क्या यह उपचुनाव मुद्दों की जगह आरोपों-प्रत्यारोपों पर लड़ा जायेगा?
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Created on Thursday, 27 June 2024 12:53
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Written by Shail Samachar
- आशीष शर्मा ने मुख्यमंत्री को सबसे बड़ा माफिया करार दिया
- फरवरी 2023 में खनन पॉलिसी में बदलाव भाई को लाभ पहुंचाने के लिये किया गया
- कांगड़ा बैंक के ऋण मुआफी के मुद्दे उछलने की संभावना
- क्या नादौन में एचआरटीसी द्वारा खरीदी जमीन विलेज कामन लैण्ड है?
शिमला/शैल। क्या यह उपचुनाव मुद्दों पर सवाल पूछने और बहस उठाने की बजाये आरोपों और प्रत्यारापों के तीखे पन पर लड़ा जायेगा? यह सवाल इसलिये प्रासंगिक और महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि मुख्यमंत्री और पूरी कांग्रेस पार्टी भाजपा द्वारा धन-बल के सहारे सरकार गिराने का प्रयास करने को अब भी केंद्रीय मुद्दा बनाकर जनता में उछाल रहे हैं। इस आरोप के खुलासे में उन सारे विधायकों को जिनके क्रॉस वोटिंग करने से राज्यसभा चुनाव में भाजपा के हर्ष महाजन कांग्रेस के बराबर वोट हासिल करके पर्ची सिद्धांत पर जीत गये। यह सही है कि जब भाजपा के अपने 25 ही विधायक थे तो वह वोटिंग में 34 कैसे हो गये। यहां क्रॉस वोटिंग करने वालों को बिकाऊ विधायक लोकसभा चुनाव में प्रचारित किया गया। लेकिन इस प्रचार से भाजपा चारों सीटें जीत गयी। विधानसभा के उपचुनाव में कांग्रेस छः में से चार सीटें जीत गयी। इस जीत को मुख्यमंत्री में जनता के विश्वास की संज्ञा दी गयी। लेकिन इस विश्वास पर उस समय एक बड़ा प्रश्न चिन्ह लग गया जब मुख्यमंत्री अपने ही विधानसभा क्षेत्र नादौन में कांग्रेस को बढ़त नहीं दिला पाये। उपचुनावों में चारों सीटें जीतने को अधिकांश में भाजपा की आंतरिक राजनीति को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। बल्कि प्रदेश की चारों सीटें जीतने के बाद भी अनुराग ठाकुर को केंद्रीय मंत्री परिषद में स्थान न मिल पाना भी इसी राजनीति का प्रतिफल माना जा रहा है।
इस परिदृश्य में हो रहे हैं इन उपचुनावों में फिर मुख्यमंत्री ने विधायकों को बिकाऊ होने के आरोप को उछाल दिया है। इसी बिकाऊ के आरोप के साथ ही खनन माफिया और भू-माफिया के टैग में भी इनके साथ जोड़ दिए गये हैं। पिछली बार धर्मशाला में सुधीर शर्मा को मुख्यमंत्री ने भू- माफिया की संज्ञा देते हुये उनकी कुछ संपत्तियों के नाम मीडिया में उछाले थे लेकिन उनके कोई दस्तावेजी प्रमाण जारी नहीं कर पायेे थे। इन आरोपों के जवाब में सुधीर शर्मा ने मुख्यमंत्री के खिलाफ कुछ आरोप दस्तावेजी प्रमाणों के साथ लगाये। सुधीर के आरोपों के सामने मुख्यमंत्री द्वारा लगाये गये आरोप हल्के पड़ गये और परिणाम स्वरूप सुधीर शर्मा चुनाव जीत गये। इसी तरह बड़सर में पैसे मिलने का एक आरोप उछाला गया। मुख्यमंत्री ने यह कथित पैसे लखनपाल के नाम लगा दिये। पैसे मिलने के आरोप का जिस आक्रमकता के साथ नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने जवाब दिया और प्रति प्रश्न किये तब मुख्यमंत्री का आरोप कमजोर पड़ गया और लखनपाल जीत गये।
