Friday, 19 September 2025
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क्या पृथ्वी सिंह की गिरफ्तारी के बाद खरीद कमेटी से भी पूछताछ होगी

शिमला/शैल। विजिलैन्स ने अन्ततः आडियो क्ल्पि के दूसरे पात्र पृथ्वी सिंह को गिरफ्तार कर लिया है। इस गिरफ्तारी से कई और सवाल खड़े हो गये हैं क्योंकि यह गिरफ्तारी डा.ए.के.गुप्ता की गिरफ्तारी के करीब पन्द्रह दिन बाद हुई है। एक पखवाड़े के बाद हुई गिरफ्तारी से सबसे पहले तो यही आता है कि विजिलैन्स की नजर में इस खरीद प्रकरण में निश्चित रूप से रिश्वत जैसा कुछ अवश्य घटा है। इसलिये अब विजिलैन्स के लिये यह जानना आवश्यक हो जायेगा कि इस खरीद में प्रक्रिया संबंधी भी कोई गड़बड़ी तो नही हुई है। क्योंकि जिस वायो-एड से यह 84 लाख की खरीद की गयी है वह पीपीई किट्स बनाने या सप्लाई करने वाली अकेली कंपनी नही है। प्रदेश सरकर ने कोरोना के परिदृश्य में इस संबंध में की जाने वाली हर खरीद के लिये आपूर्ति नियमों में चार अप्रैल से संशोधन कर दिया था। इस संशोधन के तहत विभाग को एचपीएफआर के नियम 103 और 104 में काफी सुविधा दे दी गयी थी। लेकिन इसमें भी सप्लायर तक पहंुचने के लिये एक न्यूनतम आवश्यकता तो यह थी ही की वह दो चार दस सप्लायरों से ईमेल या किसी अन्य डिजिटल माध्यम से संपर्क करता। उनसे सामान की दर और उपलब्धता के बारे में जानकारी लेता। इस जानकारी के बाद वह इनमें से किसी को भी आर्डर देने के लिये स्वतन्त्रत था। विभागीय सूत्रों के मुताबिक शायद प्रक्रिया के इन पक्षों को नजरअन्दाज कर दिया गया था। यह प्रक्रिया इसलिये महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि कुछ ही समय बाद उससे बड़ा आर्डर कुरूक्षेत्र की कंपनी को और वह भी कम दामों में दे दिया जाता है। थोड़े से अन्तराल में ही दूसरी कंपनी का सामने आना यह सवाल तो खड़े करेगा ही कि ऐसा कैसे संभव हो पाया।
प्रक्रिया के प्रश्न में ही यह भी विचारणीय होगा कि जब विभाग में खरीद के लिये एक उच्चस्तरीय कमेटी गठित थी तो क्या इस कमेटी ने निदेशक को ऐसा कुछ अधिकृत कर रखा था कि वह कुछ मामलों में अपने स्तर पर ही फैसला ले सकता था। क्योंकि जब डा. ए.के.गुप्ता की गिफ्तारी हुई थी तब उसके बाद गुप्ता की पत्नी ने ही एक ब्यान के माध्यम से इस कमेटी की ओर ध्यान आकर्षित किया था। इस ब्यान से यह संकेत दिया गया था कि विभाग में जो भी खरीददारीयां हो रही है वह सब इस कमेटी के संज्ञान में हैं। अब जब एक पखवाड़े के बाद यह गिरफ्तारी हो रही है तो निश्चित रूप से पूरी खरीद को लेकर ही कुछ गंभीर सवाल जांच ऐजैन्सी के सामने आये होंगे। क्योंकि यह तो पहले ही जमानत आदेश के माध्यम से सामने आ चुका है कि इसमें पैसे का लेन देन हो नही पाया था और इसलिये कोई रिकवरी किसी से होनी थी। ऐसे में अब क्या खरीद कमेटी के अन्य सदस्यों से भी इस सबंध में कोई जानकारी ली जायेगी या नही यह भी अहम हो जायेगा क्योंकि जिस दूसरी कंपनी से 73.5 लाख की सप्लाई ली गयी है उसके बारे में विभाग में ही यह सन्देह है कि शायद यह कंपनी केवल कागजी कंपनी है।

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