क्या ‘‘आप’’ प्रदेश में अपनी विश्वसनीयता बना पायेगी
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Created on Wednesday, 03 February 2021 07:04
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Written by Shail Samachar
शिमला/शैल। आमआदमी पार्टी की हिमाचल ईकाई के कार्यालय का फिर उद्घाटन हुआ है क्योंकि पहले वाला कार्यालय बन्द हो गया था। हिमाचल में आम आदमी पार्टी ने 2014 से अपनी गतिविधियों शुरू की थी। उस समय इसकी बागडोर कांगड़ा के तत्कालीन भाजपा सांसद राजन सुशांत ने संभाली थी और तब प्रदेश के चारों लोकसभा क्षेत्रों से चुनाव लड़ा था। उसके बाद हुए विधानसभा और फिर 2019 के लोकसभा चुनावों में कोई चुनाव नही लड़ा। यहां तक कि अब हुए स्थानीय निकायों और पंचायती राज संस्थाओं के चुनावों मेें भी अधिकारिक तौर पर भाग नही लिया। इस दौरान चार बार प्रदेश ईकाई का नेतृत्व बदला गया। सुशांत पार्टी से बाहर चले गये। महेन्द्र सोफत को भी जाना पड़ा। अब निक्का सिंह पटियाल को भी बदल दिया गया। जिन लोगों ने लोकसभा का चुनाव लड़ा था और उसके बाद भी पार्टी से जुड़े थे वह लोग अब पार्टी में दिखायी नही दे रहे हैं। पार्टी में बार-बार नेतृत्व क्यों बदला गया और किसी भी चुनाव में भाग क्यों नही लिया गया इसको लेकर प्रदेश की जनता के सामने आज तक कुछ नही आया है।
राजनीतिक दल कोई प्राईवेट संगठन नही होते बल्कि सार्वजनिक संस्था होते हैं। जिसने हर आदमी के लिये काम करना होता है और उससे वोट के रूप में समर्थन लेना होता है। इसी नाते राजनीतिक दलों की गतिविधियों पर हर आदमी की नजर रहती है। इस परिप्रेक्ष में यदि आम आदमी पार्टी का प्रदेश के संद्धर्भ में आकलन किया जाये तो यह सामने आता है कि इसमें शामिल होने वाले अधिकांश लोगो की निष्ठायें ‘‘आप’’ की बजाये भाजपा के प्रति थी और उन्होने इसका प्रयोग केवल कांग्रेस का विरोध करने के लिये ही किया। भाजपा के प्रति खामोश रहे और अधिकांश तो भाजपा में वापिस भी चले गये। हिमाचल की ज़मीनी हकीकत यह है कि यहां पर किसी भी तीसरे दल को अपना स्थान बनाने के लिये भाजपा और कांग्रेस दोनों का एक साथ ईमानदारी से विरोध करना होगा। इस समय भाजपा सत्ता में है इसलिये पहला विरोध उसका होना चाहिये। लेकिन ‘‘आप’’ के जो भी प्रदेश में कार्यकर्ता या नेता होने का दावा करते हैं यदि उनकी सोशल मीडिया पर आने वाली पोस्टों का अध्ययन किया जाये तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि आज वह परोक्ष/ अपरोक्ष में कांग्रेस को ही अपना विरोधी मानते हैं। उनके इसी एक तरफा विरोध के कारण ‘‘आप’’ को भाजपा का ही दूसरा चेहरा कहा जाता है।
आज जब नये सिरे से ईकाई का गठन और प्रदेश कार्यालय की स्थापना हुई है तब इस मौके पर भी ‘‘आप ’’ का नेतृत्व बहुत सारे प्रश्नों पर खामोश रहा है। प्रदेश की भाजपा सरकार के खिलाफ कुछ भी कहने से बचता रहा है। आज स्थानीय निकाय और पंचायती राज संस्थाओं के लिये हुए चुनावों में भाजपा का प्रदर्शन उतना नही रहा है जितने का दावा किया जा रहा है। निर्दलीयों को सत्ता के सहारे प्रभावित करके इन संस्थाओं पर कब्जा किया जा रहा है। इस परिदृश्य में आप का यह दावा करना कि उसके चालीस पार्षद जीत कर आये हैं और फिर उनकी सूची जारी न कर पाना तथा बाद में यह कहना कि यह चालीस लोग उनके संपर्क में हैं यह प्रमाणित करता है कि प्रदेश के कार्यकर्ताओं द्वारा अभी भी केन्द्रिय नेतृत्व के सामने सही स्थिति नही रखी जा रही है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार अच्छा काम कर रही है इसमें कोई दो राय नही है। लेकिन सरकार होने के बावजूद वहां की नगर निगमों पर भाजपा का कब्जा है। दिल्ली एक ऐसा राज्य है जहां पर सरकार से ज्यादा काम नगर निगमों पर है। फिर जितना कर राजस्व दिल्ली की सरकार को मिलता है उतना बहुत सारे राज्यों के पास नही है। इसी राजस्व के सहारे दिल्ली सरकार बहुत सारी सेवाएं अपने लोगों को मुफ्त में दे रही है। अन्य प्रदेशों में ऐसा कर पाना संभव नही है। शायद इसी कारण से दिल्ली से बाहर अन्य राज्यों में आप की प्रभावी इकाईयां नही बन पायी हैं। इसीलिये हिमाचल में दिल्ली जैसी सुविधाओं का दावा करके एक प्रभावी ईकाई का गठन कर पाना संभव नही होगा। हिमाचल में अपना स्थान बनाने के लिये आप जब तक यह स्पष्ट नही हो जाती है कि उसका पहला विरोध सत्तारूढ़ दल से है तब तक प्रदेश में उसकी विश्वसनीयता बनना संभव नही है।
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