Friday, 19 September 2025
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अध्यक्ष को लेकर प्रदेश कांग्रेस संकट में क्यों

शिमला/शैल। प्रदेश विधानसभा के चुनाव समय से पहले भी हो सकते हैं इसकी संभावनायें लगातार बढ़ती जा रही हैं। इस बार आम आदमी पार्टी की दस्तक के बाद यह मुकाबला त्रिकोणीय होने की संभावना प्रबल हो गयी हैं। 2014 से लेकर 2019 लोकसभा चुनावों तक हुये चुनावों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है। 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद 2021 में हुये चारों उपचुनाव कांग्रेस ने इस हार को रोकने का जो सफल प्रयास किया था उसकी धार को पांच राज्यों में मिली हार ने इस कदर कुन्द कर दिया है कि कांग्रेस को इस हार की मानसिकता से बहार निकलने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर पेशेवर चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर की सेवा लेने के मुकाम पर पहुंचा दिया है। इस सबका प्रभाव प्रदेश की राजनीति पर यह पढ़ा कि भाजपा ने कांग्रेस के स्थान पर आप को अपना पहला प्रतिद्वन्द्धी घोषित कर दिया है। कांग्रेस को चुनावी राजनीति से बाहर कर दिया है।
इस वस्तुस्थिति सेे भाजपा और आप को क्या लाभ मिलेगा इस सवाल से ज्यादा बड़ा प्रसन्न यह खड़ा हो गया है कि इससे कांग्रेस को कितना नुकसान होगा। इस समय तक आप के आने से कांग्रेस को ही ज्यादा नुकसान हुआ है। क्योंकि उसी के ज्यादा लोग कांग्रेस छोड आप मंे गये हैं। ऐसे में यह स्पष्ट होता जा रहा है कि कांग्रेस को आप और भाजपा दोनों से एक साथ राजनीतिक लड़ाई लड़नी पड़ेगी। जबकि भाजपा कांग्रेस को इस लड़ाई से ही बाहर होना करार देकर सारे नुकसान का रुख कांग्रेस की और मोड दिया है। जनता में भी यह चर्चा चल पड़ी है कि कांग्रेस तो सारे परिदृश्य से पहले ही बाहर हो गयी है। व्यवहारिक तौर पर भी कांग्रेस की एकजुटता और भाजपा-आप के प्रति आक्रमकता सारे परिदृश्य से ही गायब हो गयी है। जबकि इतना कुछ भाजपा के खिलाफ उपलब्ध है कि उसका उपयोग करके कांग्रेस बनाम आप के हालात खड़े किये जा सकते थे। लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है और विश्लेषकों के लिये यह एक बड़ा सवाल बनता जा रहा है कि कांग्रेस ऐसी तन्द्रा मे चली क्यों गयी? क्या कुछ लोग कांग्रेस को भीतर से कमजोर करने की सुपारी लेकर बैठे हैं।
कांग्रेस में जब तक स्व.वीरभद्र सिंह जिन्दा थे तब तक वह निर्विवादित रुप से मुख्यमन्त्री का चेहरा बने रहे हैं। 1993 में जब पंडित सुखराम ने इस एकछत्रता को चुनौती दी थी तो उस वक्त कैसे विधानसभा का घेराव करवा कर सुखराम के हाथ से बाजी छीन ली थी उस समय के प्रत्यक्षदर्शी यह सब जानते हैं। लेकिन आज कोई वीरभद्र सिंह कांग्रेस के पास है नहीं। आज के कांग्रेस नेता यह भी भूल गये हैं कि भाजपा-मोदी ने 2014 और 2019 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनावांे में वीरभद्र के खिलाफ बने मामलों को खूब भुनाया था। यही मामले थे जिनके कारण वीरभद्र भाजपा के खिलाफ चाहकर भी आक्रमक नहीं हो पाये थे।
आज वीरभद्र की कमी को पूरा करने वाला एक भी नेता सामने नहीं है। जयराम के कार्यकाल में किस तरह से सरकारी धन का दुरुपयोग करके प्रदेश को कर्ज के गर्त में धकेला गया है इसके दर्जनों मामले तो कैग रिपोंर्टाे में दर्ज हैं। लेकिन एक भी कांग्रेस नेता इनको पढ़ने और इन पर सवाल उठाने के लिये तैयार नहीं है। यहां तब की जयराम सरकार के खिलाफ आरोप पत्र तैयार करने के लिए कमेटी की घोषणा करके भी जब यह आरोप पत्र न आये तो आम आदमी को मानना पड़ेगा कि कुछ तत्व पार्टी के भीतर बैठकर संगठन को जनता की नजर में अक्षम प्रमाणित करने के प्रयासों में लगे हैं। यह इन्ही प्रयासों का परिणाम है कि हर सप्ताह अध्यक्ष का बदलाव चर्चित होता है और अंत में आकर अफवाह बनकर रह जाता है। जबकि इन मुद्दों पर हाईकमान को हरदम सूचित रखना प्रभारीयों का काम होता है। जब प्रभारी भी यह जिम्मेदारी निभाने में सफल न हो पा रहे हों तो फिर संगठन का क्या होगा यह अनुमान लगाना कठिन नहीं होगा।

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