Friday, 19 September 2025
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क्या हमीरपुर नालागढ़ में पकड़ी गयी शराब फैक्ट्रियां अवैध थी

इस सवाल का जवाब क्यों नहीं आ रहा है
आबकारी विभाग का तंत्र क्या कर रहा था
राजनेता इन सवालों पर चुप क्यों है

शिमला/शैल। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के गृह जिले मण्डी के सलापड में जहरीली शराब से सात लोगों की मौत हो गयी और एक दर्जन उपचाराधीन चल रहे हैं। इस घटना से प्रदेश के सियासी हल्कों में भूचाल आना स्वभाविक था। क्योंकि यह चुनावी वर्ष है और कांग्रेस ने सरकार के खिलाफ आरोप पत्रा तैयार करने के लिए एक कमेटी गठित कर दी है। इस आरोप पत्रा में शराब और खनन माफिया विशेष मुद्दे रहने वाले हैं। ऐसे में जब ऐसा कांड घट जायेगा तो उस पर राजनीतिक रोटियां तो सेकी ही जायेंगी। यह स्वाभाविक और तय है इसलिए भाजपा और कांग्रेस दोनों एक दूसरे पर आरोप दागने में व्यस्त हो गये हैं। इस व्यस्तता में यह कांड अपने अंतिम निष्कर्ष पर पहुंच पायेगा और इसके असली गुनहगारों को सजा मिल पायेगी यह देखना दिलचस्प होगा। क्योंकि जैसे ही यह कांड घटा सरकार ने तुरंत प्रभाव से एसआईटी गठित करके जांच आदेशित कर दी और 72 घटों में ही पुलिस ने इस कांड के कुछ दोषियों को दबोच लिया। एसपी मंडी और एसपी हमीरपुर ने महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई इसमें। इस जांच में यह सामने आया कि यह जहरीली शराब हमीरपुर में उस स्थान पर बन रही थी जो एस पी आवास से करीब डेढ़ किलोमीटर के फासले पर था। शराब की इस फैक्ट्री के संचालकों में हमीरपुर कांग्रेस के जिला महामंत्री नीरज ठाकुर और एनएसयूआई के पूर्व जिला प्रधान प्रवीण ठाकुर के नाम सामने आये हैं। इनके अतिरिक्त अलीगढ़ उत्तर प्रदेश के सनी और पुष्पेंद्र दिल्ली के सागर सैनी जम्मू कश्मीर के ए के त्रिपाठी तथा पालमपुर के गौरव मिन्हास का शामिल होना पाया गया है। इन लोगों से पूछताछ में यह सामने आया कि नालागढ़ में भी इसी तरह की फैक्ट्री चल रही है। यहां से भी सामान पकड़ा गया और लोगों की गिरफ्तारियां हुई हैं । इस कांड में एक दर्जन लोगों की गिरफ्तारियां हो चुकी हैं।
इस कांड पर डीजीपी संजय कुंडू ने एक ऑनलाइन प्रेस वार्ता में यह कहा है कि यह जांच चल रही है कि इस शराब के निर्माण में इसमें पड़ने वाली सामग्री की मिक्सिंग गलत तरीके से हुई है या जो स्प्रिट इसके लिए खरीदी वह सही नहीं थी। अब तक हुई जांच में वह सब लोग पकड़े गये जिनकी इसमें किसी भी तरह की भागीदारी रही है। लेकिन अभी तक यह मूल प्रश्न अनुतरित है कि क्या यह शराब की फैक्ट्रियां अवैध रूप से ऑपरेट कर रही थी। क्योंकि यदि कोई फैक्ट्री ही अवैध रूप से चल रही है तो इसका सीधा सा अर्थ है कि सरकार के रिकॉर्ड पर इसका कोई पंजीकरण वगैरा है ही नहीं। यदि ऐसा है तो यह पूरे प्रशासन पर एक गंभीर सवाल होगा। यह सवाल भी बना हुआ है कि यह फैक्ट्रियां चल कब से रही थी। यदि इन फैक्ट्रियों का पंजीकरण है और इनको शराब बनाने का लाइसेंस मिला हुआ है तो अवैधता का आरोप वही खत्म हो जाता है। इसके बाद दूसरा सवाल इनकी गुणवत्ता का आता है और गुणवत्ता जांचने के लिए पूरा तंत्र खड़ा किया हुआ है। शराब के कारखानों पर सीसीटीवी कैमरे लगे हुये हैं आने वाले हर समान की चैकिंग होती है। शराब की हर बोतल और पेटी के निरीक्षण के निर्देश हैं। और यह आबाकारी विभाग की जिम्मेदारी है। फैक्ट्री कितनी शराब बनायेगी यह पहले से तय रहता है। इस प्रकरण में आबकारी विभाग की भूमिका क्या रही है यह भी अभी तक सामने नहीं आया है। इसमें जो सामान पकड़ा गया वह कहां से खरीदा गया इसको बनाने का फार्मूला किसका था यह कोई बड़े गंभीर सवाल नहीं है। क्योंकि शराब बनाने के लिए यह स्वभाविक समान है जो कहीं से तो लिया ही जाना था। यदि यह सामान भी अवैध रूप से बेचा गया है तभी इन लोगों को भी इसमें सम्मिलित माना जायेगा अन्यथा नहीं।
इस कांड में लोगों की मौत हुई है। इसके डीजीपी के मुताबिक दो ही कारण हो सकते हैं। पहला की सामान की मिक्सिंग गलत हुई हो और दूसरा स्प्रिट सही न हो। यह दोनों बिंदु अभी जांच में चल रहे हैं। जब तक इस पर रिपोर्ट नहीं आ जाती तब तक मौत के कारणों का पता नहीं चलेगा। लेकिन इस पर जिस तरह से राजनीति की जा रही है उससे यह आशंका बराबर बढ़ती जा रही है कि यह प्रकरण भी राजनीतिक ब्यानबाजी के नीचे दब कर ही रह जायेगा। क्योंकि यदि यह फैक्टरीयां अवैध रूप से ही चल रही थी तो सरकार और उसका तन्त्र अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता। क्योंकि उसका अर्थ होगा कि राजनेता किसी भी सरकार में कुछ भी अवैध कर सकते हैं। यदि फैक्ट्रियां अवैध नहीं है तो फिर बड़ा दोष विभाग पर आयेगा कि उसका निगरान तंत्र क्या कर रहा था। क्योंकि शराब का कारोबार करने वाला किसी भी राजनीतिक दल का सदस्य हो सकता है।

 

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