Friday, 19 September 2025
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क्या कांग्रेस को डरा-धमका कर भ्रष्टाचार की गंभीरता को कम कर रही है सरकार

विधानसभा के पटल पर
शराब कांड पर उठी चर्चा धवाला वक्कामुल्ला और कुल्लू प्रकरण तक पहुंची
क्या आने वाले दिनों में व्यक्ति केंद्रित आरोप देखने को मिलेंगे
या आरोप-प्रत्यारोप राजनीतिक ब्लैकमेल होकर रह जायेंगे

शिमला/शैल। बजट सत्र के पहले दिन से ही विपक्ष को सदन से वाकआउट करने की बाध्यता आ खड़ी हुई है। सदन जनहित के मुद्दे उठाने का सबसे बड़ा और प्रमाणिक मंच है। पक्ष-विपक्ष से इस मंच पर जन मुद्दों की प्रभावी चर्चा की अपेक्षा की जाती है। सवाल हमेशा सत्ता पक्ष से ही किया जाता है क्योंकि नियम नीति और प्रशासन सब सरकार की जिम्मेदारी और नियत्रण में होता है। सरकार की कार्यशैली और उसके फैसलों पर कड़े सवाल करने की अपेक्षा विपक्ष से सदन में और मीडिया से सार्वजनिक मंच पर की जाती है। सदन में जब सत्ता पक्ष अपने संख्या बल के आधार पर विपक्ष को नहीं सुनता है तब विपक्ष को सदन से वाकआउट करके मीडिया के सामने अपने सवाल रखने के अतिरिक्त और कोई विकल्प नहीं रह जाता है। इस परिप्रेक्ष में जब वर्तमान बजट सत्र में पक्ष और विपक्ष की अब तक सामने आयी भूमिकाओं का आकलन किया जाये तो जो वस्तुस्थिति सामने आती है उससे कुछ सवाल उभरते हैं। इन सवालों को नजरअंदाज करना शायद ईमानदारी नहीं होगी।
वर्ष के पहले सत्र की शुरुआत महामहिम राज्यपाल के संबोधन से शुरू होता है जिसे प्रशासन तैयार करता है और मंत्रिमंडल इसे स्वीकार करता है। विधानसभाओं में सामान्यतः वर्ष का पहला सत्र बजट का ही रहता है। इस सत्र में राज्यपाल के संबोधन के माध्यम से सरकार की बीते वर्ष की कारगुजारी का पूरा ब्योरा सदन में रखे जाने की अपेक्षा की जाती है। इस समय बेरोजगारी और महंगाई तथा सरकारों का लगातार बढ़ता कर्ज भार ऐसे मुद्दे हैं जिन्होंने हर आदमी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रखा है। हिमाचल में इस समय रोजगार कार्यालयों में पंजीकृत बेरोजगारों का आंकड़ा चौदह लाख से पार जा चुका है। सरकार ने चार वर्षों में करीब चौबीस हजार को रोजगार उपलब्ध कराया है। यह जानकारी स्वंय सरकार ने एक प्रश्न के उत्तर में दी है। जबकि पिछले बजट भाषण में वर्ष 2021-22 में तीस हजार को नौकरी देने का वादा किया गया था। लेकिन शायद इसका अभिभाषण में कोई जिक्र ही नहीं है। इस समय प्रदेश में दर्जनों आउटसोर्स कंपनियों के माध्यम से जयराम सरकार नौकरियां दे रही हैं। इनका वेतन और कमीशन सरकार के खजाने से अदा हो रहा है। इस पर जब सरकार इन कंपनियों के बारे में ही एक तरह से अनभिज्ञता प्रकट करें तो विपक्ष या आम आदमी क्या करेगा।
विधानसभा के पिछले सत्र में आयी कैग रिपोर्ट में खुलासा हुआ है की सरकार ने जनहित की 96 योजनाओं पर कोई पैसा खर्च नहीं किया है और न ही इसका कोई कारण बताया है। तो क्या इस पर राज्यपाल के अभिभाषण में सरकार के मौन पर विपक्ष को उसकी प्रशंसा करनी चाहिये थी? घोषणाओं पर खर्च न होने के बावजूद सरकार द्वारा करीब हर माह कर्ज लिये जाने का समर्थन किया जाना चाहिये? अभी जयराम सरकार ने बिजली के बिलों में प्रदेश की जनता को बड़ी राहत देने का ऐलान किया है। इस राहत के लिये सरकार बिजली बोर्ड को 92 करोड़ अदा करेगी यह कहा गया था। लेकिन इस संबंध में भी अभी तक पूरी रिपोर्ट तैयार नहीं हो पायी है जिसका अर्थ है कि यह राहत देने के लिये भी पूरा होमवर्क नहीं किया गया है।
