Thursday, 18 September 2025
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क्या कर्मचारियों की संख्या कम करके प्रदेश आत्मनिर्भर हो जायेगा ?

  •  क्या बिजली बोर्ड को प्राइवेट सैक्टर को देने पर विचार हो रहा है ?
  • क्या राजस्व आय और व्यय बराबर करने के लिये आम आदमी पर करों का बोझ डालना आवश्यक है?
शिमला/शैल। सुक्खू सरकार ने जब प्रदेश की बागडोर दिसम्बर 2022 में संभाली थी तब प्रदेश की जनता को यह चेतावनी दी थी कि प्रदेश के हालात कभी भी श्रीलंका जैसे हो सकते हैं । इसी चेतावनी के साये में पिछली सरकार द्वारा अंतिम छः माह में लिये फैसले पलटते हुये सैकड़ो नए खोले संस्थान बंद कर दिये। पैट्रोल, डीजल पर वैट बढ़ाया । शहरी क्षेत्रों में पानी के रेट बढ़ाये जो अब गांव तक जा पहुचे हैं। जो 125 यूनिट बिजली मुफ्त दी जा रही थी वह सुविधा बंद कर दी गयी । कुल मिलाकर आम आदमी की जेब से जिस भी नाम से जो भी निकाला जा सकता था वह प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से निकाल दिया गया। यहां तक के टॉयलेट टैक्स और बसों में यात्रा करते समय साथ ले जा रहे सामान पर भी यदि वह 5 किलो से अधिक है तो उस पर भी किराया लगा दिया गया। जब इस पर शोर उठा तो इसमें संशोधन कर दिये गये। अब बिजली बोर्ड से 51 अभियंताओं के पद समाप्त करने के साथ ही 81 ड्राइवरो को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। बिजली बोर्ड को प्राइवेट सेक्टर के हवाले करके उसमें कर्मचारियों की संख्या आधी करने की चर्चा है। सुक्खू सरकार ने 2026 तक प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने का और 2030 तक देश का सबसे अमीर राज्य बनाने का लक्ष्य घोषित कर रखा है। कोई भी प्रदेश तब आत्मनिर्भर बनता है जब उसका राजस्व व्यय और राजस्व आय बराबर हो जाए। इस समय यदि राजस्व आय और व्यय के आंकड़ों पर नजर डालें तो 2020-21 में आय व्यय में 1.19%, 2021-22 में 3.95%, 2022-23 में 4.98%, 2023-24 में 6.14% और 2024-25 में 7.44% घाटा रहने का अनुमान है। राजकोषीय घाटा इसी अवधि में 4.12%, 4.52%, 4.57%, 4.82% और 2024-25 में 4.98% रहने की संभावना है। घाटे के इन आंकड़ों को पार कर प्रदेश को बराबरी पर लाना एक बड़ी चुनौती है। राजस्व व्यय में सबसे ज्यादा खर्च वेतन पर 25.13 प्रतिशत और पैंशन पर 17.04 प्रतिशत होता है। इसके बाद ब्याज पर 10.70 प्रतिशत और ऋण अदायगी पर 9.42 प्रतिशत खर्च हो रहा है। इन खर्चों को कम करने के लिए सरकारी कर्मचारियों की संख्या कम करना सबसे पहले एजेंडा है। इसी एजेंडे के तहत बिजली बोर्ड अभियंताओं के पद समाप्त किए गए हैं। स्वभाविक है कि जब यह पद समाप्त हो जाएंगे तो इसका असर नीचे कर्मचारी तक पड़ेगा। इसी योजना के तहत बिजली बोर्ड और कुछ अन्य नियमों बोर्डों को प्राइवेट सैक्टर को देने की योजना है। सरकार में नियमित भर्ती बहुत अरसे से लगभग बंद है। अब अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड द्वारा ली गई परीक्षाओं के परिणाम घोषित करने के आदेश पारित किए गए हैं। जब दो वर्ष पहले इस बोर्ड को भ्रष्टाचार के आरोपों के तहत भंग किया गया था तब इसमें कई लोगों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले दर्ज हुए थे। कई गिरफ्तारियां हुई थी। परंतु अभी तक अदालत से शायद एक भी मामले का फैसला नहीं आया है। किसी को भी सजा घोषित नहीं हुई है। ऐसे में क्या इन परीक्षाओं के परिणाम पहले नहीं घोषित किये जा सकते थे। क्या इन परिणामों में हुई देरी भी खर्च कम करने का ही एक प्रयोग था। आज केंद्र में कांग्रेस नेता प्रतिपक्ष तक राहुल गांधी के पदयात्रा और सार्वजनिक उपक्रमों को प्राइवेट सैक्टर को देने के खिलाफ उभरे रोष के परिणाम स्वरुप पहुंची है। राहुल लगातार प्राइवेट सैक्टर की लूट के खिलाफ मुखर रहे हैं। प्रैस की स्वतंत्रता के पक्षधर है। लेकिन उनकी ही पार्टी की सरकार हिमाचल में बिजली बोर्ड जैसी उपक्रमों को प्राइवेट सैक्टर के हवाले करने की योजना पर काम कर रही है। बिजली की खरीद बेच का काम बोर्ड से ले लिया गया है। एक समय हिमाचल को इसी बोर्ड के सहारे प्रदेश को बिजली राज्य घोषित करके उद्योगों को आमंत्रित किया जाता था। आज इसी बिजली बोर्ड की बढ़ी हुई दरों के कारण उद्योग पलायन करने के कगार पर आ पहुंचे हैं। ऐसे में यह बड़ा सवाल बनता जा रहा है कि क्या कर्मचारीयों की संख्या कम करके और आम आदमी पर करों का बोझ लादकर 2026 में प्रदेश आत्मनिर्भर हो जायेगा ।

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