Friday, 19 September 2025
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आय माननीयों की और आयकर जनता भरे को मिली उच्च न्यायालय में चुनौती

विधायक महेंद्र सिंह, मुकेश अग्निहोत्री, राकेश सिंह और होशियार सिंह भी बनाये गये प्रतिवादी
आने वाले दिनों में ‘एक विधायक एक पैंशन’ के भी मुद्दा बनने की संभावना बढ़ी

शिमला/शैल। हिमाचल प्रदेश सरकार अपने विधायकों और मंत्रियों को मिलने वाले वेतन भत्तों के माध्यम से उनको हो रही आय पर दिये जाने वाले आयकर की अदायगी सरकारी कोष से करती है। आमदनी माननीयों की होती है और उस पर आयकर सरकार अदा करती है। जबकि आयकर अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार आयकर उसी व्यक्ति द्वारा अदा किया जाता है जो उसके दायरे में आता है। फिर आयकर को लेकर कोई नियम कानून बनाना भी संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है राज्यों की विधानसभाओं के दायरे में नही आता है। संविधान में पूरी तरह परिभाषित है और बाकायदा इसकी अलग-अलग सूचियां बनी हुयी हैं कि केंद्र के दायरे में कौन से विषय आते हैं और राज्य कौन से विषय पर कानून बनाने का अधिकार रखता है। बल्कि कई ऐसे विषय भी हैं जिन पर केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं। ऐसे विषय सांझी सूची में रखे जाते हैं और इनमें यदि कभी केंद्र और राज्य में विरोधाभास की स्थिति आ जाये तो उसमें राज्य की बजाये केंद्र के प्रावधान को अधिमान दिया जाता है। इस व्यवस्था में भी आयकर किसी भी गणित से राज्य के पाले में नहीं आता है। इसी वैधानिक स्थिति के कारण प्रदेश उच्च न्यायालय के कुछ अधिवक्ताओं ने प्रदेश सरकार के इस आचरण को अदालत में चुनौती दी है। जिस पर उच्च न्यायालय ने जवाब तलब कर लिया है।
वरिष्ठ अधिवक्ता रजनीश मनिकटाला और उनकी टीम के सदस्य यशपाल राणा, सुरेश कुमार, कपिल भारद्वाज तथा राकेश कुमार ने संविधान की धारा 226 के तहत याचिका दायर करके भाजपा विधायक महेंद्र सिंह कांग्रेस विधायक मुकेश अग्निहोत्री सीपीएम विधायक राकेश सिंह निर्दलीय विधायक होशियार सिंह तथा विधानसभा को भी इसमें प्रतिवादी बनाया गया है। स्मरणीय है कि वर्ष 2017-18 से लेकर 19-20 तक सरकार ने माननीयांे का 4 6931407 रुपए का आयकर अदा किया है। यह प्रावधान वर्ष 2000 में माननीयों के वेतन भत्तों और पेंशन से जुड़े अधिनियम 1971 में संशोधन करके किया गया तथा इस आशय की धारा 12 जोड़ी गयी। याचिकाकर्ताओं ने इसे राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र से बाहर बताते हुये असंवैधानिक करार देकर निरस्त करने की मांग की है। यह याचिका उस समय आयी है जब प्रदेश के कर्मचारी पुरानी पैंशन योजना की बहाली की मांग कर रहे हैं। मुख्यमंत्री ने उन्हें चुनाव लड़ने की चुनौती दी है। राष्ट्रीय स्तर पर माननीयों की पैंशन मिलने के विरोध की याचिका सर्वाेच्च न्यायालय तक पहुंची हुई है।
उधर माननीयों ने हर टर्म में जीतने पर अतिरिक्त पैंशन मिलने तक का प्रावधान कर रखा है। आम आदमी पार्टी ने ‘एक विधायक एक पैंशन’ के सिद्धांत की वकालत करते हुये पंजाब में इसे लागू करने की घोषणा भी कर दी है। ऐसे में यह तय है कि आने वाले दिनों में यह एक बड़ा और राष्ट्रीय मुद्दा बन जायेगा। इस परिपेक्ष में यह देखना रोचक होगा की आयकर वाले मामले में सरकार और प्रतिवादी बनाये गये विधायक क्या जवाब देते हैं। क्योंकि पार्टी बनाये गये सभी विधायकों को अपना-अपना जवाब दायर करना होगा। राष्ट्रीय स्तर पर भी इसका एक प्रभाव पड़ना तय है। क्योंकि बहुत संभव है कि हिमाचल की तरह अन्य भी कई राज्यों ने ऐसा प्रावधान कर रखा हो। यह भी तय है कि इसके बाद प्रदेश में ‘एक विधायक एक पैंशन’ पर भी आवाजें उठना शुरू हो जायेंगी जो चुनाव आते-आते एक बड़ा मुद्दा बन जायेगा।


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