जब मुख्य सचेतक की नियुक्ति ही 13 मार्च को हुई तो 28 फरवरी की कारवाई का आधार क्या प्रश्नित नहीं हो जाता?
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Created on Wednesday, 20 March 2024 18:54
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Written by Shail Samachar
- उपचुनावों की घोषणा के बाद सर्वाेच्च न्यायालय पर लगी निगाहें
- आने वाले दिनों में व्यक्तिगत स्तर के आरोप लगने की संभावनाएं बढ़ी
- बागी मुख्यमंत्री के खिलाफ दायर करेंगे आपराधिक मानहानि का मामला
शिमला/शैल। लोकसभा के साथ ही प्रदेश के छः विधानसभा क्षेत्रों के लिये भी उपचुनाव की घोषणा से पूरा राजनीतिक परिदृश्य एकदम बदल गया है। क्योंकि छः निष्कासितांे का मामला सर्वाेच्च न्यायालय में लंबित है। यह प्रश्न उभर रहा है की इन निष्कासितांे का मामला सर्वोच्च न्यायालय में जब तक फैसला नहीं हो जाता है तब तक चुनावी स्थिति क्या होगी? ऐसे में यह माना जा रहा है कि सर्वाेच्च न्यायालय इस मामले को विधानसभा अध्यक्ष को ही इस टिप्पणी के साथ वापस भेज दे कि अपने इन लोगों को अपना पक्ष रखने के लिये उचित समय नहीं दिया है। इसलिये इन्हें पूरा समय देकर सुना जाये। इस स्थिति में इनका निष्कासन स्वतः ही बहाल हो जायेगा। दूसरा विकल्प है की अध्यक्ष के फैसले पर स्टे आयत करते हुए मामला नियमित सुनवाई में चला जाये। इस स्थिति में भी याचिकाकर्ताओं को लाभ ही मिलेगा। तीसरे विकल्प में चुनाव आयोग के चुनावी फैसले पर रोक लगाकर मामला नियमित सुनवाई में चला जाये? चौथे विकल्प के रूप में याचिका को सीधे स्वीकार करके यथा स्थिति बहाल हो जाये। पांचवें विकल्प के रूप में मामले को उच्च न्यायालय में दायर करने के निर्देश दे दें। ऐसे में यह तय है कि सर्वाेच्च न्यायालय 18 मार्च को ही इसमें कुछ निर्देश अवश्य देगा क्योंकि चुनाव घोषित हो गये हैं और अदालत नहीं चाहेगी की वहां देरी होने के कारण स्थिति वैधानिक संकट तक पहुंच जाये।
निष्कासन का आधार व्हिप की उल्लंघना बनी है। ऐसे यह सवाल स्वतः ही खड़ा हो गया है की जिस व्हिप की उल्लंघना हुई है उसको जारी करने वाले मुख्य सचेतक की नियुक्ति कब हुई? इस नियुक्ति का राजपत्र में प्रकाशन कब हुआ? क्योंकि व्हिप की उल्लंघना पर 28 फरवरी को ही निष्कासन याचिका पर सुनवाई पूरी हो गयी। लेकिन मुख्य सचेतक नियुक्त करने की तो अधिसूचना ही 13 मार्च को हुई जिसे 14 मार्च को बदलकर उप मुख्य सचेतक किया गया। ऐसे में यह सवाल उठना स्वभाविक है कि जब मुख्य सचेतक की नियुक्ति ही 13 मार्च को हुई तो 28 फरवरी को व्हिप की उल्लघंना कैसे हुई। क्या पहले कोई और मुख्य सचेतक नियुक्त था? यदि था तो उसकी नियुक्ति कब अधिसूचित और प्रकाशित हुई? वह कब हटा और कब उसका हटाना प्रकाशित हुआ? यह सवाल इसलिये महत्वपूर्ण हो जाते हैं की बागियों ने जिस व्हिप को रिकॉर्ड के रूप में शीर्ष अदालत के सामने रखा है उस पर कोई तारीख ही दर्ज नहीं है। जबकि 13 मार्च की दोनों अधिसूचनाएं सामने आ चुकी है। इससे निष्कासन की पूरी प्रक्रिया पर स्वतः सवाल खड़े हो जाते हैं और इसी आधार पर बागीयों का पक्ष भारी माना जा रहा है।
इस निष्कासन के बाद जिस तरह से इन लोगों के खिलाफ एफ.आई.आर दर्ज की गयी और जिस तरह की ब्यानबाजी मुख्यमंत्री और उनके खेमे से आयी है उससे वातावरण और कड़वाहट भरा हो गया है। बागीयों ने भी उसी भाषा में पलटवार करते हुये मुख्यमंत्री के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मामला दायर करवाने की बात की है। मुख्यमंत्री से कुछ कड़वे सवाल पूछे गये हैं। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में मुख्यमंत्री से कुछ ऐसे सवाल पूछे जायेंगे जिनका जवाब सिर्फ मुख्यमंत्री को ही देना होगा। इन सवालों से जुड़े दस्तावेजी प्रमाण भी जारी किये जाने की संभावना है। यह सवाल मुख्यमंत्री के लिये हर दृष्टि से नुकसानदेह होंगे और उस स्थिति में हाईकमान भी ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री के साथ खड़ा नहीं रह पायेगा। वर्तमान प्रकरण के लिए मुख्यमंत्री के सलाहकारों को दोषी माना जा रहा है। क्योंकि राज्यसभा में क्रॉसवोटिंग होने की जानकारी बड़े अरसे से फैल रही थी। सबके नाम सामने आ चुके थे पार्टी के कुछ राज्य स्तरीय पदाधिकारियों को भी जानकारी दे दी गयी थी। लेकिन इस सबके बावजूद जब सरकार कुछ न कर पाये तो उसके लिये दूसरों को दोष नही दिया जा सकता।
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