Friday, 19 September 2025
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क्या वीरभद्र की राजनीतिक विरासत को भुना पायेगी कांग्रेस-राठौर और मुकेश के लिये चुनौति

क्या अनिल शर्मा भाजपा और विधायकी से त्यागपत्र देंगे
शिमला/शैल। वीरभद्र प्रदेश भर में कितने लोकप्रिय थे इसका अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उनकी अन्तिम यात्रा में शिमला से रामपुर तक कैसे हजा़रों लोग सड़कों के किनारे खड़े होकर उसमें अपने को शामिल कर रहे थे और शमशान घाट पर भी हज़ारों की उपस्थिति इसका प्रमाण है। यही नहीं प्रदेश के हर कोने में बाज़ार बन्द करके और उनके चित्र पर फूल मालायें चढ़ा कर हज़ारों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है। किसी नेता के प्रति जनता की इतनी श्रद्बा और आस्था निश्चित रूप से उस पार्टी के लिये एक बहुत बड़ी विरासत बन जाती है। आज वीरभद्र सिंह अपने जाने के बाद पार्टी के लिये कितना बड़ा आधार छोड़ गये हैं इस अपार भीड़ से उसका प्रमाण मिल जाता है। अब यह पीछे बचे नेताओं की जिम्मेदारी होगी कि वह इस जनाधार को कैसे आगे बढ़ाते हैं और अपने साथ रखते हैं।
आज प्रदेश में चार उपचुनाव होने जा रहे हैं और यह उपचुनाव अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों के लिये एक बड़े संकेत की भूमिका अदा करेंगे यह तय है। इस समयबंगाल चुनावों के बाद प्रधानमन्त्री और भाजपा दोनों का ग्राफ लगातार गिर रहा है। यह इन परिणामों के बाद घटी सारी राजनीतिक घटनाओं से प्रमाणित हो जाता है। इसी गिरावट का परिणाम है कि अब संघ प्रमुख डा. मोहन भागवत को यह कहना पड़ा है कि इस देश में रहने वाले सारे हिन्दुओं और मुस्लमानों का डीएनए एक है तथा लिंचिंग करने वाले हिन्दू नही हो सकते। तय है कि इस गिरावट का असर हर प्रदेश पर पड़ेगा और उसमें हिमाचल भी अछूता नहीं रहेगा। वीरभद्र सिंह अपने पीछे किसी एक नेता को पार्टी का नेता नहीं घोषित कर गये हैं। ऐसे में हर नेता अपनी अपनी परफारमैन्स के आधार पर आने वाले समय में अपना स्थान प्राप्त कर लेगा।
इस समय दो विधानसभा क्षेत्रों जुब्बल-कोटखाई और फतेहपुर में उम्मीदवारों के चयन में कोई बड़ी बाधा नहीं आयेगी। क्योंकि जुब्बल -कोटखाई में रोहित ठाकुर की उम्मीदवारी को कोई चुनौती नहीं हो सकती। 2017 के चुनावों में भी यदि प्रेम कुमार धूमल को नेता घोषित न किया जाता और यह संदेश न जाता कि नरेन्द्र बरागटा मन्त्री बनेंगे तो शायद उस समय भी परिणाम कुछ और होते। फतेहपुर में पठानिया के बेटे के बाद दूसरे दावेदार इतने बड़े आधार वाले नहीं हैं। बल्कि वहां पर भाजपा और कांग्रेस दोनों में बराबर की कलह है और उसे प्रायोजित भी कहा जा रहा है। क्योंकि धर्मशाला बैठक के बाद जिस तरह से बड़े नेताओं ने बाली और सुधीर खेमों का संकेत दिया है उससे फतेहपुर का झगड़ा स्वतः ही स्पष्ट हो जाता है। इन विधानसभा क्षेत्रों के बाद बड़ा सवाल मण्डी लोकसभा क्षेत्र का रह जाता है। यहां वीरभद्र परिवार, पंडित सुखराम परिवार और ठाकुर कौल सिंह का ही प्रभाव है। इस समय वीरभद्र सिंह के निधन के बाद अर्की विधानसभा भी खाली हो गयी है। यहां से यदि प्रतिभा सिंह चुनाव लड़ने का फैसला लेती है तो विश्लेषकों की राय में यह उनके लिये लाभदायक होगा। क्योंकि अगले वर्ष ही विधानसभा के चुनाव होने हैं और कांग्रेस की सरकार होने पर उनका मन्त्री बनना निश्चित हो जाता है जबकि लोकसभा मे जाकर इसकी संभावना नहीं रहती है। वीरभद्र के निधन से उपजी सहानुभूति को दोंनो जगह बराबर लाभ मिलेगा और इससे दोनों जगह जीत की संभावना बन जायेगी।
मण्डी में पिछली बार पंडित सुखराम के पौत्र आश्रय शर्मा को कांगेस ने उम्मीदवार बनाया था। लेकिन उस समय आश्रय के पिता अनिल शर्मा जयराम सरकार में ऊर्जा मन्त्री थे। तब वह न बेटे के लिये खुलकर काम कर पाये और न ही भाजपा के लिये। अनिल शर्मा आज भी भाजपा के विधायक हैं और यदि इस बार भी आश्रय कांग्रेस के उम्मीदवार होते हैं तो फिर वही दुविधा रहेगी। मण्डी नगर निगम के चुनावों मे भी यही दुविधा थी। ऐसे में यदि आश्रय को कांग्रेस फिर से उम्मीदवार बनाती है तो यह आवश्यक हो जायेगा कि अनिल शर्मा भाजपा और विधायकी दोनों से इन उपचुनावों से पहले त्यागपत्र दें या फिर आश्रय को उम्मीदवार न बनाया जाये। इनके बाद ठाकुर कौल सिंह का नाम आता है। यदि इस बार कौल सिंह ईमानदारी से यह चुनाव लड़ लेते हैं तो आने वाले समय में वह बड़े पद के भी दावेदार हो जाते हैं इस बार मण्डी उपचुनाव के लिये भाजपा को भी उम्मीदवार तय करना आसान नहीं होगा। क्योंकि इन दिनों जिस तरह से स्व. रामस्वरूप शर्मा के बेटे ने रामस्वरूप की हत्या होने की आशंका जताई है और पुलिस जांच पर सवाल उठाये हैं तथा केन्द्रिय मन्त्री नितिन गड़करी से मुलाकात की है उससे तय है कि इस उपचुनाव में यह मुद्दा उछलेगा और सरकार को जवाब देना कठिन हो जायेगा। फिर जल शक्ति मन्त्री महेन्द्र सिंह पहले ही अपने ब्यानों से विवादित हो चुके हैं। ऐसे में यदि इन उपचुनावों को कांग्रेस ‘‘वीरभद्र के हकदार’’ के सवाल पीछे रखकर चुनाव लड़ती है तो वर्तमान परिस्थितियों में उसकी जीत सुनिश्चित मानी जा रही है। इस परिदृश्य में यह उपचुनाव कांग्रेस के प्रभारीयों और प्रदेश के बड़े नेताओं के लिये एक कसौटी होंगे।

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