Friday, 19 September 2025
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भाजपा के लिये आसान नही होगा उपचुनावों के लिये उम्मीदवारों का चयन करना गोविन्द के तेवरों से उठी चर्चा

शिमला/शैल। प्रदेश में चार उपचुनाव होने जा रहे हैं जिनमें तीन विधानसभा के लिये और एक लोकसभा के लिये। विधानसभा के तीन रिक्त स्थानों में 2017 में दो कांग्रेस के पास और एक भाजपा के पास रहा है। लोकसभा की चारों सीटें 2014 में भी और 2019 में भी भाजपा के पास ही रही है। बल्कि जीत का अन्तर 2019 में 2014 के मुकाबले कही ज्यादा रहा है। 2014 के बाद हुए सभी चुनाव कांग्रेस हार गयी है। केवल इस बार चार नगर निगमों के लिये हुए चुनावों में कांग्रेस सोलन और पालमपुर की नगर निगम में जीत कर इस पर ब्रेक लगाने में सफल हुई है। इस वस्तुस्थिति में आज दोनों पार्टीयां कांग्रेस और भाजपा की साख दांव पर लगी हुई है। भाजपा और जयराम सरकार के लिये यह आवश्यक होगा कि वह चारों सीटों पर जीत दर्ज करे। यदि जयराम के नेतृत्व में भाजपा ऐसा कर पाती है तभी जयराम का कब्जा नेतृत्व पर बना रहेगा। अन्यथा उस पर सवाल लगने शुरू हो जायेंगे। इन उपचुनावों में शायद प्रधानमन्त्री और गृह मन्त्री अमितशाह चुनाव प्रचार के लिये न आ पायें। इसलिये यह उपचुनाव पूरी तरह प्रदेश नेतृत्व की ही परीक्षा माने जायेंगे।
इन चुनावों में टिकटों का बंटवारा भी एक बड़ा सवाल होगा। क्योंकि चारों स्थानों के लिये कई कई प्रत्याक्षी दावेदारी जताने पर आ गये हैं। विधानसभा के लिये फतेहपुर जुब्बल कोटखाई और अर्की तीनों ही स्थानों पर पार्टी में बगावत के स्वर सामने आने लग पड़े है। फतेहपुर में राजन सुशांत लम्बे अरसे से ओल्ड पैन्शन स्कीम के मुद्दे पर कर्मचारीयों का समर्थन जुटाने के लिये धरने पर हैं। राजन सुशांत को मनाने के लिये पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतपाल सत्ती का उनसे मिलना चर्चा में आ चुका है और इसी से वहां पर पार्टी के कार्यकर्ताओं में और रोष पनप गया है। अर्की में 2017 में वहां से दो बार विधायक रह चुके गोविन्द राम शर्मा का टिकट काट कर रतन पाल को उम्मीदवार बनाया गया था। वह वीरभद्र सिंह से चुनाव हार गये थे। लेकिन हारने के बाद भी उनकी सरकार और संगठन में ताजपोशी कर दी गयी। जबकि गोविन्द राम शर्मा के साथ उस समय किये गये वायदे आज तक वफा नही हुये हैं। इस बेवफाई पर गोविन्द और उनके समर्थकों का नाराज होना स्वभाविक है। अब जब अर्की में उपचुनाव आ खड़ा हुआ है तब गोविन्द और उनके समर्थकों को अपनी नाराज़गी जाहिर करने का मौका मिल गया। दाड़लाघाट में अपने समर्थकों के साथ एक बैठक करके गोविन्द ने इस नाराज़गी को उजागर भी कर दिया है। इस नाराजगी के बाहर आते ही प्रभारी को अर्की पहुंचना पड़ा है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि इस बार गोविन्द राम शर्मा से किये गये वायदे कितने सिरे चढ़ते हैं।
जुब्बल कोटखाई में जो रार एक समय स्व.बरागटा और शहरी विकास मन्त्री सुरेश भारद्वाज के बीच रही है वह शायद अब भी पूरी तरह खत्म नही हुई है। सुरेश भारद्वाज को जब इस उप चुनाव की जिम्मेदारी सौंपी गई थी तब यह पुराने प्रंसग एक बार फिर सामने आ चुके हैं। इसी स्थिति को जानकर आज मुख्यमन्त्री को यहां पर चुनावों से पहले दो एसडीएम कार्यालय खोलने की घोषणा करनी पड़ी है। चुनावों के लिये किये गये वायदे कितने पूरे होते हैं यह सभी जानते हैं। इसी तरह मण्डी लोकसभा के लिये तो स्थिति और भी रोचक होगी। इस चुनाव की जिम्मेदारी संभाले जल शक्ति मन्त्री महेन्द्र सिंह के ब्यानों से पैदा हुए विवादों को राजनीतिक विश्लेषक एक सोची समझी चाल मान रहे हैं। फिर यहां पर स्व. रामस्वरूप शर्मा की आत्महत्या का मामला अभी तक सुलझा नहीं है। दिल्ली पुलिस की अब तक की जांच के बाद राम स्वरूप शर्मा के बेटे ने भी इसे आत्महत्या का मामला मानने की बजाये इस हत्या का मामला मानकर जांच करने की मांग कर दी है। वह इस संद्धर्भ में केन्द्रिय मन्त्री नितिन गडकरी से भी इस आश्य की गुहार लगा चुका हैं। रामस्वरूप के बेटे के इस ब्यान का कोई खण्डन नही कर पाया है। यह सवाल इस चुनाव में अहम मुद्दा बन सकता है। इस परिदृश्य में मण्डी लोकसभा के लिये उम्मीदवार का चयन करना आसान नही होगा।

 

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