Friday, 19 September 2025
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अवैध खनन के 250 करोड़ के बिलों का भुगतान जयराम सरकार के लिए बना चुनौती

सबसे अधिक अवैध खनन शिमला मण्डी और कांगड़ा में
अवैधता के खिलाफ अपराधिक मामले बनाये जायें उच्च न्यायालय के निर्देश

शिमला/शैल। विधानसभा के पिछले सत्र में कांग्रेस विधायक आशा कुमारी का प्रश्न था कि लोक निर्माण विभाग में उच्च न्यायालय के आदेश के कारण कई ठेकेदारों के करोड़ों रुपए के बिल भुगतान के लिये रुके हुए हैं। इसका पूरा विवरण और इनके भुगतान के लिये उठाये गये कदमों की जानकारी मांगी गयी थी। सरकार ने इसका जवाब देते हुए स्वीकार किया कि 197.98 करोड़ के बिल भुगतान के लिए रुके हुये हैं। इसमें शिमला जोन- 7252.49 लाख, मण्डी 6493.37 लाख, कांगड़ा 5094 .4 लाख, हमीरपुर 776.58 लाख और नेशनल हाईवे 181.98 लाख का विवरण भी दिया गया है। यह जवाब धर्मशाला सत्र में दिया गया था। और अब यह रकम बढ़कर शायद ढाई सौ करोड़ हो गयी है। ठेकेदारों के ये बिल रेता, रोड़ी, बजरी और पत्थरों की आपूर्ति करने के हैं।
प्रदेश में अवैध खनन के आरोप एक लंबे अरसे से लगते आ रहे हैं। यहां तक कि प्रदेश में खनन एक माफिया की शक्ल ले चुका है। प्रदेश उच्च न्यायालय इस बारे में कड़ा संज्ञान ले चुका है। और यह निर्देश 2010 में ही दे चुका है कि इस आपूर्ति के वैद्य स्त्रोत सुनिश्चित किये जायें। जबकि सरकार इन खनिजों के एकत्रीकरण के लाइसेंस देकर और अपनी रॉयल्टी लेकर ही अपनी जिम्मेदारी पूरी मान लेती थी। उच्च न्यायालय के 2010 के निर्देशों के बाद 2015 में इस संदर्भ में नियम बनाये गये। रोड़ी, बजरी और पत्थर ऐसे खनिज है जो सड़क, भवन, बिजली परियोजनायों आदि हर निर्माण में प्रयुक्त होते हैं। इसकी आपूर्ति या तो प्रदेश के बाहर से होती है या भीतर से ही स्थानीय स्तर पर। आपूर्ति का जो भी साधन रहे उसके लिये 2015 में बनाये नियमों की अनुपालन अनिवार्य है। नियम 33 और नियम 15 में पूरा ब्योरा दर्ज हो जाता है। लेकिन इन नियमों की अनुपालना में भी गड़बड़ी होने लगी। नूरपुर के एक दलजीत पठानिया इस मामले को उच्च न्यायालय में ले गये और उच्च न्यायालय ने इस पर रोक लगा दी। 16-7-20 को लगी इस रोक के खिलाफ विभाग पांच जनवरी 2021 को उच्च न्यायालय पहुंच गया और इसे हटाने का आग्रह कर दिया। उच्च न्यायालय ने इस आग्रह को मानते हुये इस शर्त पर यह रोक हटा दी कि जिन बिलों के साथ फॉर्म w और x पर वांछित जानकारियां दी गयी हैं उनके भुगतान कर दिया जायें।
उच्च न्यायालय ने इस सामग्री की हर आपूर्ति की वैधता का पता लगाने के लिए लोक निर्माण विभाग और उद्योग को एक जांच टीम बनाने के निर्देश दिये हैं। विभाग इसके लिए दो टीमें गठित कर रहा है। जांच में क्या सामने आता है यह जांच रिपोर्ट आने के बाद ही पता चलेगा। जो भी आपूर्ति की जाती है उसकी ट्रांजिट के फॉर्म w और फॉर्म x बिल के साथ लगे होना आवश्यक है। इन फॉर्मों के बिना हर आपूर्ति अवैध स्त्रोत और अवैध खनन के दायरे में आ जायेगी। 2010 से उच्च न्यायालय इसकी अनुपालना के निर्देश दे चुका है। अनुपालना न होने पर 16 जुलाई 2020 को उच्च न्यायालय कि जस्टिस त्रिलोक चौहान और जस्टिस ज्योत्सना रेवाल दुआ की पीठ भुगतान पर रोक लगा चुकी है। लोक निर्माण विभाग इस रोक के खिलाफ उच्च न्यायालय पहुंच गया। उच्च न्यायालयों ने फार्मों की शर्त के साथ ही विभाग का आग्रह मान लिया लेकिन इसके बाद भी यह भुगतान नहीं हो पाया है क्योंकि बिलों के साथ फॉर्म नहीं है। फार्म नहीं होने का अर्थ है कि यह पूर्ति ही अवैध स्त्रोतों से है और परिणामतः अवैध खनन है। इस अवैधता के खिलाफ उच्च न्यायालय आपराधिक मामले बनाने के निर्देश दे चुका है। इस समय ऐसे सबसे ज्यादा मामले शिमला जोन में हैं दूसरे स्थान पर मण्डी और तीसरे पर कांगड़ा है। इसका अर्थ यह है कि सबसे ज्यादा अवैध खनन इन क्षेत्रों में हो रहा है। ठेकेदारों के इन बिलों का भुगतान कैसे होता है इनके खिलाफ आपराधिक मामले बनाये जाते हैं या नहीं यह देखना दिलचस्प होगा क्योंकि यह जयराम सरकार के लिए एक कसौटी होगा।

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