Friday, 19 September 2025
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2018 में प्रदूषण बोर्ड के अध्यक्ष पद के लिए आये आवेदनों पर अब तक फैसला क्यों नही

सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के बावजूद अभी तक सार्वजनिक नहीं हुए नये नियम
शिमला/शैल। इन दिनों प्रदूषण को लेकर दिल्ली में जो स्थिति बनी हुई है उसने पूरे देश का ही नहीं वरन पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया हुआ है। सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार से केंद्र सरकार तक को इसमें कड़ी फटकार लगायी है। सर्वोच्च न्यायालय की प्रताड़ना से यह सवाल उठ रहा है कि इसका केंद्र और राज्य सरकारों पर असर कितना हो रहा है। नवम्बर 2017 में एनजीटी ने एक फैसले में शिमला और अन्य प्लानिंग क्षेत्रों में भवन निर्माण को लेकर निर्देश दिये थे कि यहां पर अढाई मंजिल से ज्यादा के निर्माण ना हो। यह भी निर्देश दिए थे कि 1978 से चली आ रही अन्तरिम योजना के स्थान पर नई और स्थायी योजना लाई जाये। लेकिन एनजीटी के इन निर्देशों का कितनी इमानदारी से पालन हुआ है इसका अन्दाजा इस दौरान बने दर्जनों बहुमंजिला भवनों से लगाया जा सकता है। पिछले दिनों कच्ची घाटी में एक आठ मंजिला भवन के गिरने के बाद कुछ दिन सक्रियता नजर आयी जो अब गायब है। बल्कि अब तो नयी योजना लायी गयी है वह एकदम एनजीटी के आदेशों को अंगूठा दिखाने जैसी है क्योंकि इसमें कोर एरिया में भी चार मंजिला निर्माणों की स्वीकृति देने की बात की गयी है। सरकार का टी सी पी विभाग यह योजना ला रहा है। इस पर जनता और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की प्रतिक्रिया क्या होगी यह आने वाले दिनों में पता लगेगा। लेकिन इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि सरकार अदालत के फैसलों को कितनी अहमियत देती है।
स्मरणीय है कि 2017 में ही सर्वोच्च न्यायालय में एक और याचिका भी दायर हुई थी। इस याचिका में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में अध्यक्ष और सदस्य सचिवों की नियुक्तियों को लेकर कोई निश्चित नियम और योग्यता आदि ना होने का मुद्दा उठाया गया था। यह कहा गया था कि राजनीतिक नेताओं को अध्यक्ष पदों पर नियुक्तियां दी जा रही है और सदस्य सचिवों के पदों पर सरकार ऐसे अधिकारियों को नियुक्त कर रही है जो सरकार के इशारों पर नाचते हैं। इस याचिका में आग्रह किया गया था कि इन पदों पर नियुक्तियों के लिए आवश्यक योग्यता और नियम तय किये जायें। इस पर याचिका में हिमाचल का भी नाम था क्योंकि यहां एक पूर्व विधायक को अध्यक्ष लगाया गया था। इस याचिका पर फैसला देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्देश दिये थे कि छः माह के भीतर यह नियम बनाये जायें और इनके भरने के लिए विज्ञापन जारी करके आवेदन आमंत्रित किए जायें। यह थे निर्देश Keeping the above in mind, we are of the view that it would be appropriate, while setting aside the judgment and order of the NGT, to direct the Executive in all the States to frame appropriate guidelines or recruitment rules within six months, considering the institutional requirements of the SPCBs and the law laid down by statute, by this Court and as per the reports of various committees and authorities and ensure that suitable professionals and experts are appointed to the SPCBs. Any damage to the environment could be permanent and irreversible or at least long-lasting. Unless corrective measures are taken at the earliest, the State Governments should not be surprised if petitions are filed against the State for the issuance of a writ of quo warranto in respect of the appointment of the Chairperson and members of the SPCBs. We make it clear that it is left open to public spirited individuals to move the appropriate High Court for the issuance of a writ of quo warranto if any person who does not meet the statutory or constitutional requirements is appointed as a Chairperson or a member of any SPCB or is presently continuing as such.
यह फैसला और निर्देश 2017 के अन्त तक जारी हुए थे। इन पर अमल 2018 में शुरू होना था। जयराम सरकार ने इन निर्देशों पर अमल करते हुए अध्यक्ष पद भरने के लिए विज्ञापन जारी करके आवेदन आमंत्रित किये थे। इस पर कई आवेदन आये हैं। लेकिन चार वर्षों में सरकार इनमें से कोई चयन नहीं कर पायी है। याचिका में यह आग्रह किया गया था कि इन पदों पर नियुक्तियां पांच-पांच वर्ष के लिये की जायें। लेकिन सरकार ने न तो यह नियम ही अब तक सार्वजनिक किये हैं और न ही आये हुये आवेदनों पर चार वर्ष में कोई फैसला लिया है। अब यह मामला फिर उच्च न्यायालय में पहुंच चुका है और माना जा रहा है कि शीर्ष अदालत प्रदेशों के मुख्य सचिवों को अदालत में कोई कड़े आदेश सुनायेगी। चर्चा है कि जयराम सरकार अभी पदोन्नत हुए मुख्य अभियंता प्रवीण गुप्ता को सदस्य सचिव के पद पर तैनात करना चाहती है और उसी के लिए सारी देरी की जा रही है।

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