Friday, 19 September 2025
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कर्फ्यू पर स्पष्ट फैसला नही ले पाये जयराम

शिमला/शैल। प्रदेश में 24 मार्च से कर्फ्यू चल रहा है। इसके पहले चरण में आवश्यक सेवाओं के अतिरिक्त अन्य सभी प्रकार की आर्थिक गतिविधियां बन्द थी। इसका दूसरा चरण 15 अप्रैल से शुरू हुआ और इसमें भी यह गतिविधियां पहले की तरह बन्द रही। दोनों चरणों में यह लागू रहा कि ‘‘ जो जहां है वह वहीं रहेगा।’’ दूसरे चरण में 20 अप्रैल को पूरी स्थिति का नये सिरे से आकलन करके इसमें कुछ गतिविधियों को शुरू करने अनुमति का प्रावधान कर दिया गया। इसके लिये केन्द्र से लेकर राज्य सरकार तक ने दिशा निर्देश जारी किये हैं। भारत सरकार द्वारा जारी निर्देशों में यह साफ कहा गया है कि राज्य केन्द्र के निर्देशों में कोई बदलाव नही कर सकते। बल्कि इन निर्देशों को अपनी आवश्यकता के अनुसार और कड़ा अवश्य कर सकते हैं। केरल सरकार ने जब अपने स्तर पर कुछ और गतिविधियों को शुरू करने की अनुमति दे दी थी तब केन्द्र सरकार ने इसका कड़ा संज्ञान लिया था और इस पर आपति जताई थी।