इसी के साथ सबसे महत्वपूर्ण यह है कि बजट सत्र से पहले सुंदरनगर में जहरीली शराब कांड और फिर ऊना के बाथू में स्थित पटाखा फैक्ट्री में हुये विस्फोट ने सबका ध्यान आकर्षित किया है। क्योंकि दोनों मामलों में मौतें हुई हैं। बाथू में कई लोग घायल हुए हैं। सुंदरनगर में जहरीली शराब पीने से वहीं के लोग मरे हैं। उन्हें आठ लाख का मुआवजा दिया गया। क्योंकि वह हिमाचली थे। बाथू विस्फोट में मरने वाले प्रवासी मजदूर थे इसलिए उन्हें चार-चार लाख का मुआवजा दिया गया। मुआवजे में हुये इस भेदभाव का हिमाचल में काम कर रहे प्रवासियों पर क्या असर पड़ेगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। बाथू में चल रही पटाखा फैक्ट्री भी अवैध रूप से ऑपरेट कर रही थी। कोई लाइसेंस नहीं था। यहां तक कि बिजली पानी की आपूर्ति भी अवैध रूप से हो रही थी। इस अवैधता के लिये प्रशासन में मौन किस स्तर पर जिम्मेदार रहा है और उसके खिलाफ क्या कारवाई की जाती है इसका पता तो आगे लगेगा। लेकिन एक ऐसी फैक्ट्री जिसमें उत्पादन के लिये विस्फोटक सामग्री इस्तेमाल की जा रही हो उसका ऑपरेट होना सरकार की कार्यप्रणाली पर एक बड़ा सवाल खड़ा कर जाता है। नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री के चुनाव क्षेत्र में यह घटा है और उन्होंने दोषियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कारवाई की मांग की है। सदन में इस पर अपना मत रखते हुये जब अग्निहोत्री ने शराब कांड में नामजद रंगीलू को लेकर बात की और खुलासा किया की वह तो भाजपा का प्राथमिक सदस्य है तब इस पर मुख्यमंत्री सहित पूरे सत्तापक्ष की जो प्रतिक्रियायें आयी हैं वह अपने में कई गंभीर सवाल खड़े कर जाती है। शराब कांड हमीरपुर से शुरू हुआ यहां पर अवैध कारखाना पकड़ा गया जो कि हमीरपुर कांग्रेस के महामंत्री के मकान में स्थित था। प्रदेश में तीन जगह यह अवैध शराब बनाई जा रही थी। जयराम सरकार के कार्यकाल में शराब ठेकों की नीलामी नहीं होती रही है। इस नीति से प्रदेश के राजस्व को बारह सौ करोड़ का नुकसान होने के आरोप हैं। यह माना जाता है कि जितना वैद्य कारोबार हो रहा है उतना ही अवैध कारोबार है।
रंगीलू का संद्धर्भ आने पर मुख्यमंत्री यहां तक कह गये कि हमीरपुर शराब कांड में सम्मिलित हमीरपुर कांग्रेस के महामंत्री के तो कई नेताओं के साथ फोटो वायरल हुये हैं और उसे कांग्रेसी टिकट देने की सिफारिश कर रहे थे। यह इशारा मुकेश अग्निहोत्री की ओर था। इसका जवाब देते हुए मुकेश ने खुलासा किया कि उसके फोटो तो पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के साथ भी हैं। इसी के साथ मुकेश ने यह भी खुलासा किया कि भाजपा नेताओं के फोटो तो चर्चित कुल्लू कांड के साथ भी हैं। तो क्या फोटो होने से कोई दोषी हो जाता है। प्रश्न तो अवैधता का है और जिसके शासन में यह घट रही है। उसी को इस पर कारवाई करनी है। लेकिन भ्रष्टाचार पर जिस तरह से सदन में धवाला कांड से लेकर वक्कामुल्ला तक का जिक्र आया उससे स्पष्ट हो जाता है कि आने वाले दिनों में कई नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगेंगे। क्योंकि जिन नेताओं और उनके सहयोगियों ने प्रदेश के बाहर और भीतर संपत्ति खरीदी है उनके खुलासे सार्वजनिक रूप से सामने आयेंगे। भ्रष्टाचार हर चुनाव के दौरान एक बड़ा मुद्दा रहता आया है। क्योंकि हर सरकार भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस के दावे करती आयी है। भ्रष्टाचार के खिलाफ 31 अक्तूबर 1997 को सरकार ने एक ईनाम योजना अधिसूचित की थी। इसमें भ्रष्टाचार की शिकायत की प्रारंभिक जांच एक माह में करने का प्रावधान किया गया था। लेकिन आज तक इसमें नियम नहीं बन पाये हैं। इसमें सरकार को होने वाले लाभ का 25% शिकायतकर्ता को देने की बात की गयी है। लेकिन आज तक इस योजना के तहत आयी किसी भी शिकायत की प्रारंभिक जांच माह के भीतर नहीं की गयी। यहां तक की जयराम सरकार ने तो सर्वाेच्च न्यायालय के फैसलों पर भी अमल नहीं किया है। भ्रष्टाचार केवल राजनीतिक ब्लैकमेल का एक माध्यम होकर रह गया है। शराब कांड और विस्फोट कांड दोनों का कारोबार अवैध रूप से चल रहा था। इस सभ्यता के लिए प्रशासन में किसी को दंडित किया जाता है या नहीं जयराम सरकार के लिए यह एक बड़ा टैस्ट होगा।

 

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