शिमला/शैल। प्रदेश के शिक्षण संस्थान 24 मार्च को लाकडाऊन की घोषणा होने से पहले ही बन्द कर दिये गये थे। तब से अब तक बन्द चल रहे हैं और कब खुलेंगे इस पर शायद शिक्षा मन्त्रा भी निश्चित रूप से कुछ कहने की स्थिति में नही हैं क्योकि कोरोना के मामले हर दिन बढ़ते चले जा रहे हैं। इन मामलों के बढ़ने से छात्रों के अभिभावक भी अभी बच्चों को स्कूल भेजने का जोखिम लेने को तैयार नही हैं। कोरोना के कारण आम आदमी के आय के स्त्रोतों पर विराम लग गया है। बल्कि अभिभावक स्कूलों द्वारा कोरोना काल की फीस आदि न लेने की गुहार लगा रहे हैं। छात्र अभिभावक मंच इसको लेकर शिक्षा निदेशालय पर कई बार धरना प्रदर्शन कर चुका है। सरकार भी इस मांग पर पूरी सहमति जताते हुए इस आशय के आदेश शिक्षण संस्थानों को जारी कर चुकी है। यह दूसरी बात है कि इन संस्थानों ने सरकार के आदेशो/निर्देशों की पूरी पालना नहीं की है। लेकिन इस वस्तुस्थिति से यह स्पष्ट हो जाता है कि आम आदमी की वित्तिय स्थिति इस संकट के काल में पूरी तरह चरमरा गयी है।
स्थिति इस मोड़ पर पहुंच गयी है कि स्कूलों ने अपनी फीस की मांग को जायज ठहराने के लिये आनलाईन पढाई करवाना शुरू कर दिया है। लेकिन इस पढ़ाई के लिये घर में कम्पयूटर या स्मार्ट फोन का होना आवश्यक हो गया है। आज बाज़ार में कोई भी स्मार्ट फोन 6000 रूपये से कम कीमत में नहीं मिल रहा है। जो बच्चे स्मार्ट फोन के बिना है वह आनलाईन पढ़ाई से वंचित रह रहे हैं। ऐसे में बच्चों को यह आनलाईन पढ़ाई करवाने के लिये अभिभावकों को यह स्मार्ट फोन खरीदना अनिवार्य हो गया है। यह फोन खरीदने के लिये कई छात्रों/अभिभावकों द्वारा बैंकों से 25, 25 हजार के कर्ज लेने के लिये सैंकड़ों मामले सामने आ चुके हैं। इसमें सबसे चैंकाने वाला सच्च तो ज्वालामुखी क्षेत्र के गुम्मर निवासी कुुलदीप कुमार को अपने चैथी और दूसरी क्लास में पढ़ने वाले बच्चों को छः हज़ार में अपनी गाय बेचने के रूप में सामने आया है। कुलदीप इतना गरीब है कि उसे 6000 रूपये जुटाने के लिये अपनी गाय बेचनी पड़ी जो इस समय उसका रोज़ी रोटी का एक मात्र सहारा था। गाय इसलिये बेचनी पडी क्योंकि उसे किसी बैंक ने ़ऋण नहीं दिया। बैंकों के इस इन्कार ने सरकार की उन सारी योजनाओं और दावों पर सवाल खड़े कर दिये हैं जो गरीबों की मद्द के लिये किये गये हैं।
इस परिदृश्य में यह सवाल खड़े होते है कि इस समय आनलाईन पढ़ाई के लिये बच्चों को स्मार्ट फोन खरीदना अनिवार्य होगा। लाखों बच्चे प्रदेश के स्कूलों में पढ़ रहे हैं और यह फोन खरीदने से फोन बेचने वालों को निश्चित बाज़ार उपलब्ध हो जायेगा। फोन चलाने के लिये नेटवर्क सेवा आवश्यक होगी और उसे चलाने के लिये नियमित रूप से रिचार्ज करवाना अनिवार्य होगा। यह खर्च स्थायी रूप से परिवार पर पड़ता रहेगा। जो राहत सरकार किसी परिवार को दे रही है उसे इस तरह अपरोक्ष में वापिस लेने का जुगाड़ भी कर लिया गया है। क्योंकि कल जब स्कूल खुल जायेंगे तब आनलाईन पढ़ाई का कोई औचित्य ही नही होगा। यह व्यवस्था तो तभी उपयोगी होगी यदि आने वाले समय में भी इसे ही चलाये रखना हो और कालान्तर में अध्यापकों की संख्या कम करनी हो। क्योंकि यदि आॅनलाईन पढ़ाई का प्रयोग सफल सिद्ध होता है तो निश्चित रूप से उसमें इतने अध्यापकों की आवश्यकता नही होगी। यदि ऐसी कोई मंशा नही है तो छात्रों अभिभावकों पर यह स्मार्ट फोन का हजारों का खर्चा डालना गलत होगा।
फिर आनलाईन पढ़ाई को स्थायी व्यवस्था बनाने की आशंकाओं को सरकार के स्कूलों में डिजिटल क्लास रूम बनाने के फैसले से भी बल मिला है। डिजिटल क्लास रूम पहले चरण में 440 स्कूलों में बनाये जा रहे हंै। इलैक्ट्राॅनिक्स निगम ने इसके लिये निविदायें आमन्त्रित करने का काम भी शुरू कर दिया है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि डिजिटल क्लास रूम में क्या क्या सुविधाएं उपलब्ध करवाई जायेंगी इसके बारे में अध्यापकों को विशेष जानकारी नही है। इसके लिये धन का प्रावधान केन्द्र की ओर से कितना होगा और प्रदेश की हिस्सेदारी कितनी रहेगी इसको लेकर भी शिक्षा विभाग स्पष्ट नही है।