क्या यह उपचुनाव कृषि कानूनों और मंहगाई के गिर्द केन्द्रित हो पायेंगे
- Details
-
Created on Wednesday, 20 October 2021 06:33
-
Written by Shail Samachar
सेब बागवानों के बाद गेहूं और धान उत्पादक भी आये कृषि कानूनों की चपेट में
पावंटा साहिब से लेकर फतेहपुर तक खरीद केंद्रों की व्यवस्था न होने से रोष में किसान
फतेहपुर में भाजपा प्रत्याशी को नहीं आने दिया गांव में
किसानो की आय दो गुनी करने का दावा करने वाली सरकार 2020 की सब्सिडी का भुगतान नहीं कर पायी
विदेशी नस्ल की सस्ती बकरियां देने की योजना पर भी ग्रहण लगने के आसार
शिमला/शैल। प्रदेश में हो रहे उपचुनावों का असर आने वाली राजनीति पर पडे़गा और इससे हर दल प्रभावित होगा यह तय है। ऐसा इसलिए होगा कि यह चुनाव ऐसे समय पर हो रहे हैं जब मंहगाई और बेरोजगारी अपने चरम पर है। ऐसा क्यों है इसके कारणों को लेकर शायद ज्यादा नेता भी स्पष्ट नहीं है लेकिन चुनाव घोषित होने के बाद और उनके बीच भी मंहगाई पर सरकार रोक ना लगा सके तो स्पष्ट हो जाता है कि आने वाले दिनों में यह और भी बढेगी। स्वभाविक है कि जब सरकार को बैड बैंक बनाने की विवश्ता हो गई है तो संकेत और संदेश साफ है कि बैकिंग व्यवस्था कभी भी दम तोड़ सकती है। लोगों के जमा पर लगातार ब्याज कम हो रहा है। जीरो बैलेंस के नाम पर खुले खातों में न्यूनतम बैलेंस डाकघर में 500 और बैंक में 1000 की शर्त बहुत अरसे से लागू हो चुकी है। इस न्यूनतम बैलेंस का खाताधारक को कोई लाभ भी नहीं मिलेगा। बैंकों का एनपीए इतना अधिक हो चुका है कि यदि सारे जमाकर्ता अपना पैसा एक मुश्त वापिस मांग ले तो शायद बैंक ना दे पाये। यह एक ऐसी स्थिति है जिसका हर आदमी पर प्रभाव पडेगा चाहे वह इस बारे में सचेत हो या ना हो। आर्थिकी के इस प्रत्यक्ष पक्ष से भले ही आम आदमी ज्यादा जानकार ना हो पंरतु इसके प्रभाव का सीधा भुक्तभोगी होने के कारण उस पर इसका ज्यादा फर्क नहीं पडेगा कि इसे चुनावी मुद्दा बनाया जा रहा है या नहीं।
इस समय कृषि कानूनों की प्रतिक्रिया से उभरे किसान आंदोलन से हर आदमी प्रभावित है क्योंकि आज भी 80 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर साधे आधारित है और शेष अप्रत्यक्षतः प्रभावित है। हिमाचल में कृषि कानूनों का पहला दंश उस समय सामने आ गया जब अदाणी के ऐग्रो फ्रैश के एक फैसले से पांच हजार करोड़ का सेब का कारोबार एक दम दहल गया। अदाणी के एक फैसले से सेब उत्पादक से लेकर इसके कारोबारी तक सबने विरोध के स्वर उंचे कर दिये। मुख्यमंत्री और बागवानी मंत्री तक को अन्य व्यवहारिक ब्यान देने पडे़। सेब के बाद धान और गेहूं के उत्पादक किसान पावंटा साहिब से लेकर फतेहपुर तक अब उपचुनाव के दौरान इन कानूनों के दंश का शिकार हुए है क्योंकि खरीद केंद्रों की व्यवस्था जयराम सरकार नहीं कर पायी। खरीद केंद्र न होने को लेकर तो फतेहपुर के किसानों ने वहां के भाजपा प्रत्याशी बलदेव ठाकुर का घेराव करके उन्हें चुनाव प्रचार के लिए गांव में नहीं आने दिया। वहीं से बलदेव ठाकुर को कृषि मंत्री विरेंद्र कंवर और नागरिक आपूर्ति मंत्री राजेंद्र गर्ग से फोन पर बात करनी पड़ी। लेकिन इसका कोई लाभदायक परिणाम नहीं निकल पाया। खरीद केंद्र की कोई स्थायी व्यवस्था नहीं हो पाई आज भी पांवटा साहिब से लेकर फतेहपुर तक यह समस्या यथास्थिति बनी हुई है। इसलिए जो किसान इन कानूनों का दंश व्यावहारिक रूप से भोग रहा है वह सरकार को समर्थन देने का कैसे फैसला ले पायेगा। जो सरकार 2022 में किसानों की आय दोगुनी करने का दावा करती आयी है वह जब कृषि मंत्रा के अपने चुनाव क्षेत्रा में ही बागवानों को 2020 की सब्सिडी का आज तक भुगतान न कर पायी हो उसके दावों पर कोई कैसे और क्यों विश्वास कर पायेगा। यही नहीं जिन किसानों को उतम विदेशी नस्ल की भेड़ बकरियां सस्ते दामों पर देने का दावा किया गया था और इसके लिए उनका हिस्सा भी ले लिया गया था। उसके मुताबिक यह बकरियां सरकार नहीं दे पायी है। इस योजना के तहत कृषि मंत्री विदेश यात्रा भी कर आये थे। पंरतु आज शायद यह योजना बदलनी पड़ रही है।
इस परिदृश्य में हो रहे इन उपचुनावों में जनता सरकार की किस उपलब्धि के लिये उसे अपना समर्थन देगी यह बड़ा सवाल बना हुआ है। आज भाजपा के हर प्रत्याशी के लिये कृषि कानूनों पर अपना पक्ष स्पष्ट करने की बाध्यता आ खड़ी हुई है। क्योंकि हिमाचल में तो 90 प्रतिशत जनता कृषि और बागवानी पर आश्रित है। यह उपचुनाव अप्रत्यक्ष रूप में कृषि कानूनों पर एक प्रकार से फतबे का काम करेंगे। इसलिये किसान आंदोलन के नेता भी इन पर जनता को जागरूक करने के लिये चुनाव प्रचार में अपनी बात रखने के लिये आ रहे हैं। किसान नेताओं के आने से इस चुनाव के कृषि कानूनों पर केन्द्रित होने की पूरी-पूरी संभावनायें बन गई है।
Add comment