पिछले उपचुनाव ने यह प्रमाणित कर दिया है कि जिसने तीव्र आक्रामकता अपनायी उसकी जीत हुई है। अब इन उपचुनावों में भी मुख्यमंत्री के पास वही पुराना राग है। बिकाऊ और धनबल का लेकिन आज तक इस आरोप का कोई ठोस दस्तावेजी प्रमाण जनता के सामने नहीं ला पाये हैं। हमीरपुर से पूर्व निर्दलीय विधायक और अब भाजपा प्रत्याशी आशीष शर्मा ने मुख्यमंत्री को ही सबसे बड़ा माफिया होने का आरोप लगा दिया है। आशीष शर्मा ने खुलासा किया है कि दिसम्बर 2022 में सुक्खू सरकार बनने के बाद फरवरी 2023 में प्रदेश की खनन पॉलिसी बदल दी गयी। आशीष के मुताबिक यह बदलाव अपने सगे भाई को लाभ पहुंचाने के लिये किया गया है। मुख्यमंत्री की ओर से इस आरोप का कोई जवाब नहीं आया है। पीछे जब सुधीर शर्मा ने नादौन में ढाई लाख में खरीदी गई जमीन को एचआरटीसी द्वारा करीब पौने सात करोड़ में खरीद लेने का जो आरोप लगाया था माना जा रहा है कि उसके पूरे दस्तावेज इस चुनाव में सामने आएंगे। इस खरीद-बेच में बड़ा सवाल तो यह उठा था कि यह जमीन बिक कैसे गयी? इसकी रजिस्ट्री हो कैसे गयी? चर्चा है कि जहां पर यह एचआरटीसी द्वारा खरीदी गई जमीन है वहीं पर 1974 में भूदान आन्दोलन यज्ञ के नाम पर राजा नादौन की 1224 कनाल जमीन को लैण्ड सीलिंग से बाहर रखा गया था। उस समय राजा नादौन की एक लाख कनाल से अधिक जमीन विलेज कामन लैण्ड हो गयी थी। इस विलेज कामन लैण्ड को खरीदा बेचा नहीं जा सकता। इसी तर्ज पर भूदान आन्दोलन यज्ञ के नाम पर हुई जमीनों को भी खरीदा बेचा नहीं जा सकता। माना जा रहा है कि शायद एचआरटीसी द्वारा खरीदी गई जमीन भी शायद विलेज कामन लैण्ड है।
इस उपचुनाव में आरोपों और प्रत्यारोपों के हथियार ही इस्तेमाल होंगे। यह आशीष शर्मा के ब्यान से स्पष्ट हो जाता है। फिर इस बार तो पिछले चुनाव के अंतिम दिनों में कांगड़ा सैन्ट्रल कोऑपरेटिव बैंक के करोड़ों की ऋण माफी को लेकर वायरल हुये वीडियो के रूप में और हथियार उपलब्ध हो गये हैं। जबकि इस समय के सबसे बड़े मुद्दे हैं कि यह सरकार कितना कर्ज लेकर चुनावी गारंटीयां पूरी कर पायेगी? क्योंकि हर माह कर्ज लेना पड़ रहा है। संसाधन बढ़ाने के लिये लगाया गया वाटर सैस कानूनी दाव पेंच में उलझ गया है। विद्युत परियोजनाओं से रॉयल्टी बढ़ाने का प्रयास भी अदालत में सफल नहीं हो पाया है। युवाओं को रोजगार उपलब्धता भाषणों से आगे नहीं बढ़ पायी है। ओपीएस के कारण पैन्शन में कटौती करने की संभावनाएं चर्चा में आ गयी हैं। इन मुद्दों पर खुली बहस की आवश्यकता है क्योंकि उपचुनाव में हार जीत से सरकार और विपक्ष के भविष्य पर कोई बड़ा अन्तर पढ़ने वाला नहीं है।
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