केन्द्र सरकार और राज्य सरकार के जो भी दिशा निर्देश इस बारे में अब तक जारी हुए हैं उनमें एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने पर प्रतिबन्ध जारी है। प्रदेश में तो एक ज़िले से दूसरे ज़िले में जाने पर भी प्रतिबन्ध जारी है। इन निर्देशों की अवहेलना को अपराध का दर्जा दिया गया है। इसको लेकर हज़ारों आपराधिक मामले दर्ज हुए हैं। लेकिन इन निर्देशों की अवहेलना के ऐसे भी मामले सामने आये हैं जिन पर कोई सख्त कारवाई नही हुई है। प्रदेश में मण्डी और कांगड़ा के सांसद धर्मशाला और जोगिन्द्र नगर पहुंच गये। इस पर सवाल भी उठे। बल्कि शान्ता कुमार तक ने यह कहा कि नियम-कानून सबके लिये एक बराबर होता है। परन्तु भाजपा ने इन सांसदों का खुलकर बचाव किया। यह तर्क दिया गया कि इनके पास आने का अनुमति पास था। इसी तरह किन्नौर के पुलिस अधीक्षक के बच्चे दिल्ली से किन्नौर पहुंच गये। एस पी साहब के पास बच्चों को लाने की अनुमति थी। पंचकूला में जब्बुल के एक कुलदीप सूद फंस गये थे उन्हे मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर ने जुब्बल पहुंचाने का प्रबन्ध करवाया। हिमाचल के कुछ छात्र राजस्थान के कोटा में फंस गये थे। नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने इस पर सवाल उठाया था। सरकार ने बच्चों को वापिस लाने के लिये अपनी एचआरटीसी की बसें भेजकर प्रबन्ध किया है। शिमला की मस्जिद में कुछ कश्मीरी मजदूर फंसे हुए हैं वह वापिस जाना चाहते हैं। सीपीएम विधायक राकेश सिंघा ने इसके लिये डीसी आफिस के बाहर धरना दिया। इस धरने के बाद इन मजदूरों को भी कश्मीर भेजने का प्रबन्ध कर दिया गया है।
अब जब मजदूरों को प्रदेश के विभिन्न ज़िलों से कश्मीर भेजने का प्रबन्ध कर दिया गया है। तब प्रदेश से बाहर फंसे हुए हज़ारो लोगों ने भी घर वापसी के लिये ऐसे प्रबन्ध किये जाने की गुहार लगा दी है। ऊना के मैहतपुर में हज़ारों की संख्या में ऐसे लोग पहुंच गये हैं। प्रशासन के लिये इसका प्रबन्ध करना समस्या हो गयी है। इससे यह सवाल खड़ा हो गया है कि अब जो बाहर फंसे हुए लोगों को घर वापिस लाने के प्रबन्ध किये जा रहे हैं तब यही प्रबन्ध उस समय क्यों नही किये जा सकते थे जब पूरे देश में लाकडाऊन लागू करने का फैसला लिया गया था। अब सभी राज्यों से यह मांग उठ गयी है कि बाहर फंसे हुए लोगों को अपने -अपने राज्यों में वापिस लाने के प्रबन्ध् किये जायें। कोई भी राज्य यह नही कह पा रहा है कि वह अपने लोगों को वापिस लाने के लिये तैयार नही है। सभी इसको प्राथमिकता देने लग पड़े हैं। रेलवे भी इसके लिये विशेष ट्रेने चलाने के प्रबन्ध कर रहा है। अब प्रधानमन्त्राी राज्यों के मुख्यमन्त्राीयों से इस बारे में वीडियो कान्फ्रैंस के माध्यम से सलाह कर रहे हैं लेकिन जब पहली बार लाकडाऊन किया गया था तब राज्यों से कोई बात नही की गयी थी। अब जो बाहर फंसे हुए लोगों को घर वापसी लाने का काम शुरू हो गया है उस पर केन्द्र सरकार की ओर से कोई एतराज भी नही उठाया गया है। जबकि दिशा-निर्देशों में ऐसा कोई प्रावधान अब भी नही किया गया है। इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि इन दिशा निर्देशों की अनुपालना राज्यों को अपने उसी विवके से करनी थी जिससे अब कर रहे हैं।
अभी प्रधानमन्त्री ने .‘‘मन की बात’’ के माध्यम से देश की जनता से बातचीत की है इसमें प्रधानमन्त्री ने ऐसा कोई संकेत नही दिया है कि लाकडाऊन को आगे बढ़ाया जायेगा या समाप्त कर दिया जायेगा। केवल इतना ही इंगित किया है कि ‘दूरी है जरूरी ’’ इसी के साथ यह भी कहा है कि ऐसा नही सोचना होगा कि अब यह वायरस उसके क्षेत्र में नही आ सकता। प्रधानमन्त्री के इन संकेतो से यह सामने आता है कि अभी लाकडाऊन को समाप्त करना आसान नही होगा। फिर कई विशेषज्ञों ने तो यहां तक कहा है कि यह वायरस मई, जून में और बढ़ सकता है। वैसे भी अभी कई राज्यों में इसके केसों में हर रोज़ बढ़ौत्तरी हो रही है भले ही इस बढ़ौत्तरी की गति पहले जितनी न रही हो। लेकिन यह तो केन्द्र सरकार का अपना आकलन रहा है कि एक संक्रमित व्यक्ति 406 लोगों को संक्रमित कर सकता है। इस आकलन से यही निकलता है कि जब तक एक पखवाड़े में कहीं से भी कोई नया केस नही आने की पुख्ता सूचना नही आ जाती है तब तक लाकडाऊन हटाने का फैसला लेना कठिन होगा।
लेकिन इसी सबके साथ ज्यादा महत्वपूर्ण यह हो जाता है कि आर्थिक गतिविधियों को कब तक बन्द रखा जाये और इसका असर आर्थिक सेहत पर क्या पड़ेगा। इस समय करीब 25% औद्यौगिक उत्पादन को अपना काम शुरू करने की अनुमति दी गयी है। खुदरा बाज़ार में भी आवश्यक वस्तुओं की दुकानों के साथ कुछ सेवाओं को भी बहाल करने का फैसला लिया गया है। लेकिन इस फैसले के साथ पब्लिक परिवहन की कोई सुविधा नही रखी गयी है। जिन सेवाओं को शुरू करवाया गया है उनमें भी यह ध्यान नही रखा गया है कि जब प्लंम्बर या कारपेन्टर को सामान की जरूरत पड़ेगी तो वह सामान कहां से लेगा। क्योंकि हार्डवेयर वाले को तो दुकान खोलने की अनुमति नही दी गयी है। सरकार के निर्माण को तो अनुमति है परन्तु निजि निर्माण को नही। जबकि शायद निजि क्षेत्र में निर्माण कार्य ज्यादा हो रहे हैं। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि यह फैसले व्यवहारिक नही हैं। केवल फाईलों के आंकड़ो के आधार पर अफसरशाही द्वारा लिये गये फैसले हैं। इन फैसलों पर नये सिरे से विचार करने की आवश्यकता है। इसमें यह सुनिश्चित करना होगा कि जिस वस्तु या सेवा को लेकर फैसला लिया जाये उसमें उसके उत्पादन से लेकर उपभोक्ता तक पहुंचने की पूरी प्रक्रिया पर एक साथ फैसला लिया जाये। इसमें या तो पूरे बाज़ार को एक साथ खोलकर उसमें प्रशासन व्यवस्था बनाने तक ही अपने को सीमित रखे। क्योंकि ऐसा नही कहा जा सकता कि अमुक वस्तु या सेवा की आवश्यकता नही है। आवश्यकता का पक्ष उपभोक्ता पर छोड़ दिया जाना चाहिये। प्रशासन को इस महामारी की गंभीरता के प्रति आम आदमी को सजग रखने तक ही अपने को सीमित रखना होगा आज हर आदमी अपनी जान बचाने को प्राथमिकता देता है और जब उसे पता है कि यह बिमारी संक्रमण से फैलती है तब वह स्वयं ही इससे बचने का हर उपाय और परहेज करेगा।
इस समय सारा आर्थिक उत्पादन बन्द पड़ा है और यदि लम्बे समय तक यह कर्फ्यू जारी रहा है तो जो उद्योग इस समय प्रदेश में स्थापित है उनके भी पलायन करने की नौबत आ जायेगी। जिन नये उद्योगों की स्थापना के अनुबन्ध हुए पड़े हैं उन्हे अब व्यवहारिक शक्ल लेने में बहुत समय लगेगा। इस समय की आवश्यकता है कि जो पहले से ही स्थापित है उन्हें पलायन से रोका जाये। विपक्ष पूरी तरह सरकार के साथ सहयोग कर रहा है। प्रदेश में नेता प्रतिपक्ष ने मुख्यमन्त्री को पत्र लिखकर इस बारे में आग्रह भी किया है। फिर अभी मुख्यमन्त्री ने वीडियो कान्फ्रैंस में प्रधानमन्त्री से कहा है कि प्रदेश में एक सप्ताह से कोरोना का कोई नया मामला नही आया है और छः जिले इससे मुक्त हैं। प्रदेश सरकार इस परिदृश्य में आर्थिक गतिविधियां शुरू करने के लिये पूरी तरह तैयार है। लेकिन इसी के साथ जब मुख्यमन्त्री ने पड़ोसी राज्यों पंजाब और हरियाणा के मामले सामने रखते हुए प्रधानमन्त्री से यह आग्रह भी कर दिया कि अभी लाकडाऊन को समाप्त न किया जाये तो इससे स्थिति कमजोर हो जाती है। जबकि इस समय जब कोरोना पर नियन्त्रण बना हुआ है तब औद्यौगिक गतिविधियां शुरू करने में भी प्रदेश सरकार को पहल करने की आवश्यकता है।

मुकेश अग्निहोत्री का पत्र


 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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