक हो जाता है कि इस प्रदेश में ऐसे कौन से वरिष्ठ नेता हैं जो प्रदेश और राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर योगदान दे सकें। आज की परिस्थितियों में नेता का बौद्धिक होना भी आवश्यक होगा। क्योंकि जब वैचारिक ऐजैण्डें पर अमल किया जाता है तो उसके लिये तर्क आवश्यक हो जाता है। इस समय प्रदेश में भाजपा के पास इस सतर के दो ही नेता शान्ता कुमार और प्रेम कुमार धूमल रह जाते हैं जिनके पास अपना वैचारिक धरातल मौजूद है। धूमल को विधानसभा चुनावों में भी इसी कारण से नेतृत्व सौंपा गया था। लेकिन प्रदेश में सरकार बनने के बाद भाजपा के भीतरी समीकरणों में बहुत बदलाव आया है आज प्रदेश के युवा नेता जगत प्रकाश नड्डा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने जा रहे हैं क्योंकि वह इस समय कार्यकारी अध्यक्ष हैं। उनके बाद प्रदेश के युवा नेता अनुराग ठाकुर केन्द्र में वित मंत्री हैं। इसलिये प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव के लिये मुख्यमंत्री के साथ ही इन दोनों नेताओं की राय भी महत्वपूर्ण रहेगी यह तय है। लेकिन प्रदेश में अब तक जिस तरह से प्रशासनिक फेरबदल एक सामान्य बात हो गई है उससे यह संदेश गया है कि सरकार की अब तक प्रशासन पर पकड़ नही बन पायी है। प्रदेश की महिला ईकाई की अध्यक्ष इन्दू गोस्वामी ने अपना त्याग पत्र देते हुये जिस तरह का कड़ा पत्र लिखा था उससे सरकार और संगठन के रिश्तों पर उंगलियां उठी हैं। विधान सभा अध्यक्ष राजीव बिन्दल को लेकर भी यह जग जाहीर हो चुका है कि वह मन्त्री बनना चाहते हैं। मन्त्रीयों के खाली चले आ रहे दोनों पद शायद इसी कारण से अब तक भरे नही जा सके हैं। इस तरह प्रदेश अध्यक्ष के चयन में ये सारे समीकरण प्रभावी भूमिका निभायेंगे यह तय हैं।
अब तक प्रदेश अध्यक्ष की सूची में जितने नाम चर्चा में रहे हैं उनमें सबसे अधिक बिलासपुर के त्रिलोक जमवाल और धर्माणी रहे हैं। यह माना जा रहा था कि शायद जे.पी.नड्डा इनमें से किसी एक को लेकर अपनी राय सार्वजनिक करेंगे और उससे नयी राजनीति शुरू हो जायेगी लेकिन ऐसा नही हो पाया है। अब सैजल प्रकरण से प्रदेश का दलित वर्ग रोष में आ गया है। गोस्वामी प्रकरण मे महिलाओ में रोष है। ऐसे में नये अध्यक्ष के लिये इन सारे वर्गों में सन्तुलन बनाये रखना एक बड़ी चुनौती होगी जिसके लिये किसी वरिष्ठ नेता के हाथों में ही अध्यक्ष की कमान देना अनिवार्य हो जायेगा।

 

 

Add comment


Security code
Refresh

Facebook



  Search